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November 8, 2025

स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह रावत से आशा वर्कर्स ने मांगा इस्तीफा, किया खुलासा-पहले फोन से ली जानकारी, फिर दिया धोखा

आशाएं स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह रावत से नाराज हैं। साथ ही उनके इस्तीफे की मांग की जा रही है। इसके साथ ही आशा यूनियन की प्रांतीय अध्यक्ष ने खुलासा किया कि कैबिनेट की बैठक से पूर्व कैबिनेट मंत्री ने उन्हें फोन किया, लेकिन फैसला उलट आया।

हाल ही में कैबिनेट की बैठक में उत्तराखंड में आशा वर्कर्स को लेकर लिए गए फैसले से आशाएं नाराज हैं। उन्हें उम्मीद थी कि स्वास्थ्य निदेशालय की और से शासन को भेजे गए प्रस्ताव के अनुरूप उनके मानदेय में बढ़ोत्तरी की जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। इस पर आशाएं स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह रावत से नाराज हैं। साथ ही उनके इस्तीफे की मांग की जा रही है। इसके साथ ही आशा यूनियन की प्रांतीय अध्यक्ष ने खुलासा किया कि कैबिनेट की बैठक से पूर्व कैबिनेट मंत्री ने उन्हें फोन किया, लेकिन फैसला उलट आया।
कर रही थीं लंबे समय से आंदोलन
उत्तराखंड में 12 सूत्रीय मांगों को लेकर लंबे समय से आशा वर्कर्स आंदोलनरत कर रही थी। इसके तहत दो अगस्त से कार्य बहिष्कार कर गढ़वाल मंडल के सभी जिलों में सीएमओ कार्यालय के साथ ही स्वास्थ्य केंद्रों के समक्ष धरने का लंबा कार्याक्रम चलाया गया। सीटू से संबंद्ध आशा वर्कर्स यूनियन की बीती नौ अगस्त को स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी से यूनियन के प्रतिनिधिमंडल की वार्ता हुई थी। इस पर शासन ने कुछ मांगों पर सहमति दी थी, लेकिन शासनादेश जारी नहीं किया गया। इसके अगले दिन 10 अगस्त को आशाओं ने सीएम आवास कूच भी किया था। इसके बाद 27 अगस्त को आशा वर्कर्स ने विधानसभा के समक्ष प्रदर्शन किया था। 21 अगस्त को सचिवालय समक्ष धरना दिया गया। इस दिन भी आशाओं के प्रतिनिधिमंडल को स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी ने वार्ता के लिए बुलाया। उन्होंने आश्वासन दिया कि उनकी मांगों के संबंध में 24 सितंबर को कैबिनेट की मीटिंग में प्रस्ताव रखा जाएगा। इस आश्वासन पर आशाएं वापस लौटीं।
29 सितंबर को यूनियन ने सचिवालय कूच किया और वहीं धरने पर बैठ गईं। मांग की गई कि मानदेय वृद्धि के संबंध में शासनादेश जल्द जारी किया जाए। देर रात करीब सवा दस बजे आशाओं को फिर स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी ने वार्ता को बुलाया और उन्होंने लिखित में आश्वासन दिया कि आशा वर्कर्स का जो प्रस्ताव है, उसे आगामी कैबिनेट की बैठक में रखा जाएगा। इस पर आशाएं मानी। साथ ही उन्होंने समस्त कार्य बहिष्कार और स्वास्थ्य केंद्रों के समक्ष धरने का कार्यक्रम स्थगित कर दिया।
कैबिनेट में हुआ ये फैसला
मंगलवार 12 अक्टूबर को हुई कैबिनेट की बैठक में तय किया गया कि आशा वर्कर्स को हर महीने साढ़े 6 हजार खाते में दिए जाएंगे। एक हजार रुपये मानदेय में बढ़ोतरी की गई और 500 रुपये प्रोत्साहन राशि है।
फोन पर हुई बात, लेकिन नहीं हुआ पक्ष में फैसला
उत्तराखंड आशा स्वास्थ्य कार्यकर्ता यूनियन की प्रांतीय अध्यक्ष शिवा दुबे के मुताबिक, कैबिनेट के फैसले के दिन 11:00 बजे स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह रावत ने उन्हें फोन करके यह जानकारी ली थी कि अभी आपको क्या मिलता है और आगे क्या चाहिए। इस पर उन्होंने स्वास्थ्य मंत्री से आग्रह किया था कि महानिदेशक की ओर से बनाए गए प्रस्ताव पर अगर हो सके तो उस से बढ़कर मानदेय दिया जाए। नहीं तो उसी पर अमल करवा दीजिए।
