Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

June 19, 2025

बसंत पंचमी 26 जनवरी को, शुरू होगी होली बनाने की प्रक्रिया, जानिए पूजा की विधि, ना करें ऐसा काम, पढ़िए कथाएं

आने वाली 26 जनवरी के दिन बसंत पंचमी मनाई जा रही है। मान्यतानुसार बसंत पंचमी का दिन मां सरस्वती को समर्पित होता है। सरस्वती मां को विद्या और संगीत की देवी कहा जाता है। मंदिर ही नहीं, बल्कि विद्यालयों में भी सरस्वती मां की पूजा व हवन आदि किए जाते हैं। जो व्यक्ति सरस्वती मां का पूजन करते हैं, मान्यतानुसार उन्हें सरस्वती मां शिक्षा का वरदान देती हैं। साथ ही जीवन में सफलता के द्वार भी खोलती हैं। धार्मिक मान्यताओं के आधार पर ऐसी कुछ चीजे हैं, जिन्हें बसंत पंचमी के दिन घर लेकर आना बेहद शुभ माना जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

शुभ कार्यों के लिए श्रेष्ठ दिन
सूर्योदय कालीन पंचमी का संयोग सरस्वती पूजन, वाग्दान, विद्यारंभ, यज्ञोपवीत आदि संस्कारों व अन्य शुभ कार्यों के लिए श्रेष्ठ दिन बसंत पंचमी है। बसंत पंचमी अबूझ मुहूर्त वाले पर्वों की श्रेणी में शामिल है। देवी पूजन की सभी तिथियां व पूजन आदि के मुहूर्त की तिथियां हमेशा सूर्योदय कालीन ग्रहण करने का ही विधान है। प्रात:कालीन की गई पूजा सदैव ही सिद्ध व शुद्ध होती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

होली बनाने की प्रक्रिया भी होती है शुरू
होलिका दहन से पहले होली बनाने की प्रक्रिया चालीस दिन पहले ही बसंत पंचमी के दिन शुरू हो जाती है। इस दिन गूलर वृक्ष की टहनी को गांव या मोहल्ले में या जिस जगह पर होली का दहन किया जाना होता है या किसी खुली जगह पर गाड़ दिया जाता है। इसे होली का ठुंडा गाड़ना भी कहते हैं। बसंत-पंचमी के दिन से ही होली की शुरुआत व निश्चित दहन स्थान में होली का ठुंडा गाढ़ने की भी परम्परा रही है। बसंत पंचमी का नाम सुनते ही हर कोई उत्साह और उमंग से भर जाता है। पतंगों के बिना यह पर्व अधूरा लगता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इस दिन से बसंत ऋतु का होता है आगमन
बसंत पंचमी माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाई जाती है। इस दिन से भारत में बसंत ऋतु का आरम्भ होता है। इस दिन सरस्वती पूजा भी की जाती है। बसंत पंचमी की पूजा सूर्योदय के बाद और दिन के मध्य भाग से पहले की जाती है। इस समय को पूर्वाह्न भी कहा जाता है। यदि पंचमी तिथि दिन के मध्य के बाद शुरू हो रही है तो ऐसी स्थिति में बसंत पंचमी की पूजा अगले दिन की जाएगी। हालाँकि यह पूजा अगले दिन उसी स्थिति में होगी, जब तिथि का प्रारंभ पहले दिन के मध्य से पहले नहीं हो रहा हो। यानि कि पंचमी तिथि पूर्वाह्नव्यापिनी न हो। बाक़ी सभी परिस्थितियों में पूजा पहले दिन ही होगी। इसी वजह से कभी-कभी पंचांग के अनुसार बसन्त पंचमी चतुर्थी तिथि को भी पड़ जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन देवी रति और भगवान कामदेव की षोडशोपचार पूजा करने का भी विधान है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, माघ शुक्ल पंचमी तिथि 25 जनवरी 2023 की दोपहर 12:34 मिनट से होगी और 26 जनवरी 2023 को सुबह 10:28 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में उदयातिथि के मुताबिक, बसंत पंचमी 26 जनवरी को मनाई जाएगी। वहीं पूजा के लिए 26 जनवरी सुबह 07:12 मिनट से लेकर दोपहर 12:34 मिनट तक का समय शुभ रहेगा। पूजा के लिए कुल अवधि 5 घंटे तक होगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

