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August 2, 2025

148 वर्ष बाद अद्भुत संयोगः शनि जयंती और साल का पहला सूर्य ग्रहण आज, वट सावित्री व्रत भी आजः डॉ. आचार्य सुशांत राज

ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि यानी 10 जून को विशेष संयोग पड़ रहा है। इस दिन सूर्य और शनि का अद्भुत योग बन रहा है जो इससे पहले 148 वर्ष पूर्व देखने को मिला था। शनि जयंती के दिन ही साल का पहला सूर्य ग्रहण पड़ रहा है।

ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि यानी 10 जून को विशेष संयोग पड़ रहा है। इस दिन सूर्य और शनि का अद्भुत योग बन रहा है जो इससे पहले 148 वर्ष पूर्व देखने को मिला था। शनि जयंती के दिन ही साल का पहला सूर्य ग्रहण पड़ रहा है। हालांकि, ये भारत के अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख में ही आंशिक दिखाई देगा। ऐसे में इस बार लगने वाला ग्रहण भारत के अन्य हिस्सों में दिखाई नहीं देगा। ऐसे में इसका सूतक काल भी मान्य नहीं होगा और न किसी राशियों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा। ग्रहण दोपहर एक बजकर 42 मिनट से आरंभ होकर शाम 6 बजकर 41 मिनट पर समाप्त होगा। यही नहीं, आज वट सावित्री व्रत भी है। इसकी पूजन विधि भी यहां बताई जा रही है।
इन देशों में दिखेगा ग्रहण, भारत में नहीं पड़ेगा बुरा असर
डॉक्टर आचार्य सुशांत राज के मुताबिक वलयकार सूर्यग्रहण ग्रीनलैंड, उत्तर-पूर्वी कनाडा, उत्तरी अमेरिका में दिखाई पड़ेगा। शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या जिन राशियों पर चल रही हैं, उनके पास शनिदेव को प्रसन्न करने का अच्छा मौका है। शनि जयंती के दिन ही सूर्य ग्रहण का संयोग भी पड़ रहा है। इससे पहले 26 मई 1873 में ऐसा संयोग पड़ा था।
ऐसे बन रहे हैं संयोग
इस बार लगने वाला सूर्य ग्रहण, वृषभ राशि और मृगशिरा नक्षत्र में पड़ने वाला है। मृगशिरा नक्षत्र के स्वामी मंगल ग्रह को माना गया है। इस समय वक्री शनि मकर राशि में है और उनकी दृष्टि मीन व कर्क राशि में विराजमान मंगल ग्रह पर है। शनि को सूर्यपुत्र कहा गया है। शनि जयंती के दिन साढ़ेसाती और ढैय्या वालों को विशेष पूजा करनी चाहिए। शनि जिस राशि में विराजमान होते हैं। उसके आगे और पीछे की राशि व उस राशि पर भी शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव शुरू हो जाता है। ऐसे में इस समय शनि मकर में स्थित है। वहीं इनके पहले की राशि धनु और बाद की राशि कुंभ पर साढ़ेसाती जारी है।
इन राशियों पर है शनि की ढैया
इसके अलावा जिस राशि में शनि स्थित होते हैं उसके षष्ठम और दसवीं राशि पर शनि की ढैया चलती है। ऐसे में फिलहाल मिथुन और तुला राशि वालों पर शनि की ढैया जारी है। यही कारण है कि इन्हें और बुरे प्रभावों से बचने के लिए शनि जयंती पर विशेष पूजा-अर्चना करके उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश करनी चाहिए। शनि देव के अशुभ प्रभावों से बचने के लिए व्यक्ति को हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए। धार्मिक कथाओं के अनुसार हनुमान जी के भक्तों पर शनि की बुरी नजर नहीं पड़ती है।
शनि जयंती और धार्मिक मान्यता
धार्मिक मान्यता के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को शनि देव का जन्म हुआ था इसलिए प्रत्येक वर्ष इस दिन को शनि जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस बार शनि जयंती 10 जून 2021 दिन गुरुवार को मनाई जाएगी। शनि को देव और ग्रह दोनों का दर्जा दिया गया है। इनके विषय में मान्यता है कि ये पल भर में रंक को राजा और राजा को भी रंक बना सकते हैं। ज्योतिष में शनि को क्रूर ग्रह माना जाता है। ज्यादातर लोग शनि का नाम सुनकर ही घबरा जातें हैं, क्योंकि इनको लेकर कई तरह की भ्रांतियां हैं। इन्हें मारक, अशुभ और दुख कारक माना जाता है, किंतु ये मनुष्य को उसके कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते हैं। ये बुरे कर्म करने वालों के लिए दंड नायक हैं तो अच्छे कर्म करने वालों को शनिदेव अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं, इसलिए इन्हें न्यायधीश और कर्मफलदाता कहा जाता है।
