Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

December 14, 2024

15 दिसंबर को बंद होंगे आदिबदरी धाम के कपाट, जानिए इस मंदिर की ऐतिहासिकता और धार्मिक महत्ता

उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित आदिबदरी धाम के कपाट आगामी 15 दिसंबर को परंपरागत ढंग से पौष माह के लिए बंद कर दिए जाएंगे। आदिबदरी धाम के कपाट हर साल एक माह के लिए बंद होते हैं। अगले साल 14 जनवरी 2021 को मकर संक्रांति के दिन मंदिर के कपाट खोले जाएंगे। कपाट बंद होने की तिथि आज घोषित की गई। साथ ही कपाट बंद होने के दिन क्षेत्र की कीर्तन मण्डलियों की ओर से कीर्तन भजन की प्रस्तुतियां होंगी। कोरोना संक्रमण को देखते हुए कपाट बंदी के आयोजन को भी सीमित कर दिया गया। यानी विभिन्न दलों के सांस्कृतिक आयोजन नहीं होंगे।
मंदिर परिसर में नरेंद्र चाकर की अध्यक्षता में आयोजित आदिबदरी धाम मंदिर प्रबंध समिति की बैठक में मंदिर के पुजारी चक्रधर थपलियाल ने कपाट बंद करने की तिथि के मुहूर्त की घोषणा की।

उन्होंने कहा कि मंगलवार 15 दिसंबर को 7 बजे रात्रि को कपाट विधि विधान मंत्रोच्चारण के साथ बंद कर दिए जाएंगे। कपाट बंद करने से पूर्व की रात्रि को निर्वाण दर्शन पर सामुहिक कड़ाह भोग लगेगा। बैठक में सर्वसम्मति से तय हुआ कि इस बार कोविड को देखते हुए विद्यालयों व महिला मंगल दलों व युवक मंगल दल व अन्य सांस्कृतिक दलों के कार्यक्रमों का आयोजन नहीं किया जाएगा। बैठक में विनोद नेगी, नरेश बरमोला, हिमेन्द्र कुंवर, विजय चमोला, यशवंत भंडारी, बलवंत भंडारी, प्यारे शाह, भुवन बरमोला, लक्ष्मण नेगी उपस्थित थे।
गढ़वाली वीरों से पुराना रिश्ता है आदि बदरीधाम का
श्री आदि बदरी धाम और गढ़वाली वीरों का बहुत पुराना रिश्ता है। गढ़वाल में पंवार राजाओं के समय से ही गढ़ सैनिकों की रण ललकार ‘बदरी विशाल लाल की जय’ रही है। आज भी गढ़वाल राइफल्स के सैनिकों की ‘बैटल क्राई’ वहीं है। पंवार वंश (888-1512) चांदपुर गढ़ी में शासन करता रहा तथा आदिबदरी को रण इष्ट के रूप में पूजता रहा। चाँदपुर गढ़ी आदिबदरी से ढाई किलोमीटर की दूरी पर दायीं ओर स्थित है। अब आदिबदरी मंदिर और चाँदपुर गढ़ी के मध्य डाक बंगला बन गया है, लेकिन पहले गढ़ी से मंदिर तक सीधे नजर पड़ती थी। राजा, सम्पन्नता के लिए इस मन्दिर में पूजा करता था। इस बात का प्रमाण यह भी है कि आदिबदरी की प्रमुख मूर्ति विष्णु भगवान की है किन्तु इसके दांये अधोहस्त में पद्म नहीं है, यह हाथ वरद मुद्रा में है। मूर्ति का रजोगुणी प्रभाव निश्चित ही राजा और उसकी सेना को पूज्य रहा होगा।
स्थानीय नाम है मोठा
आदि बदरी का स्थानीय नाम ‘मोठा’ है। शायद यह नाम मूलत: नारायण मठ रहा होगा जो अपभ्रशित होकर मोठा हो गया। यह माना जाता है कि बदरी श्रृंखला के पाँच तीर्थों आदिबदरी, ध्यानबदरी, योगबदरी, विशालबदरी और भविष्यबदरी की पुर्नस्थापना शंकराचार्य ने की। इन स्थानों पर ऋग्वेद में पुरूष सूक्त के रचियता ऋषिनारायण पहले तपस्या कर चुके थे। उनकी पहली तपस्थली का नाम प्रारम्भ में नारायण मठ ही था।
अपसराएं यहां करती थीं क्रीड़ा
बाद में आठवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने जब इस तीर्थ में पुन: जोत जलाई और मन्दिरों का पुर्ननिर्माण किया तो यह आदिबदरी कहलाया जाने लगा। आदिबदरी के समीप पहाड़ पर समतल क्षेत्र है। जिसे भराड़ीसैंण कहा जाता है। वर्तमान में यह उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित हो चुकी है। कहते हैं कि उर्वशी आदि अप्सरायें यहाँ क्रीडा करती थी। एक किंवदन्ती के अनुसार ऋषि नारायण वर्तमान आदिबदरी में जब तपस्यालीन थे।
तब देवताओं के राजा इन्द्र ने उन्हें विचलित करने के लिए अप्सराओं को भेजा। ऋषि नारायण ने अप्सराओं के मान मर्दन के लिए अपनी जंघा पर प्रहार कर एक निद्य सुन्दरी को प्रकट कराया, जिसके समक्ष सभी अप्सराये फीकी पड़ गयीं और अपने गर्व पर स्वयं खेद प्रकट करने लगी। जंघा से जिस सुन्दरी का जन्म हुआ वह उर्वशी कहलायी। यह तीर्थ हरिद्वार-बदरीनाथ मोटर मार्ग पर हरिद्वार से 194 किलोमीटर दूरी पर स्थित कर्णप्रयाग से 194 किलोमीटर दूर है। यहाँ अब तेरह मंदिर ही शेष हैं। आज से सौ वर्ष पूर्व तक यहाँ सोलह मंदिर थे।

Website | + posts

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page