सबको मिली छूट, लोक कलाकारों को नहीं मिल रही अनुमति, बैठे हैं बेरोजगार, इनकी सुनो सरकार
उत्तराखंड में अनलॉक के चरण शुरू होते ही धीरे-धीरे विभिन्न गतिविधियों को छूट मिल गई, लेकिन लोक कलाकारों को अभी भी प्रोग्राम की अनुमति के लिए अधिकारियों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। ऐसे में लोक कलाकार सात माह से अधिक समय से बेरोजगार बैठे हैं। उनकी न सरकार सुन रही है और न ही अधिकारी सुन रहे हैं।
जौनसार बावर सांस्कृतिक महा संगठन के महासचिव बचन सिंह राणा ने लोककलाकारों की व्यथा बयां की। बताया कि लॉकडाउन से बेरोजगार हुए लोक कलाकार अभी भी खाली बैठे हैं। कोविड-19 महामारी के छठे अनलॉक में उत्तराखंड सरकार ने 200 तक की भीड़ में शादी समारोह, सिनेमा हॉल और पौराणिक मेले धार्मिक मेलों में सांस्कृतिक आयोजनों को करवाने की अनुमति दे दी, लेकिन सांस्कृतिक आयोजन की हकीकत इसके उलट है।
उन्होंने बताया कि शादी समारोह बहुत तेजी से हो रहे हैं और सिनेमा हॉल में भी खूब भीड़ देखने को मिल रही है। होटल और बार भी खूब चल रहे हैं, लेकिन उत्तराखंड के लोक कलाकारों का ये बहुत बड़ा दुर्भाग्य है कि उनकी रोजी-रोटी अभी भी बंद पड़ी है। उन्हें कार्यक्रमों की अनुमति देने के लिए एक अधिकारी से दूसरे अधिकारी तक दौड़ाया जा रहा है। इसके बावजूद भी कुछ नहीं हो रहा है।
लोक कलाकारों की परेशानी सुनने वाला कोई नहीं है। सांस्कृतिक व लोक कलाकारों का नोडल विभाग संस्कृति निदेशालय उत्तराखंड है। संस्कृति विभाग को उत्तराखंड के लोक कलाकारों की कोई चिंता नहीं है। इसीलिए अभी तक लोक कलाकारों के लिए रोजगार देने की कोई योजना नहीं बनाई गई है। बस लोक कलाकारों से तो अभी भी संस्कृति विभाग उत्तराखंड मंत्रियों, डीएम, सचिव और उत्तराखंड शासन के चक्कर कटवा रहा है। इसके बावजूद भी सीमित दायरे में किसी कार्यक्रम के आयोजन की अनुमति नहीं मिल रही है।
बचन सिंह राणा के अनुसार, एक अधिकारी अनुमति देते हैं तो दूसरे अधिकारी उस पर अड़ंगा लगा रहे हैं। इन सभी उच्च पद धारकों के चक्कर काटने के बाद बाद भी संस्कृति विभाग उत्तराखंड लोक कलाकारों को रोजगार देने में अपनी मनमानी और गुमराह कर रहा है। इससे लोक कलाकारों की रोजी-रोटी में संकट मंडरा रहा है और उत्तराखंड के लोक कलाकार बहुत ही हताश हैं।
उन्होंने बताया कि ये वक्त मेलों व धार्मिक सांस्कृतिक आयोजन का है। इन दिनों लोक कलाकार कार्यक्रम देकर अपनी रोजी रोटी चला लिया करते थे। कहीं से भी ऐसे कार्यक्रमों की अनुमति नहीं मिल रही। ना ही सांस्कृति विभाग की ऐसे आयोजन कर रहा है। यदि लोक कलाकारों को जल्दी से जल्दी रोजगार नहीं मिला तो लोक कलाकारों को उग्र आंदोलन के लिए बाध्य होना पड़ेगा।