उन्होंने कहा कि आशाओं की मेहनत को देखते हुए भी उनका कोई महत्व नहीं समझा गया। जब कोरोना चरम पर था, लोग घरों से नहीं निकल रहे थे। तब सिर्फ आशाएं ही मैदान में थीं। कोरोना के शुरुआती दिनों में तो निजी अस्पतालों ने भी ताले लगा दिए थे। ऐसी स्थिति में आशाओं ने जान की परवाह किए बगैर अपने कर्तव्य का पालन किया। उन्होंने कहा कि जब स्वास्थ्य मंत्री अपने विभाग की ओर से लिए गए फैसले पर कोई भी अमल नहीं करवा सकते, उनके साथ न्याय नहीं करवा सकते तो उन्हें अपने पद पर रहने का भी कोई हक नहीं है। उत्तराखंड की समस्त आशा वर्कर उनके इस गलत फैसले से स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह रावत के इस्तीफे की मांग करती हैं।
आखिर क्यों ठुकराया प्रस्ताव
उन्होंने आशा कार्यकर्ताओं की मांगों पर बनाए गए महानिदेशक के 4000 प्रति माह बढ़ोतरी के प्रस्ताव को ठुकराकर स्वास्थ्य मंत्री तथा सीएम धामी ने आशा वर्कर्स के साथ घोर अन्याय किया है। कोरोना काल में तथा किसी भी समय आशा वर्कर अपनी जान हथेली पर रखकर काम करती हैं। आधी रात को भी अगर किसी मरीज को उनकी आवश्यकता पड़ी, तो वह निसंकोच खुशी खुशी उसकी मदद को तैयार रहीं। स्वास्थ्य महानिदेशक की ओर से भेजे गए 4000 प्रति माह बढ़ोतरी का प्रस्ताव को नजर अंदाज कर हजार या 15 सौ रुपया देकर आशा बहनों की मेहनत को नकार दिया है। जो कि निंदनीय कार्य किया गया है। आशा वर्कर 15 सो रुपए बढ़ोतरी के इस फैसले से बिल्कुल भी खुश नहीं हैं। वे मानवता के नाते काम पर लौटीं, लेकिन सरकार की नाकामी और गलत फैसले से एक बार फिर आहत हुई हैं। उन्होंने कहा कि समस्त आशा वर्कर स्वास्थ्य मंत्री एवं सरकार से महानिदेशक के फैसले पर पुनर्विचार करने की आग्रह करती हैं। साथ ही आशा वर्करों को उनकी मांगों पर कार्रवाई करने की मांग करती हैं।
आशा वर्कर्स की मांगे
आशाओं को सरकारी सेवक का दर्जा दिया जाऐ, न्यूनतम वेतन 21 हजार प्रतिमाह हो, वेतन निर्धारण से पहले स्कीम वर्कर की तरह मानदेय दिया जाए, सेवानिवृत्ति पर पेंशन सुविधा हो, कोविड कार्य में लगी सभी आशाओं को भत्ता दिया जाए, कोविड कार्य में लगी आशाओं 50 लाख का बीमा, 19 लाख स्वास्थ्य बीमा का लाभ, कोरनाकाल में मृतक आशाओं के परिवारों को 50 लाख का मुआवजा, चार लाख की अनुग्रह राशि दी जाए। ओड़ीसा की तरह ऐसी श्रेणी के मृतकों के परिवारों विशेष मासिक भुगतान, सेवा के दौरान दुर्घटना, हार्ट अटैक या बीमारी की स्थिति में नियम बनाए जाएं, न्यूनतम 10 लाख का मुआवजा दिया जाए, सभी स्तर पर कमीशन खोरी पर रोक, अस्पतालों में विशेषज्ञ डाक्टरों की नियुक्ति हो, आशाओं के साथ सम्मान जनक व्यवहार किया जाए, कोरना ड्यूटी के लिये विशेष मासिक भत्ते का प्रावधान हो।
पूर्व में शासन से वार्ता में आशाओं के संबंध में ये लिए गए थे निर्णय
-आशाओं को छह हजार का मानदेय देने की पेशकश स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी ने की। अन्य देय भी मिलते रहेंगे।
– प्रत्येक केन्द्र में आशा रूम स्थापित किये जाऐंगे।
-अटल पेंशन योजना में उम्र की सीमा समाप्त करने का प्रस्ताव केंद्र को भेजा जाएगा।
-आशाओं के सभी प्रकार के उत्पीड़न एवं कमीशनखोरी पर कार्रवाई होगी।
-अन्य सभी मांगों पर सौहार्दपूर्ण कार्यवाही होगी।
-स्वास्थ्य बीमा की मांग पर समुचित कार्यवाही होगी।
-उपरोक्त सन्दर्भ में शासन द्वारा आवश्यक कार्यवाही के बाद अति शीध्र शासनादेश जारी किया जाएगा।

Bhanu Bangwal

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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