उत्तराखंड में आशा स्वास्थ्य कार्यकत्रियों को आठ माह से नहीं हो रहा भुगतान, अब स्वास्थ्य महानिदेशालय में होगा घेराव
उत्तराखंड में दूर दराज के इलाकों में स्वास्थ्य सेवाएं देने वाली आशा कार्यकत्रियों को सरकार की उपेक्षा का शिकार होना पड़ रहा है। हालत ये है कि उन्हें पिछले आठ माह में किसी भी मद का भुगतान नहीं हुआ। ऐसे में उनके परिवार में आर्थिक संकट तक पैदा हो गया है। ऐसे में आशाओं में सरकार के प्रति भी रोष बढ़ता जा रहा है। अब आशाओं ने जून माह में मांगों को लेकर स्वास्थ्य महानिदेशालय के घेराव की चेतावनी दी है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कोरोना की पहली और दूसरी लहर में भी आशाओं के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। सीटू के संबद्ध उत्तराखंड आशा स्वास्थ्य कार्यकर्ता यूनियन के पदाधिकारियों की एक बैठक देहरादून में सीटू कार्यालय में हुई। इसमें आशाओं की समस्याओं के बारे में चर्चा की गई। यूनियन की प्रदेश अध्यक्ष शिवा दुबे ने बताया कि आशा वर्कर्स का आठ महीने से किसी भी मद का पेमेंट नहीं आया है। इसकी वजह से आशा वर्कर्स की स्थिति बहुत ही खराब है। उनको परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि यही नहीं 21 अप्रैल को आशाओं के विभिन्न संगठनों ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से भी मुलाकात की थी। उस दौरान सीएम को समस्याओं को लेकर मांग पत्र भी सौंपा। साथ ही केरल, पश्चमी बंगाल, महाराष्ट्र आदि राज्य सरकार की तरह ही उत्तराखंड में आशाओं को सुविधाएं देने की मांग की गई। साथ ही इन राज्यों के शासनादेशों को भी सीएम को सौंपे गए। इनमें आशाओं के 63 वर्ष तक कार्य करने, सेवानिवृत्ति पर तीन लाख रुपये देने का प्रवधान है। उन्होंने मांग की थी कि आशाओं को 10 हजार वेतन / मानदेय दिए जाने का भी कई राज्यो में प्रावधान है। इसे उत्तराखंड में भी लागू किया जाए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि आशाओं की स्थानीय समस्याओं को लेकर भी बार-बार मांग पत्र देने और अधिकारियों से बात करने के बावजूद समस्या जस की तस बनी हुई है। ऐसे में आशा वर्कर्स में खासी नाराजगी है। विभाग की तरफ से हर समय काम का दबाव डाला जाता है। बिना पैसे के कोई कब तक काम करेगा। आठ महीने से अक्टूबर यानि 2022 से आशा वर्कर्स का वर्क रिपोर्ट के हिसाब से कोई भी पैसा नहीं आया है। अधिकारियों की ओर से आश्वासन के अलावा और कुछ नहीं मिलता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि कई आशा वर्कर का परिवार उन पर ही चलता है। उन्होंने कहा कि यदि 10 जून तक सारे मदों का भुगतान नहीं किया जाता तो आशाएं आंदोलन करेंगी और स्वास्थ्य महानिदेशालय का घेराव किया जाएगा। इससे पहले स्वास्थ्य महानिदेशक के साथ ही एनएचएम की डायरेक्टर को मांग पत्र सौंपा जाएगा। बैठक में सीटू यूनियन के प्रदेश सचिव लेखराज, मामचंद, भगवंत पयाल, आशा यूनियन की जिला अध्यक्ष सुनीता चौहान, सुनीता पाल, नीरज यादव, जयंती, सीमा, साक्षी भारद्वाज, कीर्ति यादव, कलावती चंदोला, और अनीता भट्ट भी उपस्थित थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
आशा वर्कर्स की अन्य मांगे
आशाओं को 10 हजार वेतन / मानदेय दिए जाने का कई राज्यो में प्रावधान है। इसे उत्तराखण्ड में भी लागू किया जाए। आशाओं को सरकारी सेवक का दर्जा दिया जाऐ, न्यूनतम वेतन 21 हजार प्रतिमाह हो, वेतन निर्धारण से पहले स्कीम वर्कर की तरह मानदेय दिया जाए, सेवानिवृत्ति पर पेंशन सुविधा हो, कोविड कार्य में लगी सभी आशाओं को भत्ता दिया जाए, सेवा के दौरान दुर्घटना, हार्ट अटैक या बीमारी की स्थिति में नियम बनाए जाएं, न्यूनतम 10 लाख का मुआवजा दिया जाए, सभी स्तर पर कमीशन खोरी पर रोक, अस्पतालों में विशेषज्ञ डाक्टरों की नियुक्ति हो, आशाओं के साथ सम्मान जनक व्यवहार किया जाए आदि मांगे शामिल हैं।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।