शनिदेव की पूजा सूर्योदय से पहले या बाद में
शनिदेव सूर्य पुत्र हैं परंतु फिर भी इनकी पूजा सदैव सूर्योदय से पहले या फिर सूर्यास्त के बाद ही की जाती है। धार्मिक कथाओं के अनुसार शनिदेव की अपने पिता से वैरभाव रखते हैं। शनिदेव के कई मंदिर पूरे भारतवर्ष में बने हुए हैं लेकिन महराष्ट्र के शिंगणापुर में बना शनि मंदिर खास महत्व रखता है माना जाता है यह शनिदेव का जन्मस्थान है। यहां पर गर्मी, सर्दी और बरसात के मौसम में शनिदेव सदैव बिना छत्र के रहते हैं। उनकी प्रतीकात्मक शिला एक खुले स्थान पर स्थापित है। शिव जी शनिदेव के गुरु हैं इसलिए शिव जी की पूजा आराधना करने वाले पर शनिदेव अपनी कुदृष्टि नहीं करते हैं।
हनुमान भक्तों पर कृपा दृष्टि
हनुमान भक्तों पर भी शनिदेव अपनी अशुभ दृष्टि नहीं डालते हैं। इस विषय में पौराणिक कथा मिलती है कि हनुमान जी ने शनिदेव को रावण के बंधन से मुक्त कराया था। शनि देव सूर्य के पत्नी छाया के पुत्र हैं, इनके भाई यम और मनु हैं और इनकी बहन यमुनाजी हैं। शनिदेव अपनी बहन यमुना से विशेष प्रेमभाव रखते हैं। शनिदेव सभी ग्रहों में सबसे धीमी गति से भ्रमण करने वाले ग्रह हैं। शनै-शनै चलने के कारण इन्हें शनैश्चर भी कहा जाता है।
ज्योतिष के अनुसार शनि तुला राशि में उच्च और मेष राशि में नीच रहते हैं। मकर और कुंभ राशि के ये स्वामी हैं। इनका वर्ण काला है और ये नीले वस्त्र धारण करते हैं। ये गिद्ध पर सवारी करते हैं। इनके एक हाथ में धनुष तो दूसरा हाथ वरमुद्रा में रहता है। इनका अस्त्र लोहे का इसलिए लोहा इनकी धातु मानी गई है।
शनि जयंती शुभ मुहूर्त : ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि 09 जून को दोपहर 1 बजकर 57 मिनट से शुरू होगी, जो कि 10 जून को शाम 04 बजकर 22 मिनट पर समाप्त होगी।
वट सावित्री व्रत से होती है अखंड सौभाग्य की प्राप्ति
डॉक्टर आचार्य सुशांत राज ने जानकारी देते हुए बताया की हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत बेहद खास और महत्वपूर्ण होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और संतान प्राप्ति के लिए रखती हैं। हर साल ज्येष्ठ माह में कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि के दिन ये व्रत रखा जाता है। इस व्रत को रखने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस साल 10 जून को वट सावित्रि व्रत रखा जा रहा है।
इस व्रत की तिथि को लेकर भिन्न मत हैं। स्कंद पुराण तथा भविष्योत्तर पुराण के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को यह व्रत करने का विधान है, वहीं निर्णयामृत आदि के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या को व्रत करने की बात कही गई है। तिथियों में भिन्नता होते हुए भी व्रत का उद्देश्य एक ही है- सौभाग्य की वृद्धि और पतिव्रत के संस्कारों को आत्मसात करना।
कई व्रत विशेषज्ञ यह व्रत ज्येष्ठ मास की त्रयोदशी से अमावस्या तक तीन दिनों तक करने में भरोसा रखते हैं। इसी तरह शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी से पूर्णिमा तक भी यह व्रत किया जाता है। विष्णु उपासक इस व्रत को पूर्णिमा को करना ज्यादा हितकर मानते हैं। वट सावित्री व्रत में ‘वट’ और ‘सावित्री’ दोनों का विशिष्ट महत्व माना गया है। वट या बरगद के पेड़ का भी विशेष महत्व है।
पुराणों में यह स्पष्ट किया गया है कि वट में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास है। इसके नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा आदि सुनने से मनोकामना पूरी होती है। वट वृक्ष अपनी विशालता के लिए भी प्रसिद्ध है। वट वृक्ष ज्ञान व निर्वाण का भी प्रतीक है। भगवान बुद्ध को इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। इसलिए वट वृक्ष को पति की दीर्घायु के लिए पूजना इस व्रत का अंग बना। महिलाएँ व्रत-पूजन कर कथा कर्म के साथ-साथ वट वृक्ष के आसपास सूत के धागे परिक्रमा के दौरान लपेटती हैं।
