उत्तराखंड में महारैली को फ्लाप करने को सरकार ने की परेड मैदान की नाकाबंदी, बावजूद इसके उमड़ा जनसैलाब
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में 24 अक्टूबर को मूल निवास और सशक्त भू कानून की मांग को लेकर राज्य आंदोलनकारी, राजनीतिक, सामाजिक संगठनों की ओर से आहूत महारैली को फ्लाप करने के लिए जिला प्रशासन ने पूरी ताकत लगा दी। परेड मैदान से महारैली का आयोजन किया गया। वहीं, आयोजन स्थल तक पहुंचने के सारे रास्तों की पुलिस ने नाकेबंदी कर दी। सर्वे चौक, कनक तिराहा, लैंसडौन तिराहा हो या फिर आराघर की तरफ से परेड मैदान तक पहुंचने वाले अन्य रास्ते, सब को बैरिकेड लगाकर बंद कर दिया गया। मकसद परेड मैदान तक कोई ना पहुंच पाए। इसके बावूजद स्वाभिमान महाराली में जनसैलाब उमड़ पड़ा। हालांकि, पवेलियन मैदान में बीजेपी का कार्यक्रम भी चल रहा था। इसमें पहुंचने का रास्ता साफ था, लेकिन महारैली के लिए जहां लोग एकत्र हो रहे थे, वहां तक पहुंचने वाले सारे रास्तों की नाकेबंदी साफ नजर आ रही थी। रैली स्थल तक या फिर प्रेस क्लब तक पहुंचने के लिए पत्रकारों को भी पापड़े बेलने पड़ गए। ना तो सरकार की मंशा ही कामयाब हो पाई और ना ही जिला प्रशासन के प्रयास। रैली तक पहुंचने के लिए लोगों ने जहां तहां अपने वाहनों को सड़क किनारे पार्क तक दिया। इसके बाद लोग पैदल ही रैली स्थल तक पहुंचे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
महारैली में बड़ी संख्या में युवा और तमाम सामाजिक और राजनीतिक संगठन शामिल होने के लिए प्रदेश भर से पहुंचे। लोग परेड मैदान में एकत्रित हुए और यहां सरकार के खिलाफ नारेबाजी भी की। रैली परेड ग्राउंड से होते हुए कांन्वेंट स्कूल, एसबीआई चौक, बुद्धा चौक, दून अस्पताल, तहसील चौक होते हुए कचहरी स्थित शहीद स्मारक पहुंची। आज उत्तराखंड आंदोलन के प्रणेता स्व. इंद्रमणि बडोनी का भी जन्मदिवस है। ऐसे में कचहरी में बडोनी जी के साथ ही शहीदों को श्रद्धांजलि देने के बाद रैली का समापन किया गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
मूल निवास, भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने कहा कि यह उत्तराखंड की जनता की अस्मिता और अधिकारों की लड़ाई है। इस आंदोलन से संबंधित कोई भी फैसला आम जनता के बीच से ही निकलेगा। बताया कि इस आंदोलनल की प्रमुख मांगें- प्रदेश में ठोस भू कानून लागू करने, शहरी क्षेत्र में 250 मीटर भूमि खरीदने की सीमा लागू हो। ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए। गैर कृषक की ओर से कृषि भूमि खरीदने पर रोक लगे। पर्वतीय क्षेत्र में गैर पर्वतीय मूल के निवासियों के भूमि खरीदने पर तत्काल रोक लगाई जाए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि राज्य गठन के बाद से वर्तमान तिथि तक सरकार की ओर से विभिन्न व्यक्तियों, संस्थानों, कंपनियों आदि को दान या लीज पर दी गई भूमि का ब्यौरा सार्वजनिक किया जाए। प्रदेश में विशेषकर पर्वतीय क्षेत्र में लगने वाले उद्यमों, परियोजनाओं में भूमि अधिग्रहण या खरीदने की अनिवार्यता है या भविष्य में होगी, उन सभी में स्थानीय निवासी का 25 प्रतिशत और जिले के मूल निवासी का 25 प्रतिशत हिस्सा सुनिश्चित किया जाए। ऐसे सभी उद्यमों में 80 प्रतिशत रोजगार स्थानीय व्यक्ति को दिया जाना सुनिश्चित किया जाए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
संघर्ष समिति की ये हैं प्रमुख मांगें
– प्रदेश में ठोस भू कानून लागू हो।
– शहरी क्षेत्र में 250 मीटर भूमि खरीदने की सीमा लागू हो।
– ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगे।
– गैर कृषक की ओर से कृषि भूमि खरीदने पर रोक लगे।
– पर्वतीय क्षेत्र में गैर पर्वतीय मूल के निवासियों के भूमि खरीदने पर तत्काल रोक लगे।
– राज्य गठन के बाद से वर्तमान तिथि तक सरकार की ओर से विभिन्न व्यक्तियों, संस्थानों, कंपनियों आदि को दान या लीज पर दी गई भूमि का ब्यौरा सार्वजनिक किया जाए।
– प्रदेश में विशेषकर पर्वतीय क्षेत्र में लगने वाले उद्यमों, परियोजनाओं में भूमि अधिग्रहण या खरीदने की अनिवार्यता है या भविष्य में होगी, उन सभी में स्थानीय निवासी का 25 प्रतिशत और जिले के मूल निवासी का 25 प्रतिशत हिस्सा सुनिश्चित किया जाए।
– ऐसे सभी उद्यमों में 80 प्रतिशत रोजगार स्थानीय व्यक्ति को दिया जाना सुनिश्चित किया जाए।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।