देखें वीडियोः मई दिवस पर श्रमिक संगठनों का हल्ला बोल, दून में निकाली गई रैली, केंद्र सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों पर प्रहार
आज एक मई को पूरी दुनियाभर में मई दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सभी मजदूर यूनियनें अपने कार्यालयों व कार्य स्थलों पर झंडा रोहण कर शिकागो के शाहिद मजदूरों को श्रद्धांजलि देती हैं। इस बार मई दिवस की प्रासांगिता इसलिए भी है कि जिस काम के घंटे कम करने के लिए शिकागो में श्रमितों ने आंदोलन किया और अपनी जान दी, वही परंपरा भारत में फिर से शुरू करने के प्रयास हो रहे हैं। कारपोरेट जगत को लाभ पहुंचाने के लिए श्रमिकों के काम के घंटों को आठ घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे करने के प्रयास में केंद्र सरकार जुटी है। साथ ही देश की वर्तमान मोदी सरकार की ओर से सन 2020 में 44 श्रम कानूनों में से 29 प्रभावशाली श्रम कानूनों को समाप्त कर उनके स्थान पर 4 श्रम संहितायें बनाई गई हैं। इन्हें कोरोनाकाल के समय संसद में पास कर दिया गया। साथ ही अडानी जैसे कारपोरेट जगत को लाभ पहुंचाने के विरोध में आज के मई दिवस पर श्रमिकों का प्रदर्शन रहा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उत्तराखंड की राजधानी दून में निकाला गया जुलूस
मई दिवस के दिन उत्तराखंड में विभिन्न यूनियनों ने प्रातः आपने कार्यालयों व कार्यस्थलों पर झंडारोहण कर मई दिवस के शहीदों को याद करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की। साथ ही विचार गोष्ठियों का आयोजन किया गया। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में सांय 5:30 बजे गांधी पार्क देहरादून से मई दिवस का जलूस निकला गया। ये जुलूस मुख्य बाजारों से होकर गुजरा। इस कार्यक्रम में मुख्य रूप से सीटू, एटक से जुड़ी यूनियने, लाल झंडे की यूनियने, बैंक, बीमा, रक्षा क्षेत्र की यूनियनें आदि ने हिस्सेदारी की। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
आज साँय 5:30 बजे से संयुक्त मई दिवस समारोह समिति देहरादून उत्तराखंड के बैनर तले सीटू , एटक, रक्षा, बैंक, बीमा, आंगनवाड़ी, आशा वर्कर, भोजन माताओ, स्कूल कर्मचारियों सहित निर्माण श्रमिको ने हिस्सेदारी की। जुलूस गांधीपार्क से शुरू हो कर राजपुर रोड, घण्टाघर, पलटन बाजार, राजा रोड, गांधी रोड, तहसील चौक, दर्शन लाल चौक, घण्टाघर , राजपुर रोड से होते हुए वापस गांधीपार्क पहुंचकर समाप्त हुआ। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ये रहे वक्ता
इस मौके पर गांधी पार्क में आयोजित सभा में सीटू के प्रांतीय सचिब लेखराज ने कहा कि वर्तमान में मई दिवस ओर अधिक प्रासंगिक हो गया है, क्योंकि मोदी सरकार द्वारा मजदूरों के 44 श्रम कानूनों में से 29 प्रभावशाली कानूनों को समाप्त कर उनके स्थान पर चार श्रम संहितायें बना कर संसद में पास कर दी है। जो कि मालिको व पूंजीपतियों को मजदूरों का शोषण करने कि खुली छूट प्रदान करते हैं। इनमे न्यूनतम वेतन पर कोड, औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947, ट्रेड यूनियन अधिनियम, भविष्य निधि, राज्य कर्मचारी बीमा निगम, सहित 29 श्रम कानूनों को बदल कर चार श्रम संहितायें बनाई गई हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि इनमे फिक्स टर्म एम्प्लॉयमेंट, 12 -12 घंटे काम वर्कमैन कम्पनशेषन, यूनियन बनाने के अधिकार, संस्थानों में औचक निरीक्षण पर रोक, इंस्पेक्टर राज खत्म करने के नाम पर औद्योगिक संस्थानों को शोषण की खुली छूट इत्यादी श्रमिको के अधिकारों को समाप्त कर उन्हें गुलाम बनाने की ओर धकेल जा रहा है। आरएसएस व भाजपा के मजदूरों को साम्प्रदायिकता के आधार पर उनकी एकता को तोड़ने के प्रयासों के खिलाफ मजदूरों की एकता मजबूत करना ओर अपने अधिकारों के लिए संघर्षो को आगे बढ़ाया जाएगा। तभी सच्चे मायने में मई दिवस के मजदूरों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इस अवसर पर एटक के प्रांतीय महामन्त्री अशोक शर्मा ने कहा कि आज मजदूरों पर मोदी सरकार व प्रान्तों में भाजपा सरकारो द्वारा चौतरफा हमला किया जा रहा है। मजदूर डट कर मुकाबला करेंगे और इस साम्प्रदायिक व घोर मजदूर विरोधी सरकार को उखाड़ फेंकेगी। उन्होंने कहा कि देश मे महंगाई, भ्र्ष्टाचार ने आम मजदूरों का जीना मुहाल हो गया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इन्होंने भी व्यक्ति किए विचार
