अशोक आनन का गीत- भेड़िया है

हाथों में हथकड़ियां हैं।
पांवों में बेड़ियां हैं।
कैसे हम लाज बचाएं
घर-घर छुपा भेड़िया है।
घरों में जो मिलती नहीं
वे अभागिन देहरियां हैं।
सुनाई कहां देती हैं
गूंगी आज लोरियां हैं।
ग़रीब उन्हें भूल गए
थिगड़ैल वे गुदड़ियां हैं।
ग़रीब को जो काजू थीं
दूर वे मूंगफलियां हैं।
पेट खाली, बदन उघड़े
बाक़ी सब तो बढ़िया है।
नून, प्याज, थाली में वे
नदारद अब चटनियां हैं।
जैसलमेर की न गर्मियां
न शिमला की सर्दियां है।
ग़रीब को जो लुभा रहीं
वे मुफ़्त की रेवड़ियां हैं।
सब्र रख, गुज़र जाएंगी
दु:ख की ये जो घड़ियां हैं।
कवि का परिचय
अशोक ‘आनन’, जूना बाज़ार, मक्सी जिला शाजापुर मध्य प्रदेश।
Email : ashokananmaksi@gmail.com

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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।