निजीकरण के खिलाफ बैंककर्मियों की दो दिवसीय हड़ताल शुरू, देश भर के करीब दस लाख कर्मी शामिल, सीपीआइ (एम) का समर्थन
बैंकिंग लॉ अमेडमेंट बिल 2021 के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को निजी हाथों में देने के खिलाफ देशभर के करीब 10 लाख बैंककर्मी आज गुरुवार यानी 17 दिसंबर से दो दिवसीय हड़ताल पर चले गए। इसके बाद शनिवार 19 अक्टूबर को बैंक खुलेंगे और अगले दिन रविवार को अवकाश की वजह से फिर बंद रहेंगे। बैंकों के निजीकरण की प्रस्तावित नीति से बैंककर्मी नाराज है और इसको लेकर विरोध कर रहे हैं। वे बैंकिंग लॉ अमेडमेंट बिल 2021 को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। उत्तराखंड में बैंक कर्मियों की हड़ताल को मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने भी समर्थन किया है। साथ ही पार्टी की उत्तराखंड इकाई ने मोदी सरकार से अविलम्ब नीजिकरण के फैसले को वापस लेने की मांग की है।यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन्स के आह्वान पर उत्तराखंड में भी बैंक कर्मी हड़ताल पर हैं। हड़ताल से पहले उन्होंने बैंक शाखाओं के समक्ष प्रदर्शन कर आंदोलन को मजबूती देने का प्रयास किया। इसके तहत बैंकों के समक्ष प्रदर्शन और गेट मीटिंग का अभियान चलाया गया था। आज देहरादून में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की रैली भी है। ऐसे में बैंककर्मियों ने आज जुलूस नहीं निकालने का निर्णय लिया है। देहरादून में राजपुर रोड स्थित सैंट्रल बैंक की शाखा के समक्ष देहरादून जिले के बैंक कर्मी एकत्र हुए और वहीें, धरना दे रहे हैं। बताया गया है कि प्रदेश भर में दस हजार से अधिक कर्मचारी हड़ताल में शामिल हैं।
इस मौके पर आयोजित सभा को एस एस रजवार, आर के गैरोला, अनिल जैन, वी के जोशी, विनय शर्मा, सी के जोशी, आर पी शर्मा, ओ पी मौर्य, सुधीर रावत, कमल तोमर, हसन अब्बास, मयंक अग्रवाल, दीपशिखा लालेरिया, आकाश उनियाल, प्रदीप डबराल, विजय गुप्ता, आई एस रावत, अखिलेश नवानी, कॉम ओझा, प्रदीप तोमर, आशा शर्मा, अंकित यादव, मनोज ध्यानी, मनीष सेठी, के आर बेलवाल, रजत पांडेय आदि ने संबोधित किया। संचालन यूएफबीयू के संयोजक समदर्शी बड़थ्वाल ने किया। सभा में एआइटीयूसी नेता समर भंडारी, सीटू के नेतालेखराज ने भी समर्थन देते हुए संबोधित किया।
यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन्स के उत्तराखंड संयोजक समदर्शी बड़थ्वाल के मुताबिक, 1969 में निजी क्षेत्र के बैंकों का राष्ट्रीयकरण करते समय शाखाओं की संख्या 8000 थी, जो आज 1,18,000 है। वहीं इन सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पास 1969 में 5000 करोड़ रुपए की जमा राशि थी, जो आज 157 लाख करोड़ रूपए हो चुकी है। इसी प्रकार 1969 में बैंकों द्वारा दिये गए ऋण की राशि 3500 करोड़ रुपए थी, जो आज 110 लाख करोड़ रुपए हो चुकी है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने आमजन के हित में देश के कोने-कोने में बैंक सुविधाओं का विस्तार किया है, जो सस्ते मूल्य और आसान शर्तों पर दी गई हैं। यही नहीं सरकारी हस्तक्षेप से इन बैंकों की गाढ़ी कमाई से पिछले 7-8 वर्षों से हर साल कॉर्पोरेट पूँजीपतियों का एक से डेढ़ लाख करोड़ रुपए का ऋण माफ किया जाता रहा है।
इसके बावजूद बैंकों का ऑपरेटिंग प्रॉफ़िट जो 2009-10 में 76000 हज़ार करोड़ रुपए था, 2020-21 में वो 197000 लाख करोड़ रुपए हो गया है। ऐसे में इन बैंकों का निजीकरन करना बड़े पूँजीपतियों को औने-पौने दामों में जमे-जमाये बैंकिंग क्षेत्र को व्यक्तिगत लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से किया जा रहा है। पिछले बारह वर्षों में सरकारी बैंकों का परिचालन लाभ कुल मिलाकर 16.55 लाख करोड़ रहा है। साथ ही प्राइवेट बैंक एक के बाद एक घाटे में जाकर बंद होते रहे हैं। लगभग 25 प्राइवेट बैंकों को बंद कर सरकारी बैंकों में मर्ज कर दिया गया। कॉर्पोरेट सैक्टर द्वारा भी बैंकों को भारी नुकसान पहुंचाया गया है। अभी भी डूबंत ऋणों की लागत लगभग 6 लाख करोड़ रुपए से अधिक है। जिन्हें औने-पौने दामों पर सैटल करवा दिया जाता है। जो आमजन के लिए बैंकिंग सुविधाओं को बहुत अधिक महंगा साबित करने वाला सिद्ध होगा। इससे रोजगार के साधनों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा और बैंक-कर्मियों की सेवा-शर्तें भी प्रभावित होंगी।
उन्होंने कहा कि ऐसी जन विरोधी नीति का सभी बैंक-कर्मी हर संभव आंदोलन के द्वारा विरोध करते हैं। इस क्रम में 16-17 दिसम्बर 2021 को देश भर के सभी बैंककर्मियों को हड़ताल का निर्णय लेना पड़ा।





