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February 4, 2025

शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के प्रतिनिधि अविमुक्तेश्वरानंद महाराज ने गंगेश्वर महादेव ने किया जलाभिषेक, जानिए यहां की महत्ता

उत्तराखंड में नंदप्रायग के राजबगठी क्षेत्र में गंगेश्वर महादेव महादेव मंदिर की महत्ता धर्म प्रचार से जुड़ी है। इस मंदिर में आज ज्योर्तिपीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज के प्रतिनिधि स्वामी 1008 अविमुक्तेश्वरानंद महाराज पहुंचे।

उत्तराखंड में नंदप्रायग के राजबगठी क्षेत्र में गंगेश्वर महादेव महादेव मंदिर की महत्ता धर्म प्रचार से जुड़ी है। इस मंदिर में आज ज्योर्तिपीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज के प्रतिनिधि स्वामी 1008 अविमुक्तेश्वरानंद महाराज पहुंचे। यहां उन्होंने महादेव का जलाभिषेक किया। चलिए इस मंदिर की महत्ता बताते हैं।
शीतकाल के लिए जब बदरीनाथ धाम के कपाट बंद हो जाते हैं तो रावल देश भर के भ्रमण कर धर्म प्रचार के लिए जाते हैं। इस प्रचार के अभियान की शुरूआत इसी गंगेश्वर महादेव के मंदिर से की जाती है। यहां पहले रावल जलाभिषेक करते हैं। फिर इसके बाद धर्म प्रचार अभियान की शुरुआत करते हैं। इस बार कोरोनाकाल के चलते सारे आयोजन सूक्ष्म रूप से किए गए। रावल ईश्वर प्रसाद नंबूदरी भी इस बार इस मंदिर में नहीं पहुंच पाए।
वहीं, आज ज्योर्तिपीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के प्रतिनिधि स्वामी 1008 अविमुक्तेश्वरानंद महाराज मंदिर पहुंचे। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के नेतृत्व में ज्योर्तिपीठ के स्वर्ण ज्योति महा महोत्सव का आयोजन हो रहा है। इसके तहत देश भर में कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं।
उत्तराखंड के चमोली जिले में नंदप्रयाग घाट मोटर मार्ग पर तेफला से करीब आधा किलोमीटर तक पैदल चलकर इस मंदिर में पहुंचा जाता है। शास्त्र मान्यता है कि नंदप्रयाग से बदरिकाश्रम की धार्मिक सीमा शुरू होती है। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने नंदप्रयाग के पास गंगेश्वर महादेव मंदिर में जलाभिषेक कर श्रद्धालुओं को इस स्थान की महत्ता बताई। साथ ही भक्ति ज्ञान दिया।


उन्होंने ज्योर्तिपीठ की शंकराचार्य परंपरा पर चर्चा करते हुए कहा कि पूर्व में ज्योर्तिपीठ कई वर्षों तक शंकराचार्य विहीन रही। तब शंकराचार्य के नैष्ठिक ब्रहमचारी ने आगे आकर बदरीनाथ की पूजा का जिम्मा संभाला था। जो रावल के रूप में टिहरी नरेश के सौजन्य से आज भी पूजा संभाल रहे हैं। उन्होने धर्म प्रचार के साथ लोक कल्याण के अन्य कार्यक्रम आयोजित किए जाने का संकल्प भी लिया।
मान्यता है कि दशानन रावण की तप स्थली होने के चलते इस क्षेत्र का नाम दशमोली यानी अब दशोली है। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि इस दिव्य स्थान में प्रतिवर्ष धार्मिक आयोजन निसंदेह सराहनीय है। उन्होंने 2021 में यहां पर शिव पुराण के साथ पवित्र नंदाकिनी नदी के किनारे काशी की तर्ज पर गंगा आरती का आयोजन करने की बात कही।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने मंदिर के जीर्णोद्वार में अहम योगदान निभाने का मंदिर के महंत माधव गिरी महाराज, योगेंद्र सिंह रावत व धार्मिक आयोजनों में प्रमुख भूमिका निभाने के लिए कथाव्यास विजय प्रसाद पांडे को साल ओढ़ाकर सम्मानित भी किया। कार्यक्रम में कमलेश्वर मंदिर श्रीनगर के महंत आशुतोष पुरी, ब्रहमचारी श्रवणानंद, ब्रहमचारी रामानंद, स्वामी सदाशिव ब्रहोन्द्रानंद, केशवानंद मौजूद रहे।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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