संस्कृति, प्रकृति और विविधताओं से भरपूर एक आदर्श गांव, जानिए मंजगांव के बारे में
उत्तराखंड में पट्टी सकलाना (जौनपुर ) जिला टिहरी का यह गांव। क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा गांव। आबादी की दृष्टि से भी एक बड़ा गांव । कृषि में भी एक बड़ा गांव । जल ,जंगल और जमीन के रूप में भी एक विस्तृत गांव। सुरकंडा शिखर से जोड़ा गाड ( मरोड़ा पुल ) तक फैला हुआ यह एक गांव। ठाकुर वीर सिंह कंडारी का गांव। रूप सिंह कंडारी का गांव। श्रीमती भड्डू देवी का गांव । एक ऐसा गांव जो कि अनेक विविधताओं को भरे हुए हैं। सकलाना घाटी का यह गांव सुरकंडा शिखर से निकलने वाली कालावन – तेगना की जलधारा से अभिसिंचित समृद्धिशाली गांव है। जी हां, नाम है – मंजगांव।
किसी समय ऊपरी सकलाना क्षेत्र की विभिन्न ग्रामसभाओं की एक न्याय पंचायत के साथ एक ही प्रधान भी होता था, जिसे मुल्की प्रधान भी कहते थे। मंजगांव से कलावन- तेगना अब अलग ग्राम पंचायत है। फिर भी यह गांव आज भी सकलाना की शान है।
ठाकुर वीर सिंह कंडारी के जन्मस्थान के कारण भी इस गांव का बड़ा महत्व है । ठाकुर वीर सिंह कंडारी इस क्षेत्र के अकेले दानवीर हुए हैं, जिन्होंने शिक्षण संस्थाओं के अलावा खेल, कौशल विकास, जीव- जंतु, असहाय वर्ग आदि के प्रति भी बड़ा उपकार किया। उनकी समाजसेवी संस्था शहीद नागेंद्र सकलानी सेवा समिति आज भी लोगों को तीन दशक पूर्व की याद दिलाती है। दक्षिणपंथी विचारधारा के होने के बावजूद भी ठाकुर साहब ने एक कामरेड शहीद के नाम पर अपनी समिति बनाई या उनकी निरपेक्षता का एक जीवंत उदाहरण है।
उनका रूपनगर और वीर नगर आज भी उनकी यादों को ताजा करता है । ठाकुर वीर सिंह कंडारी ने एक सपना देखा था। अरबपति होने के बावजूद भी उन्हें अपनी माटी का मोह था । उन्होंने सकलाना के समग्र विकास का जो सपना संजोया था, यद्यपि कालांतर में व कारगर सिद्ध नहीं हो पाया, किंतु उनके जीते जी एक बार सकलाना की पहचान ठाकुर वीर सिंह कंडारी से होती थी।
दिल्ली के एक बड़े व्यवसाई होने के बावजूद भी उनका अपने क्षेत्र से सदैव लगाव रहा। उनके बराबर बड़ा दानवीर मैंने अपने जीवन काल में कोई दूसरा नहीं देखा है। उन्होंने गरीब लोगों के अलावा सामाजिक कार्यों के लिए अपनी पूंजी का उपयोग किया। जिसके प्रमाण आज भी दिखाई देते हैं। शहीद नागेंद्र राजकीय इंटर कॉलेज पुजार गांव का भव्य भवन और सॉन्ग घाटी में अवस्थित विस्तृत समतल मैदान उनके आर्थिक प्रयासों की भी कहानी कहता है।
सकलाना क्षेत्र का पहला प्राथमिक विद्यालय मंजगांव ग्राम सभा स्थित अखोडी में संचालित हुआ। सकलाना मुआफिदारन जी ने अपने पुत्र शिवदत्त की स्मृति में यह विद्यालय खोला था। यद्यपि यह विद्यालय आज भी प्राथमिक विद्यालय है, लेकिन आजादी के पूर्व की कहानी विद्यालय आज भी कहता है।
ग्रामसभा मजगांव बहु जातीय गांव है। यहां कंडारी, कुमाई, डबराल, रमोला, ओड, उनियाल आदि जातियां है। पूर्व में कालावन की पश्चिमी जातियां भी इसी गांव के नागरिक रहे। यहां तक कि सकलाना के अंतिम सीनियर माफी दार स्व श्री राजीव नयन सकलानी जी का निवास स्थान भी इसी ग्रामसभा के अंतर्गत है। इसके मेरी छानी का क्षेत्र भी इसी ग्राम का अंग रहा है।
ठाकुर वीर सिंह कंडारी ने 80 के दशक में सिलवानी नामक क्षेत्र में एक भव्य विद्यालय का निर्माण करवाया जोकि अब राजकीय जूनियर हाई स्कूल के रूप में संचालित है। 90 के दशक में उन्होंने जोड़ागाड ( संगम )नामक स्थान पर अपने नाम पर वीरनगर बनाया। यह स्थान पहले मनु का रवाड के नाम से जाना जाता था। जो कि पूर्व में स्व श्री चतुर्भुज केलवाण को मुआफी दारों के द्वारा गोठ में दिया गया था । वीरनगर के सामने, कद्दूखाल – कुमाल्डा मोटर मार्ग पर उन्होंने भव्य शिवालय का निर्माण करवाया जो क्षेत्रवासियों के लिए आस्था का केंद्र है।
ग्राम पंचायत मजगांव एक कृषि प्रधान क्षेत्र है ।यह स्वाबलंबी तथा आत्मनिर्भर गांव है। आज संपूर्ण मजगांव ग्राम क्षेत्र अटल आदर्श सड़क योजना से आच्छादित है। व्यावसायिक खेती के लिए प्रसिद्ध है । यह क्षेत्र सड़क मार्ग की सुलभता के कारण और अधिक संपन्नता की ओर बढ़ता जा रहा है। अनुपम सुंदरता को संजोए , वन क्षेत्र से आच्छादित, समतल क्यारियों से सजा हुआ, सर्पिल नदी के किनारे शोभायमान अत्यंत आकर्षक और सुंदर है।
लेखक का परिचय
सोमवारी लाल सकलानी, निशांत।
सुमन कॉलोनी, चंबा, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।
सचिव – उत्तराखंड शोध संस्थान (रजि.)
चंबा (टिहरी गढ़वाल) यूनिट।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।