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December 13, 2024

उत्तराखंडः आप नेता रविंद्र जुगरान ने वर्ष 2019 में वनाग्नि रोकने को लेकर किेए गए खर्च पर लगाया घोटाले का आरोप

उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी के नेता रविन्द्र जुगरान ने पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत और उनके दरबारियों पर गंभीर आरोपों में संलिप्त होने के आरोप लगाए। उन्होंने वनाग्नि रोकने को लेकर बड़े घोटाले का आरोप लगाते हुए इसकी उच्च स्तरीय जांच की मांग की।

उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी के नेता रविन्द्र जुगरान ने पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत और उनके दरबारियों पर गंभीर आरोपों में संलिप्त होने के आरोप लगाए। उन्होंने वनाग्नि रोकने को लेकर बड़े घोटाले का आरोप लगाते हुए इसकी उच्च स्तरीय जांच की मांग की।
पत्रकारों से बातचीत में जुगरान ने कहा कि भारत सरकार ने वर्ष 2019 में वृक्षारोपण एवं वनाग्नि रेाकने हेतु 47,436 करोड की राशि स्वीकृत की थी, जिसमें 27 राज्यों में उत्तराखंड राज्य भी शामिल था। इसके तहत आधुनिक तकनीक और सेटेलाइट की मदद से वनों में वनाग्नि से बचने समेत कई तकनीक शामिल थी।
जुगरान ने कहा कि आम आदमी पार्टी की इस प्रोजेक्ट को लेकर चिंता, शंका, अंदेशा इस बात को लेकर है कि जिस प्रकार से पायलट प्रोजेक्ट हेतु कंपनी का चयन किया गया, वो प्रथम दृष्टि में किसी विशेष कंपनी या समूह पर महरबानी करने के उद्देश्य से सभी मानकों को ताक पर रखकर सारी प्रक्रिया अपनाई गई है। जो कहीं से भी न्यायोचित नहीं है।
इस पायलेट प्रोजेक्ट को देते हुए भारी भरकम बजट को ठिकाने लगाने का खेल प्रारंभ करने के लिए जो ताना बाना बुना गया है, उसकी जांच होनी चाहिए। समय रहते ऐसा नहीं किया जाता है तो हम न्यायालय की शरण में जाने पर विचार विमर्श कर सकते हैं।
उन्होंने सवाल किया कि जिस कंपनी को यह पायलेट प्रोजेक्ट दिया गया, उसके पास इस तरह के कार्यों का कोई भी अनुभव नहीं है। इस कंपनी की मुख्य कंपनी यूएफओ पर 2015 में 1100 एकड के जमीन घोटाले में उनके निदेशक नरेन्द्र हेते व संजय गायकवाड पर भ्रष्टाचार के केस चल रहे हैं। इस कंपनी को 11 फरवरी 2020 को एफएसआई की ओर से पायलेट प्रोजेक्ट के लिए सरकारी पत्र कैसे जारी किया गया।
उन्होंने कहा कि कोरोना काल में कैसे एक विदेशी कंपनी रजोरटेक, जिसके पास यह तकनीक थी, उसने आनन फानन में एक अन्य कंपनी के साथ अनुबंध खत्म किया। जो कि 31 जुलाई तक था। उसके बाद जिस वीईपीएल को प्रोजेक्ट मिला था। उसके साथ सांठगांठ की और उसी पायलेट प्रोजेक्ट के आधार पर टेंडर बनाना शुरू किया गया। इसे 17 दिसंबर 2020 को जारी किया, जिसकी निविदाएं 8 फरवरी 2021 को खोली गई ।
जुगरान के मुताबिक 7 फरवरी 2021 को रैणी गांव चमोली में आपदा आई और राज्य सरकार व भारत सरकार उससे निपटने की कोशिश कर रही थी। वहीं दूसरी ओर उसी दिन उत्तराखंड सरकार के मुख्यमंत्री कार्यालय के खास लोग अगले ही दिन 8 फरवरी को वीपीईएल कंपनी के मुंबई स्थित कार्यालय में किस विशेष प्रयोजन से गए हुए थे। इसी दिन निविदा खोली जानी थी। मुख्यमंत्री के औद्योगिक सलाहकार केएस पंवार समेत उसमें वहां कौन कौन लोग शामिल थे ?
उन्होंने सवाल उठाया कि-कंपनी के निदेशक अभय हेते व गिरीश बदेखर के साथ ये लोग किसी खास मकसद में लगे थे, जबकि अगले दिन 9 फरवरी को ये लोग मुंबई से देहरादून इंडिगो की एक ही फलाईट 6 ई 6857 से शाम 6 बजे देहरादून पहुंचे।
कहा कि कंपनी और सरकार में विशेष बैठकों का दौर चला और 12 फरवरी 2021 को तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने वन मुख्यालय देहरादून में वनाग्नि प्रबंधन एंव सुरक्षा की बैठक में अधिकारियों को उक्त विशेष कार्य के निर्देश दिए कि वन मुख्यालय पर तत्काल इंटीग्रेटेड फायर कमांड एंड कंटोल सेंटर की स्थापना की जाए। ये वनाग्नि प्रबंधन के लिए देश का पहला सैंटर होगा। सवाल ये है कि जब देश में ऐसा कोई कार्य किया ही नहीं गया तो तकनीक पर सवाल उठना लाजमी है।
जुगरान ने सवाल उठाया कि- वीईपीएल और रजोरटेक की साझेदारी के बाद जो पायलेट प्रोजेक्ट के आधार पर प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनाई गई, एफआरआई से उसके आधार पर ही 5 राज्यों के लिए उत्तराखंड समेत टेंडर 17 दिसंबर 2020 को निकाला।
उन्होंने कहा कि हमारी चिंता यह है कि स्वीकृत 47,436 करोड रुपये की राशि का सदुपयोग हो। साथ ही वृक्षारोपण एवं वनाग्नि प्रबंधन के लिए स्वीकृत धनराशि की बंदरबांट को रोका जा सके।
उन्होंने मांग की है कि एफएसआई जिसका मुख्यालय देहरादून में है एवं पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के कार्यकाल में वृक्षारोपण एवं वन अग्नि प्रबंधन हेतु फारेस्ट फायर हेतु साफ्टवेयर की जांच हो। उन्होंने कहाा कि हमें सूत्रों के आधार पर जो जानकारी मिली है वो हम केन्द्र और राज्य सरकार के संज्ञान में ला रहे हैं। ज्ञात रहे कि 15 मार्च को एफएसआई देहरादून में इस मामले में प्रेजेंटेशन होनी थी। इसलिए अब सरकार संज्ञान लेकर इस मामले की सत्यता उजागर करती है तो बेहतर होगा। अन्यथा हम न्यायालय की शरण में जाने पर भी विचार कर सकते हैं।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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