अमावस्या तिथि प्रारंभ : 9 जून 2021 को दोपहर 01:57 बजे से
अमावस्या तिथि समाप्त : 10 जून 2021 को शाम 04:20 बजे
व्रत पारण : 11 जून 2021 को
वट सावित्रि पूजा सामग्री
सावित्री-सत्यवान की मूर्तियां, बांस का पंखा, लाल कलावा, धूप, दीप, घी, फल, पुष्प, रोली, सुहाग का सामान, बरगद का फल, जल से भरा कलश।
वट सावित्री व्रत पूजा विधि
वट सावित्री व्रत के दिन स्नान आदि से निवृत होने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद वट सावित्री व्रत और पूजा का संकल्प लें। माता सावित्री और सत्यवान की पूजा करें। साथ ही जल से वटवृक्ष को सींचे और कच्चा धागा वटवृक्ष के चारों ओर लपेट दें। इस दौरान उसकी तीन बार परिक्रमा करें। बड़ के पत्तों के गहने बनाएं और उसे पहनकर सावित्री-सत्यवान की पुण्यकथा को सुनें। यह कथा दूसरे को भी सुनाएं। अब भीगे हुए चने एक पात्र में निकाल दें, कुछ रुपए के साथ अपनी सास के पैर छूकर आशीष लें। पूजा के समापन पर बांस के एक पात्र में वस्त्र तथा फल किसी ब्राह्मण को दान करें।
वट सावित्री व्रत का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माता सावित्री अपने पति के प्राण यमराज से मुक्त कराकर ले आई थीं। इसी वजह से इस व्रत का विशेष महत्व है। इस व्रत में महिलाएं वट वृक्ष और सावित्री-सत्यवान की पूजा करती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं का वास होता है, जिसके कारण सुहागिनों को विशेष फल की प्राप्ति होता है। मान्यता के अनुसार, वट सावित्री व्रत की कथा को सुनने मात्र से ही व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। इस व्रत से सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य और संतान की प्राप्ति होती है।
सच होती भविष्यवाणियां
डॉक्टर आचार्य सुशांत राज के मुताबिक, हिंदू धर्म ऋषि मुनियों की तप साधना एवं अपनी संस्कृति के कारण विश्व विख्यात है। हिंदू धर्म में क्या होना है इसका भी पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। यही कारण है कि हमारे भविष्य वक्ता, ज्योतिषविद् कई घटनाओं की पूर्व में ही भविष्यवाणियां कर देते थे जो आने वाले समय में सही साबित होती है। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में एक ऐसे ज्योतिषविद् हैं, जिन्होने वर्ष 2019 में ट्डिडियों, विषाणु, प्राकृतिक आपदा, गृह युद्ध जैसी देश विदेश के लिए भविष्यवाणी की थी, जो शत प्रतिशत सही साबित हुयी। टिड्डियो के कारण खडी फसलों का क्या हाल हुआ यह भी पूरे देश ने देखा। 2020 में जो वायरस आया उसने अभी तक दुनिया को हिला कर रखा हुआ है।
हाल ही में एक विश्व विख्यात व्यक्ति ने कोरोना वायरस को लेकर बयान जारी किया था, जिसमें उन्होने कहा था कि किसी भी ज्योतिषविद् ने कोरोना वायरस को लेकर कोई भविष्यवाणी नही की थी। डॉ. राज ने बताया कि उन्होंने अपने पंचाग में वर्ष 2019 में ही वायरस के संबंध में भविष्य वाणी कर दी थी। जो सही साबित हुयी है। इतना ही नही कोरोना वायरस की दुसरी लहर जब पीक पर थी उस समय उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि 15 जून तक वायरस अपने आप ही कम हो जाएगा। उनकी यह भविष्यवाणी भी सटीक बैठी और वायरस मई के मध्य में ही कम होना शुरू हो गया था।
डा. आचार्य सुशांत राज के मुताबिक उन्होंने जब-जब जो-जो भविष्यवाणी कि वह सही साबित हुयी है। सत्ता परिवर्तन से लेकर नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की घोषणा भी आज से आठ साल पहले कर दी थी। उस समय देश में कांग्रेस का राज था और डा. मनमोहन सिंह देश की कमान संभाल रहे थे। लोकसभा चुनाव की घोषणा भी नही हुयी थी। यह भविष्यवाणी कितनी सफल हुयी यह सभी के सामने है।
आचार्य का परिचय
नाम डॉ. आचार्य सुशांत राज
इंद्रेश्वर शिव मंदिर व नवग्रह शनि मंदिर
डांडी गढ़ी कैंट, निकट पोस्ट आफिस, देहरादून, उत्तराखंड।
मो. 9412950046

Bhanu Bangwal

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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