लेखः सच्ची आजादी का महत्त्व-लेखिका हेमलता बहुगुणा

देश को आजाद कराने के लिए बहुत लोगों ने लड़ाई लड़ी। बहुत से लोगों की मौत हो गई तथा कई लोगों ने अपनी धन सम्पत्ति लगा दीं। कई नेता जेल गये और कठिन सी कठिन यातनाएं सही। चंद्रशेखर आजाद, भगतसिंह, लाला लाजपतराय, गांधीजी, जवाहरलाल नेहरू अनेक बड़े बड़े नेताओं और राजाओं ने देश की आजादी के लिए अपने अपने तरीके से लड़ाई लड़ी। कितनो ने अपने जीवन को कुर्बान किया। उन्होंने सोचा हमारा देश आजाद होगा और हमारी बेटी, बहू आजाद और स्वतंत्र रूप से कार्य करेंगी। देश उन्नति के मार्ग पर होगा। मगर ऐसा हुआ नहीं।
देश तो आजाद हुआ पर आजादी नहीं मिली। विदेशियों ने देश पर ऐसी छाप डालीं कि वह समाप्त ही नहीं हुई। जब देश पर विदेशियों का राज था तो वे हमारी बेटी, बहू को बुरी नजर से देखते थे। दुराचार किया अस्मत इज्जत लूटते थे। पुरूषों को घोड़े, गधों की तरह मारते पीटते थे। कठिन से कठिन काम करवाया करते। किसी ने भी ऊंची आवाज में कुछ कह दिया तो उसे जिन्दा गाढ़ देते थे। विदेशियों की ऐसी हरकत से लोगों ने अपनी बेटी बहू को घर के अन्दर रहने को कहा। इससे किसी की बुरी नजर उन पर न पड़े। प्रार्थना करने को कहा। यदि कोई अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते थे तो उसके लिए घर में ही थोड़ी बहुत व्यवस्था की जाती थी।
विदेशियों के आने से पहले हमारे देश की बहू बेटियां स्वतंत्र रहतीं थीं। उस पर कोई दुराचार नहीं होता था। न कोई बुरी दृष्टी उन पर पड़ती थी। हमारे शास्त्रों पुराणों में भी इस प्रकार का वर्णन मिलता है। इस वर्णन में एक स्वतंत्र विचार की आधारशीला है। परंतु जब विदेशियों के इस प्रकार के अत्याचार से परेशान होकर लोग इकट्ठे हुए और अपने देश को आजाद कराया, तब उनके मन में था कि हम सब लोग एक स्वतंत्र देश के नागरिक हैं। हमारी बहू बेटियां स्वतंत्र रूप से रहेंगी। हमें उन्हें अन्दर कैद करके नहीं रखना पड़ेगा। वे लिखेंगी पढ़ेंगी और अपना कार्य स्वयं सक्षमतापूर्ण ढ़ग से करेंगी। अपना देश होगा। अपने सभी लोग होंगे। न किसी पर जोर दबाव होगा। न कोई कुदृष्टि किसी पर होगी। न कोई दुराचार दुष्कर्म होगा। हम सब स्वतंत्र भारत के स्वतन्र्त नागरिक होंगे।
देश आजाद हुआ। कानून बने। शिक्षा न्याय व्यवस्था बनी। परन्तु स्री के प्रति सोच नहीं बदली। अभी भी स्री के प्रति बुराभाव, कुदृष्टि, दुराचार,जघन्य अपराध, उन्हे नीचा दिखाना आदि अभी भी बना है। यदि कोई लड़की अकेले किसी शहर में अनजान जगह अकेली पड़ गयी तो की लोग उसे बुरी नजर से देखने लगेंगे। किसी पर भी भरोशा नहीं है कि कौन अच्छा है और कौन बुरा।
मेरी दृष्टि से देश तो आजाद हुआ पर लोगों में विदेशी छाप छपि की छपि रह गई । मुझे इस बात से बड़ा दुःख होता है कि क्यों नही हमारे देश के लोग किसी लड़की के अकेला रहने पर सहयोग नहीं करते। क्यों नही उस लड़की को अपनी बहन की नजरिया से देखते हैं। लड़की किसी भी जात की हों, किसी भी धर्म की हों, लड़की तो लड़की ही है। उसे अपनी बहन जैसा सहयोग दों। जिस दिन हमारे देश में चोरी, घुसखोरी, काला धन, जातिवाद, धर्मवाद छोड़ देंगे। लोग लड़कियों को निष्कपट भाव से देखने लगेंगे। लोग एक दूसरे के साथ मानवता से रहने लगेगे। उस दिन हमारा देश पूर्ण स्वतन्त्र और आजाद कहलाएगा। इसके साथ ही हमारा देश पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो जाएगा।
लेखिका का परिचय
नाम-हेमलता बहुगुणा
पूर्व प्रधानाध्यापिका राजकीय उच्चतर प्राथमिक विद्यालय सुरसिहधार टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।