सरस्वती पूजा विधि
पूजा के लिए सुबह उठकर स्नानादि कर साफ कपड़े पहन लें। फिर मां सरस्वती की प्रतिमा या मूर्ति को पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें। अब रोली, चंदन, हल्दी, केसर, चंदन, पीले या सफेद रंग के पुष्प, पीली मिठाई और अक्षत अर्पित करें। पूजा के स्थान पर वाद्य यंत्र और किताबों को अर्पित करें। मां सरस्वती की वंदना का पाठ करें। विद्यार्थी चाहें तो इस दिन मां सरस्वती के लिए व्रत भी रख सकते हैं।
या कुंदेंदुतुषारहारधवला, या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणा वर दण्डमण्डित करा, या श्वेत पद्मासना।
या ब्रहमाऽच्युत शंकर: प्रभृतिर्भि: देवै: सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती, नि:शेषजाड्यापहा।।
पूजा में मां सरस्वती के इस श्लोक से मन से ध्यान करें। इसके पश्चात- ओम् ऐं सरस्वत्यै नम: का जाप करें और इसी लघु मंत्र को नियमित रूप से विद्यार्थी वर्ग प्रतिदिन मां सरस्वती का ध्यान करें। इस मंत्र के जाप से विद्या, बुद्धि, विवेक बढ़ता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

बसंत पचंमी कथा
बसंत पंचमी की धार्मिक और पौराणिक कथा के अनुसार, सृष्टि के रचनाकार भगवान ब्रह्मा ने जब संसार को बनाया तो पेड़-पौधों और जीव जन्तुओं सबकुछ दिख रहा था, लेकिन उन्हें किसी चीज की कमी महसूस हो रही थी। इस कमी को पूरा करने के लिए उन्होंने अपने कमंडल से जल निकालकर छिड़का तो सुंदर स्त्री के रूप में एक देवी प्रकट हुईं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उनके एक हाथ में वीणा और दूसरे हाथ में पुस्तक थी. तीसरे में माला और चौथा हाथ वर मुद्रा में था। यह देवी थीं मां सरस्वती। मां सरस्वती ने जब वीणा बजाया तो संस्सार की हर चीज में स्वर आ गया। इसी से उनका नाम पड़ा देवी सरस्वती। यह दिन था बसंत पंचमी का। तब से मां सरस्वती की पूजा होने लगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

बसंत पंचमी के दिन घर लाने वाली चीजें
मान्यतानुसार बसंत पंचमी के दिन स्नान पश्चात पीले रंग के वस्त्र धारण किए जाते हैं। इसके पश्चात दिन की शुरूआत सरस्वती मां की पूजा करके की जाती है। सरस्वती मां को भोग लगाया जाता है, पीले फूल अर्पित किए जाते हैं और सरस्वती मंत्र ‘ॐ वागदैव्यै च विद्महे कामराजाय धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात्’ का जाप करते हैं। कहते हैं ऐसा करने से ज्ञान में वृद्धि और शैक्षिक क्षेत्र में सफलता मिलती है। निम्न उन चीजों की सूची है जिन्हें बसंत पंचमी के दिन खरीदा जाना अच्छा मानते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

वाद्य यंत्र
सरस्वती मां की प्रतिमा में स्पष्ट रूप से उनके हाथों में वाद्य यंत्र नजर आता है। सरस्वती मां को प्रसन्न करने हेतु किसी भी वाद्य यंत्र को घर लेकर आया जा सकता है। अगर आप या घर का कोई सदस्य किसी तरह का वाद्य यंत्र बजाता है तो यह दिन नया वाद्य यंत्र खरीदने के लिए उत्तम है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

पीले फूल
पील रंग के फूल या फिर पीले रंग के फूलों की माला इस दिन घर लेकर आयी जा सकती है। पीले रंग के फूल सरस्वती मां के समक्ष आर्पित करने भी बेहद शुभ माने जाते हैं। घर में पीले फूलों की लड़ी से सजावट भी की जा सकती है, खासकर घर के मुख्य द्वार पर। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

