डॉ. पुष्पा खंडूरी की कविता- ज़रूरी तो नहीं
ख्वाब देखना तो हसरत है इन आंखों की।
पर हर ख्वाब ही मुकम्मल हो जाए ये ज़रूरी तो नहीं॥
बहुत खाई हैं ठोकरे उसने, ज़ुस्तज़ू भी थी उसे पाने की।
पर हर बार धोखा ही हो जाए जरूरी तो नहीं॥
वो बहुत रुचता है मुझे, एतबार भी है, उस पर।
पर वो सिर्फ मेरा ही होके रह जाए ज़रूरी तो नहीं॥
यूं न भागो बंद आँखें करके,हर रोशनी की ओर।
हर जर्रा ही आफ़ताब हो जाए,जरूरी तो नहीं॥
चमक – दमक तो सचमुच कुंदन सी है उसकी।
पर हर चमकती चीज सोना ही हो ज़रूरी तो नहीं॥
जद्दो-जहद तो बहुत की उसने मंजिल को पाने की।
पर हर बार असफल ही होगा ज़रूरी तो नहीं॥ (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
छोड़ तो दिया घरौंदा उसने, पर पंख अभी भी तैयार नहीं थे फड़फड़ाने को।
पर अब की बार भी ज़मींदोज़ ही होगा यह जरूरी तो नहीं॥
अपने ख़ून को खौलने तो दे ,आवाज बुलंद करके तो देख।
हर बार जोर – जबरदस्ती उसकी ही चलेगी ज़रूरी तो नहीं॥
ख्वाब देखना तो आदत है इन आँखों की,
हर ख्वाब मुक्कमल ही हो जाए ये ज़रूरी तो नहीं॥
कवयित्री की परिचय
डॉ. पुष्पा खंडूरी
प्रोफेसर, डीएवी (पीजी ) कॉलेज
देहरादून, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।