इस अवसर पर सीटू के प्रांतीय अध्यक्ष राजेंद्र नेगी , एटक के प्रांतीय उपाध्यक्ष समर भंडारी , जगदीश कुकरेती, जगदीश चंद, किसान सभा के प्रांतीय महामन्त्री गंगाधर नौटियाल, चित्रा, भगवंत पयाल, राम सिंह भंडारी, अनिल कुमार, शिवा दुबे , मोनिका ने विचार व्यक्त किए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ये यूनियन भी रहीं शामिल
इस अवसर पर स्कूल कर्मचारी, दून वेष्ट मैनेजमेंट के कर्मचारी, चाय बागान के श्रमिक, रक्षा कर्मचारी, बैंक, बीमा, आशा आंगनवाड़ी, भोजनमाता, रोडवेज कर्मचारी,FRI, IMA मजदूर, औद्योगिक क्षेत्र लांघा रोड, सारा इंडस्ट्री के श्रमिक उपस्थित थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
जुलूस में शामिल लोग
इस अवसर पर विनय मित्तल, संजीव मवाल, दयाकिशन पाठक, पुरषोतम, प्रमोद पाठक, एस.एस.बिष्ट, अभिषेक भंडारी, तारानाथ पांडेय, हरीश कुमार, सोनू कुमार, सुखपाल, संजू कुमार, एस.एस.राणा, बच्चन सिंह, मंगरु सिंह, संजू सिंह, रामप्रसाद गुप्ता, नरेंद्र राणा, लक्ष्मी नारायण, मोहन सिंह, तिलक राज, सुधीर कुमार, सुरेश रावत, बलबीर रावत, एस.एफ.आई के प्रांतीय अध्यक्ष नितिन मलेठा, शैलेन्द्र परमार, अमन कण्डारी, रामप्रसाद मिश्रा, अनिल गोस्वामी, दिनेश नौटियाल, संजय कुमार, विक्रम सिंह आदि भारी संख्या में वर्कर्स उपस्थित थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
यहां भी मनाया गया मई दिवस
इस अवसर पर लेखराज ने बताया कि आज प्रातः से ही सीटू द्वारा घर -घर से कूड़ा उठाने वाली गाड़ियों पर काम करने वाले वर्करों द्वारा झंडा रोहण किया गया और सभा की गई। लांघा रोड पर स्थित टाल ब्रोस, चायबागान, हथियारी पावर हाउस, डाकपत्थर बस स्टैंड पर चालक परिचालकों, ujvnl के सफाई कर्मचारी, ई रिक्शा वर्कर्स यूनियन सेलाकुई, न्यू लाइफ सेंटर स्कूल, गढ़वाल मंडल विकास निगम, कन्या गुरुकुल महाविद्यालय, ऋषिकेश कर्ण प्रयाग रेल लाइन में पैकेज 1 में, मसूरी आदि क्षेत्रों में मई दिवस को मनाया गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इसलिए मनाया जाता है मई दिवस
प्रत्येक वर्ष दुनिया भर के कई हिस्सों में 1 मई को मई दिवस अथवा ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस जनसाधारण को नए समाज के निर्माण में श्रमिकों के योगदान और ऐतिहासिक श्रम आंदोलन का स्मरण कराता है। 1 मई, 1886 को शिकागो में हड़ताल का रूप सबसे आक्रामक था। शिकागो उस समय जुझारू वामपंथी मज़दूर आंदोलनों का केंद्र बन गया था। एक मई को शिकागो में मज़दूरों का एक विशाल सैलाब उमड़ा और संगठित मज़दूर आंदोलन के आह्वान पर शहर के सारे औज़ार बंद कर दिये गए और मशीनें रुक गईं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
शिकागो प्रशासन एवं मालिक चुप नहीं बैठे और मज़दूरों को गिरफ्तारी शुरू हो गई। जिसके पश्चात् पुलिस और मज़दूरों के बीच हिंसक झड़प शुरू हो गई, जिसमें 4 नागरिकों और 7 पुलिस अधिकारियों की मौत हो गई। कई आंदोलनकारी श्रमिकों के अधिकारों के उल्लंघन का विरोध कर रहे थे। काम के घंटे कम करने और अधिक मज़दूरी की मांग कर रहे थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
19वीं सदी का दूसरा और तीसरा दशक काम के घंटे कम करने के लिये हड़तालों से भरा हुआ है। इसी दौर में कई औद्योगिक केंद्रों ने तो एक दिन में काम के घंटे 10 करने की मांग भी निश्चित कर दी थी। इससे ‘मई दिवस’ का जन्म हुआ। अमेरिका में वर्ष 1884 में काम के घंटे आठ घंटे करने को लेकर आंदोलन से ही शुरू हुआ था। उन्हें गिरफ्तार किया गया और आजीवन कारावास अथवा मौत की सजा दी गई। अब इस दिन को कर्मचारी, श्रमिक अपने अधिकार की लड़ाई के लिए मनाते हैं।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।