सरस्वती मां की तस्वीर या मूर्ति
बसंत पंचमी का दिन मां सरस्वती की प्रतिमा लाने के लिए उत्तम है। सरसव्ती मां की कोई भी तस्वीर या मूर्ति घर के ईशान कोण पर रखी जा सकती है। कहते हैं इससे घर के बच्चों पर अच्छी प्रभाव पढ़ता है और पढ़ने-लिखने में वृद्धि होती है।

विवाह सामग्री
माना जाता है कि यह बसंत पंचमी का ही दिन था जब भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की रस्में शुरू हुई थीं और तिलकोत्सव हुआ था। इस चलते विवाह से जुड़ी सामग्री खरीदने के लिए भी यह दिन खास है। शादी के गहने, सजावट और कपड़े आदि इस दिन खरीदे जा सकते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

श्री पंचमी
इस दिन धन की देवी ‘लक्ष्मी’ (जिन्हें श्री भी कहा गया है) और भगवान विष्णु की भी पूजा की जाती है। कुछ लोग देवी लक्ष्मी और देवी सरस्वती की पूजा एक साथ ही करते हैं। सामान्यतः कारोबारी या व्यवसायी वर्ग के लोग देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं। लक्ष्मी जी की पूजा के साथ श्री सू्क्त का पाठ करना अत्यंत लाभकारी माना गया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इसलिए है पीले रंग का महत्व
यह भी माना जाता है कि पीला सरस्वती मां का पसंदीदा रंग है। इसलिए लोग इस दिन पीले कपड़े पहनते हैं और पीले व्यंजन और मिठाइयां तैयार करते हैं। बसंत पंचमी पर देश के कई हिस्सों में केसर के साथ पके हुए पीले चावल पारंपरिक दावत होती है। बसंत पंचमी के दिन, हिंदू लोग मां सरस्वती चालीसा पढ़ते हैं। ताकि उनका भविष्य अच्छा हो सके। कई क्षेत्रों में, सरस्वती मंदिरों को एक रात पहले भोज से भर दिया जाता है। ताकि देवी अगली सुबह अपने भक्तों के साथ उत्सव और जश्म में शामिल हो सकें। जैसा कि यह ज्ञान की देवी को समर्पित दिन है। कुछ माता-पिता अपने बच्चों के साथ बैठते हैं। उन्हें अध्ययन करने या अपना पहला शब्द लिखने और सीखने को प्रोत्साहित करने के लिए एक बिंदु बनाते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इस महत्वपूर्ण अनुष्ठान को अक्षराभ्यासम या विद्यारम्भम कहा जाता है। कई शिक्षण संस्थानों में, देवी सरस्वती की प्रतिमा को पीले रंग में सजाया जाता है और फिर सरस्वती पूजा की जाती है। जहाँ शिक्षकों और छात्रों द्वारा सरस्वती स्तोत्रम् का पाठ किया जाता है। कई स्कूलों में इस दिन बसंत पंचमी पर गीत और कविताएँ गाई और सुनाई जाती हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

