इप्टा का स्थापना दिवस, जनगीत, कहानी के साथ ही विरासत और चर्वाक नाटक का किया पाठ
भारतीय जन नाट्य संघ या इंडियन पीपल्स थियेटर असोसिएशन (इप्टा) की आज ही के दिन 80 बरस पहले स्थापना हुई थी। इप्टा ने आजादी के आन्दोलन में शामिल होकर साम्राज्यवाद से लोहा लिया। देश मे एकता, भाईचारे सद्भाव की भावना का विकास करने के लिए हमारे नायकों ने सांस्कृतिक आन्दोलन किए। यह यात्रा आज भी जारी है। इप्टा की स्थापना दिवस के मौके पर आज गुरुवार को देहरादून में बल्लूपुर चौक के समीप जलनिगम यूनियन कार्यालय में उत्तराखंड इप्टा की ओर से कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस दौरान जनगीत, कहानी के साथ ही विरासत और चर्वाक नाटक का पाठ किया गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इस मौके पर इप्टा की राष्ट्रीय समिति के सदस्य धर्मानंद लखेड़ा ने कहा कि आज हमारा सामना पूँजीवादी फासीवाद ताकतों से है। यह वही ताकतें हैं जो सामाजिक विघटन के द्वारा ताकत हासिल करती हैं। तमाम तरह के ढोंग, पाखंड, अश्लील, फूहड सामग्री को बढ़ावा देकर युवावर्ग को मतिभ्रम का शिकार बनाना इनका उद्देश्य है। तर्क और विवेक से दूर रखना ही इनका अघोषित एजेंडा है। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक, तर्कपूर्ण, न्याय, प्रेम, बंधुत्व से ओतप्रोत कलाकर्म इप्टा की जिम्मेदारी है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इप्टा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ वी के डोभाल ने कहा कि आज़ादी के पहले इप्टा के सामने जो चुनौतियां थीं, आज उस तरह की कोई चुनौती नहीं। अब जो भी चुनौतियां हैं, वह भी कम नहीं हैं। इप्टा के सामने सबसे बड़ी चुनौती सांगठनिक तौर पर मज़बूत होना है। देश के बंटवारे और कम्युनिस्ट आंदोलन के बिखराव ने संगठन के स्तर पर इसमें बहुत बड़ी शिथिलता आई है। इप्टा को भारी नुकसान पहुंचा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि नये कलाकार, लेखक, निर्देशक इससे जुड़ नहीं रहे और जो जुड़ते हैं, उनमें वह वैचारिकता एवं संगठन के प्रति प्रतिबद्धता नहीं। रंगमंच, टेलीविजन या फ़िल्म में करियर की ख़ातिर वे इप्टा से जुड़ते हैं। थोड़ा सा ही मुक़ाम पाते ही वे इससे अलग हो जाते हैं। यही नहीं, संगठन की नई इकाईयां बन नहीं रहीं। जो हैं, वे ठीक ढंग से काम नहीं कर रहीं। उनके ऊपर कई तरह के दबाव हैं। कभी अच्छी स्क्रिप्ट, कलाकार, तो कभी फंड के अभाव में नाटक नहीं हो पाते। उन्होंने चर्वाक नाटक के कुछ अंश पढ़े। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अशोक कटारिया ने सुनील पवार की नज़्म मेहनतकश जो भट्टी में तपता है, इंसान वही मैं हूँ। कूड़े में जो बिनता है, समान वही मैं हूँ। हरिओम पाली ने जनगीत, नज़्म के साथ नंद किशोर मैठाणी की मार्मिक और मेहनतकश लोगों की कहानी अस्तित्व की लड़ाई का पाठ किया। उन्होंने कहा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर जिस तरह देश के अंदर आए दिन हमले होते रहते हैं, उसने नाट्यकर्म को और भी ज़्यादा मुश्किल बना दिया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि कोई भी हुकूमत हो, ख़िलाफ़ आवाज़ उठाए। अवाम को उसके हुक़ूक़ और इंसाफ़ के लिए बेदार करे। यही वजह है कि इप्टा और उस जैसे तमाम जन संगठनों को सत्ता की सरपरस्ती हासिल नहीं। उल्टे हुकूमत इस तरह के जनवादी, प्रगतिशील संगठनों और उससे जुड़े लेखकों—कलाकारों को परेशान करने का कोई मौक़ा अपने हाथ से जाने नहीं देती। उनकी हर गतिविधि पर नज़र रखी जाती है। आगे इस माहौल में कोई तब्दीली आएगी, इस बात का इंतज़ार किए बिना, इप्टा और इप्टा से जुड़े सभी लेखक, कलाकारों, निर्देशकों का दायित्व है कि वे अपने इंक़लाबी इतिहास से प्रेरणा लेकर एक सुनहरे भविष्य के निर्माण की दिशा में आगे बढ़ें। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
असद खान ने कहा कि जनपक्षीय सांस्कृतिक आंदोलन का पूरे देश में विस्तार करें। क्योंकि मौजूदा सियासी हालात में यह आंदोलन पहले से भी कहीं ज़्यादा ज़रूरी है। स्थापना दिवस के अवसर पर डॉ वी के डोभाल को डॉक्टरेट की उपाधि मिलने पर देहरादून इप्टा की और से समानित किया गया। इस अवसर पर बसंत, एटक के जिला मंत्री कॉमरेड अनिल उनियाल, हरिनारायण, लक्ष्मीनारायण भट्ट, सुदामा प्रसाद, असद खान और रामबचन गुप्ता आदि मौजूद रहे।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।