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August 24, 2025

हरेला पर्व 17 जुलाई को, शासन ने छुट्टी घोषित की रविवार 16 जुलाई की, राज्यकर्मियों ने सीएम को दिलाया ध्यान

अमूमन पिछले कई साल से अमूमन कई बार हरेला पर्व के अवकाश को लेकर कन्फ्यूजन की स्थिति बनी रहती है। शासन हरेला पर्व का अवकाश रविवार को घोषित कर देता है। ऐसे में बाद में तिथियों में बदलाव करना पड़ता है। इस बार भी हरेला पर्व 17 जुलाई यानि कि सोमवार को है, लेकिन शासन ने हरेला पर्व की छुट्टी 16 जुलाई को घोषित की है। यहां ये भी बताना जरूरी है कि 16 जुलाई को रविवार है। ऐसे में शासन की छुट्टी की घोषणा का कोई औचित्य नहीं है। राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद ने इस संबंध में मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर 17 जुलाई को हरेला पर्व के मद्देनजर सार्वजनिक अवकाश घोषित करने की मांग की है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद उत्तराखंड के प्रान्तीय प्रवक्ता आर पी जोशी ने बताया कि आज इस संबंध में परिषद के प्रदेश अध्यक्ष अरुण पांडे और महामंत्री शक्ति प्रसाद भट्ट के हस्ताक्षरयुक्त एक ज्ञापन सीएम पुष्कर सिंह धामी के कार्यालय में प्रेषित किया। इसमें कहा गया है कि उत्तराखण्ड के लोकपर्व हरेला का दिनांक 16 जुलाई 2023 को घोषित सावर्जनिक अवकाश को परिवर्तित कर 17 जुलाई 2023 को घोषित किया जाए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उन्होंने कहा कि हिन्दू पंचांगों के अनुसार इस वर्ष हरेला पर्व 17 जुलाई 2023 को मनाया जाना है। इस पर्व के लिए सार्वजनिक अवकाश 16 जुलाई 2023 को घोषित किया गया है। अतः मुख्यमंत्री से निवेदन किया गया है कि उक्त अवकाश को परिवर्तित करके 17 जुलाई घोषित किया जाए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

साल में तीन बार मनाया जाता है हरेला
हरेला पर्व साल में तीन बार मनाया जाता है। पहला चैत्र माह में, दूसरा श्रावण माह में और तीसरा अश्विन माह में। हरेला का मतलब है हरियाली। उत्तराखंड में गर्मियों के बाद जब सावन शुरू होता है। तब चारों तरफ हरियाली नजर आने लगती है। उसी वक्त हरेला पर्व मुख्य रूप से मनाया जाता है। यह पर्व खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक है। जिसे उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

हरेला लोकपर्व जुलाई के महीने में मनाया जाता है। जिससे 9 दिन पहले मक्‍का, गेहूं, उड़द, सरसों और भट जैसे 7 तरह के बीज बोए जाते हैं और इसमें पानी दिया जाता है। कुछ दिनों में ही इसमें अंकुरित होकर पौधे उग जाते हैं, उन्हें ही हरेला कहते हैं। इस हरियाली (पौधों) को देवताओं को अर्पित किया जाता है। घर के बुजुर्ग इसे काटते हैं और छोटे लोगों के कान और सिर पर इनके तिनकों को रखकर आशीर्वाद देते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उत्तराखंड की संस्कृति से युवाओं जोड़ने के लिए होता है ये काम
अगर परिवार का बेटा या बेटी घर से बाहर होते हैं, तो कुछ लोग उनके पास यह हरेला डाक के माध्यम से भी भेजते हैं। उत्तराखंड की संस्कृति में युवाओं और बुजुर्गों को जोड़ने वाला हरेला पर्व संस्कृति के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण में भी अहम भूमिका निभाता है। पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाले संगठन और समाजसेवी इस त्योहार को बड़ी धूमधाम के साथ मनाते हैं। पौधरोपण करने और पेड़-पौधों को सुरक्षित बड़ा करने के लिए भी लोगों को प्रेरित किया जाता है।
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Bhanu Prakash

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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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