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December 13, 2024

जानवरों में भी है काम कम और दिखावा ज्यादा की आदत, पढ़िए शानदार उदाहरण, (कहानी-8, जारी से आगे)

कम काम करने और दिखावा ज्यादा की आदत अक्सर नेताओं देखी जाती रही है, लेकिन अब तो ऐसी आदत हर क्षेत्र में घर कर रही है। सरकारी दफ्तर हो या निजी संस्थान। सभी जगह ऐसे लोगों की जमात मिल जाएगी, जो काम कम करते हैं और दिखावा ज्यादा करते हैं।

कम काम करने और दिखावा ज्यादा की आदत अक्सर नेताओं देखी जाती रही है, लेकिन अब तो ऐसी आदत हर क्षेत्र में घर कर रही है। सरकारी दफ्तर हो या निजी संस्थान। सभी जगह ऐसे लोगों की जमात मिल जाएगी, जो काम कम करते हैं और दिखावा ज्यादा करते हैं। ऐसे लोगों की एक खासियत यह भी रहती है कि वे अपने दिखावे से बॉस को भी प्रभावित कर लेते हैं। मसलन कोई काम करेंगे तो आसपास बैठे लोगों को सुना-सुना कर उसका बखान करेंगे। दूसरों की गलती निकालेंगे और उसे ठीक करने के बजाय गलती का प्रचार ज्यादा करेंगे। ऐसे लोग ऐसा माहौल बनाने में कामयाब रहते हैं कि मानों दफ्तर उनके ही कारण चल रहे हैं। इसके उलट यदि कोई गलती हो जाए तो वह दूसरे के सिर डालने में भी कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। ऐसे लोगों का यह तिलिस्म कब तक चलता है, यह कहा नहीं जा सकता। पर यह भी सच है कि ऐसे लोगों ने तो तरक्की का सबसे सरल उपाय इस परिपाटी को बना दिया है। मीडिया संस्थानों में तो ऐसी आदत के बगैर काम चल ही नहीं सकता है। दूसरों को अपने से कम आंकना, खुद को होशियार और दूसरे को मूर्ख मानने की गलतफहमी ऐसे लोगों में कुछ ज्यादा ही होती है।
मैं तो सोचता था कि दिखावे की आदत सिर्फ मनुष्य में ही होती है, लेकिन जब इस संबंध में विचार किया तो अनुभव हुआ कि यह परिपाटी जानवरों में भी काफी ज्यादा है। हमारे पास करीब 18 साल पहले एक कुत्ता था। डाबरमैन प्रजाति का यह कुत्ता करीब 12 साल तक जिंदा रहा। हालांकि कुत्तों के व्यवहार को लेकर पहले भी सात कहानियां लिखी जा चुकी हैं। इसमें अंतिम कहानी का लिंक नीचे दिया जा रहा है। उस लिंक की मदद से आप एक कहानी को पढ़ने के बाद दूसरी कहानी को पढ़ सकते हैं। क्योंकि हर कहानी में उससे पहली कहानी का लिंक है।
काफी चुलबुले इस कुत्ते का नाम हमने बुल्ली रखा हुआ था। बुल्ली को मैने सुबह गेट के पास पड़े समाचार पत्र उठाकर कमरे तक लाना आदि भी सीखाया हुआ था। साथ ही इस कुत्ते को बिस्तर, कुर्सी व सोफे में चढ़ने डांट पड़ती थी। ऐसे में वह जल्द ही समझ गया था कि उसकी सीमा कहां तक है। उसे कहां बैठना है, कहां नहीं। जब कुत्ते को पुचकारो तो वह उछल-कूद मचाने लगता था। इसी आपाधापी में कई बार वह बिस्तर पर कूद लगा बैठता। फिर अचानक हुई गलती का अहसास होने पर वह भाग कर दूर छिपने की कोशिश करता। उसे डर रहता कि कहीं मार न पड़ जाए।
कुत्तों की ड्यूटी भौंकने की है। शायद इसीलिए इस जानवर को लोग पालते हैं। घर की सुरक्षा उसके भौंकने से ही होती है। जब घर में कोई न रहे तो उसका कर्तव्य और बढ़ जाता है कि वह चौकस रहे। जब भी हमारा पूरा परिवार घर से बाहर जाता तो बुल्ली को भीतर कमरे में बंद कर दिया जाता। जमीन पर उसके बैठने के लिए बिछौना रख दिया जाता। खिड़की के पर्दे खोल दिए जाते। रात के समय भीतर की लाइट भी जला दी जाती।
हम जब भी वापस लौटते, तो हमारे आने का दूर से पता चलते ही बुल्ली भौंकने लगता। मानो वह अपने चौकस होने का अहसास करा रहा है। एक शाम हम किसी विवाह में गए। घर से कुछ दूर मैने मोटरसाइकिल बंद कर दी। पत्नी व बच्चों को आवाज न करने को कहा। मैने कहा कि बुल्ली को अभी पता नहीं है कि हम आ गए। सभी चुप रहना। घर जाकर देखूंगा कि वह क्या कर रहा है।
कुछ दूर ही मोटरसाइकिल खड़ी करके मैंने गेट भी नहीं खोला। खोलने पर आवाज होती, इसलिए मैं दीवार चढ़कर घर अहाते में घुसा। जिस कमरे में बुल्ली था, वहां की खिड़की से भीतर झांका तो नजारा देख कर मुझे हैरानी हुई। बुल्ली तो बिस्तर में लेटा तकिए पर सिर रखकर सो रहा था। अचानक उसे मेरे आने का अहसास हुआ तो छलांग लगाकर वह जमीन पर आ गया और जोर-जोर से भौंकने लगा। यानी उसकी भी वही आदत थी, जो आज चतुर मनुष्य में भी कई बार दिखाई देती है। वह आदत है काम कम और दिखावा ज्यादा करो। बास के निकट आने से पहले कर्मचारी भले ही इंटरनेट गेम खेल रहा हो, लेकिन उसके निकट आते ही बोल बोल कर ऐसे काम करने लगता है, जैसे उससे बढ़कर कोई काम नहीं करता। (जारी)
भानु बंगवाल
पढ़ेंः ये कैसा चौकीदार, जिसकी हर वक्त करनी पड़ती रही चौकीदारी (कहानी- 7, जारी से आगे)

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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