विद्यार्थियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है बसंत पंचमी
माघ माह में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी या मां सरस्वती का प्राकट्य दिवस मनाया जाता है। इस दिन मां सरस्वती का प्राकट्य होने के कारण उनकी पूजा का विधान है। यह दिन विद्यार्थियों, लेखन से जुड़े लोगों और संगीत से जुड़े लोगों के लिए बहुत महत्व रखता है। माना जाता है कि बसंत पंचमी के दिन जो व्यक्ति मां सरस्वती की पूजा सच्चे हृदय और विधि-विधान करता है उसे विद्या और बुद्धि का वरदान प्राप्त होता है। इस दिन मां सरस्वती की पूजा अर्चना के समय कुछ बातों को ध्यान में रखना चाहिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इस दिन ऐसा करें –
-बसंत पंचमी के दिन सुबह उठकर स्नानादि करने के पश्चात पीले रंग के स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
-मां सरस्वती का ध्यान और पूजन वंदन करें।
-शिक्षा सामाग्री कापी, किताब, कागज, कलम आदि की पूजा करें।
-यदि आपके पास कोई वाद्य यंत्र है तो उसकी भी पूजा करनी चाहिए।
-अपने माता-पिता बड़ों और गुरूजनों का पैर छूकर आशीर्वाद लें।
-बसंत पंचमी के दिन वस्त्र और भोजन का दान शुभ माना जाता है।
-इस दिन पितृ तर्पण भी किया जाता है।
-कोई नया शुभ कार्य करने के लिए बसंत पंचमी का दिन बहुत शुभ रहता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इस दिन ना करें ऐसा
-बसंत पंचमी के दिन किसी को अपशब्द न बोलें
-इस दिन वाद-विवाद से दूर रहें क्रोध पर नियंत्रण रखें।
-बसंत पंचमी के दिन मांस-मदिरा का सेवन भूलकर भी न करें।
-इस दिन प्रणय संबंध नहीं बनाने चाहिए।
-बसंत पंचमी के दिन बिना स्नान किए भोजन न करें।
-बसंत पंचमी प्रकृति से जुड़ा त्योहार है, इस दिन पेड़-पौधे नहीं काटने चाहिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

बसंत पंचमी का महत्व
माघ माह की पंचमी तिथि को बसंत ऋतु के आगमन और मां सरस्वती के प्राकट्य दिवस पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस समय गेहूं की फसल पूरी तरह पककर तैयार हो जाती है, जो देखने में स्वर्ण की तरह चमकती है। खेतों में सरसों के पीले फूल खिले होते हैं जो बसंत ऋतु के आने का संदेश देते हैं। इसलिए यह तिथि कृषि के लिए भी बहुत महत्व देती है। इसके अलावा सृष्टि को स्वर देने वाली ज्ञान की देवी सरस्वती का जन्म दिवस होने के कारण यह दिन विद्यार्थियों और संगीत के क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए भी बहुत महत्व रखता है। विद्यार्थियों को इस दिन मां सरस्वती (शारदा) की पूजा अवश्य करनी चाहिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इसी दिन सीता की खोज में राम पहुंचे थे शबरी की कुटिया में
इसके साथ ही यह पर्व हमें अतीत की अनेक प्रेरक घटनाओं की भी याद दिलाता है। सर्वप्रथम तो यह हमें त्रेता युग से जोड़ती है। रावण द्वारा सीता के हरण के बाद श्रीराम उसकी खोज में दक्षिण की ओर बढ़े। इसमें जिन स्थानों पर वे गये, उनमें दण्डकारण्य भी था। यहीं शबरी नामक भीलनी रहती थी। जब राम उसकी कुटिया में पधारे, तो वह सुध-बुध खो बैठी और चख-चखकर मीठे बेर राम जी को खिलाने लगी। प्रेम में पगे जूठे बेरों वाली इस घटना को रामकथा के सभी गायकों ने अपने-अपने ढंग से प्रस्तुत किया। दंडकारण्य का वह क्षेत्र इन दिनों गुजरात और मध्य प्रदेश में फैला है। गुजरात के डांग जिले में वह स्थान है जहां शबरी मां का आश्रम था। बसंत पंचमी के दिन ही रामचंद्र जी वहां आये थे। उस क्षेत्र के वनवासी आज भी एक शिला को पूजते हैं, जिसके बारे में उनकी श्रध्दा है कि श्रीराम आकर यहीं बैठे थे। वहां शबरी माता का मंदिर भी है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गोरी को इसी दिन मारा था तीर
बसंत पंचमी का दिन हमें पृथ्वीराज चौहान की भी याद दिलाता है। उन्होंने विदेशी हमलावर मोहम्मद ग़ोरी को 16 बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए, तो मोहम्मद गोरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ अफगानिस्तान ले गया और उनकी आंखें फोड़ दीं। इसके बाद की घटना तो जगप्रसिद्ध ही है। मोहम्मद गोरी ने मृत्युदंड देने से पूर्व उनके शब्दभेदी बाण का कमाल देखना चाहा। पृथ्वीराज के साथी कवि चंदबरदाई के परामर्श पर ग़ोरी ने ऊंचे स्थान पर बैठकर तवे पर चोट मारकर संकेत किया। तभी चंदबरदाई ने पृथ्वीराज को संदेश दिया।
चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान ॥
पृथ्वीराज चौहान ने इस बार भूल नहीं की। उन्होंने तवे पर हुई चोट और चंदबरदाई के संकेत से अनुमान लगाकर जो बाण मारा, वह मोहम्मद ग़ोरी के सीने में जा धंसा। इसके बाद चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने भी एक दूसरे के पेट में छुरा भौंककर आत्मबलिदान दे दिया। (1192 ई) यह घटना भी बसंत पंचमी वाले दिन ही हुई थी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

गुरु गोबिंद सिंह जी का हुआ था विवाह, वीर हकीकत से नाता
मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिन्द सिंह जी का विवाह हुआ था। बसंत पंचमी का लाहौर निवासी वीर हकीकत से भी गहरा सम्बन्ध है। एक दिन जब मुल्ला जी किसी काम से विद्यालय छोड़कर चले गये, तो सब बच्चे खेलने लगे। पर वह पढ़ता रहा। जब अन्य बच्चों ने उसे छेड़ा, तो दुर्गा मां की सौगंध दी। मुस्लिम बालकों ने दुर्गा मां की हंसी उड़ाई। हकीकत ने कहा कि यदि में तुम्हारी बीबी फातिमा के बारे में कुछ कहूं, तो तुम्हें कैसा लगेगा? बस फिर क्या था, मुल्ला जी के आते ही उन शरारती छात्रों ने शिकायत कर दी कि इसने बीबी फातिमा को गाली दी है। फिर तो बात बढ़ते हुए काजी तक जा पहुंची। मुस्लिम शासन में वही निर्णय हुआ, जिसकी अपेक्षा थी। आदेश हो गया कि या तो हकीकत मुसलमान बन जाये, अन्यथा उसे मृत्युदंड दिया जायेगा। हकीकत ने यह स्वीकार नहीं किया। परिणामत: उसे तलवार के घाट उतारने का फरमान जारी हो गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

कहते हैं उसके भोले मुख को देखकर जल्लाद के हाथ से तलवार गिर गयी। हकीकत ने तलवार उसके हाथ में दी और कहा कि जब मैं बच्चा होकर अपने धर्म का पालन कर रहा हूं, तो तुम बड़े होकर अपने धर्म से क्यों विमुख हो रहे हो? इस पर जल्लाद ने दिल मजबूत कर तलवार चला दी, पर उस वीर का शीश धरती पर नहीं गिरा। वह आकाशमार्ग से सीधा स्वर्ग चला गया। यह घटना बसंत पंचमी (23.2.1734) को ही हुई थी। पाकिस्तान यद्यपि मुस्लिम देश है, पर हकीकत के आकाशगामी शीश की याद में वहां वसन्त पंचमी पर पतंगें उड़ाई जाती है। हकीकत लाहौर का निवासी था। अतः पतंगबाजी का सर्वाधिक जोर लाहौर में रहता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

पर्व दिलाता है गुरु रामसिंह कूका की याद 
बसंत पंचमी हमें गुरु रामसिंह कूका की भी याद दिलाती है। उनका जन्म 1816 ई. में बसंत पंचमी पर लुधियाना के भैणी ग्राम में हुआ था। कुछ समय वे महाराजा रणजीत सिंह की सेना में रहे। फिर घर आकर खेतीबाड़ी में लग गये, पर आध्यात्मिक प्रवृत्ति होने के कारण इनके प्रवचन सुनने लोग आने लगे। धीरे-धीरे इनके शिष्यों का एक अलग पंथ ही बन गया, जो कूका पंथ कहलाया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

गुरू रामसिंह, गोरक्षा, स्वदेशी, नारी उद्धार, अन्तरजातीय विवाह, सामूहिक विवाह आदि पर बहुत जोर देते थे। उन्होंने भी सर्वप्रथम अंग्रेजी शासन का बहिष्कार कर अपनी स्वतंत्र डाक और प्रशासन व्यवस्था चलायी थी। प्रतिवर्ष मकर संक्रांति पर भैणी गांव में मेला लगता था। 1872 में मेले में आते समय उनके एक शिष्य को मुसलमानों ने घेर लिया। उन्होंने उसे पीटा और गोवध कर उसके मुंह में गोमांस ठूंस दिया। यह सुनकर गुरु रामसिंह के शिष्य भड़क गये। उन्होंने उस गांव पर हमला बोल दिया, पर दूसरी ओर से अंग्रेज सेना आ गयी। अतः युद्ध का पासा पलट गया। इस संघर्ष में अनेक कूका वीर शहीद हुए और 68 पकड़ लिये गये। इनमें से 50 को सत्रह जनवरी 1872 को मलेरकोटला में तोप के सामने खड़ाकर उड़ा दिया गया। शेष 18 को अगले दिन फांसी दी गयी। दो दिन बाद गुरु रामसिंह को भी पकड़कर बर्मा की मांडले जेल में भेज दिया गया। 14 साल तक वहां कठोर अत्याचार सहकर 1885 ई. में उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उपनिषदों की कथा
उपनिषदों की कथा के अनुसार सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान शिव की आज्ञा से भगवान ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। लेकिन अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे, उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है। तब ब्रह्मा जी ने इस समस्या के निवारण के लिए अपने कमण्डल से जल अपने हथेली में लेकर संकल्प स्वरूप उस जल को छिड़कर भगवान श्री विष्णु की स्तुति करनी आरम्भ की। ब्रम्हा जी के किये स्तुति को सुन कर भगवान विष्णु तत्काल ही उनके सम्मुख प्रकट हो गए और उनकी समस्या जानकर भगवान विष्णु ने आदिशक्ति दुर्गा माता का आव्हान किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

विष्णु जी के द्वारा आव्हान होने के कारण भगवती दुर्गा वहां तुरंत ही प्रकट हो गयीं तब ब्रम्हा एवं विष्णु जी ने उन्हें इस संकट को दूर करने का निवेदन किया। ब्रम्हा जी तथा विष्णु जी बातों को सुनने के बाद उसी क्षण आदिशक्ति दुर्गा माता के शरीर से स्वेत रंग का एक भारी तेज उत्पन्न हुआ जो एक दिव्य नारी के रूप में बदल गया। यह स्वरूप एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिनके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ में वर मुद्रा थे। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

आदिशक्ति श्री दुर्गा के शरीर से उत्पन्न तेज से प्रकट होते ही उन देवी ने वीणा का मधुरनाद किया जिससे संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब सभी देवताओं ने शब्द और रस का संचार कर देने वाली उन देवी को वाणी की अधिष्ठात्री देवी “सरस्वती” कहा। फिर आदिशक्ति भगवती दुर्गा ने ब्रम्हा जी से कहा कि मेरे तेज से उत्पन्न हुई ये देवी सरस्वती आपकी पत्नी बनेंगी, जैसे लक्ष्मी श्री विष्णु की शक्ति हैं, पार्वती महादेव शिव की शक्ति हैं उसी प्रकार ये सरस्वती देवी ही आपकी शक्ति होंगी। ऐसा कह कर आदिशक्ति श्री दुर्गा सब देवताओं के देखते – देखते वहीं अंतर्धान हो गयीं। इसके बाद सभी देवता सृष्टि के संचालन में संलग्न हो गए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

सरस्वती को वागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसन्त पंचमी के दिन को इनके प्रकटोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

श्रीकृष्ण ने सरस्वती को दिया था वरदान
पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था कि बसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी और तभी से इस वरदान के फलस्वरूप भारत देश में बसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की भी पूजा होने लगी जो कि आज तक जारी है। पतंगबाज़ी का बसंत से कोई सीधा संबंध नहीं है। लेकिन पतंग उड़ाने का रिवाज़ हज़ारों साल पहले चीन में शुरू हुआ और फिर कोरिया और जापान के रास्ते होता हुआ भारत पहुँचा।
नोटः यहां दी गई जानकारी सामान्य धार्मिक मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। लोकसाक्ष्य इसकी पुष्टि नहीं करता है।

Bhanu Prakash

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page

Jak tvarovat cukety na Hnojivo způsobuje zázraky: