डॉ. सुशील उपाध्याय की कविता-रुक जाओ राहुल
रुक जाओ राहुल!
यशोधरा!
अब कैसे रो पाओगी?
तुम्हीं ने तो राहुल से कहा था-
जाओ,
पिता से मांगो
अपना दाय, अपना हिस्सा!
पिता, चाहे बुद्ध क्यों न हो।
राहुल,
जिसने पहली बार देखा
पिता को,
संन्यासी, बुद्ध पिता को।
कैसे मांगे और क्या-क्या मांगे।
फिर भी, मां की सीख
जाओ, वे जा रहे हैं,
अपना दाय मांगो।
थिर गति से जाते बुद्ध और
पीछे उनका अतीत
जो मांग रहा है भविष्य के सपने
दाय के रूप में।
…..
मां ने कहा, मैं आपसे मांगू
पुत्र होने का दाय।
मुस्कुराये बुद्ध,
मुस्कुराया राहुल!
दो मुस्काने एक हो गई!
न वहां कोई पिता था, ना पुत्र,
फिर भी
बुद्ध ने गैरिक चीवर उतारा
दो हिस्से किए
और सौंप दिया एक राहुल को।
पिता का कर्तव्य पूरा हुआ,
पिता जो कि बुद्ध हैं।
अब राजपथ पर
एकसाथ चल रहे हैं
अतीत और आगत।
बुद्ध और अनुगामी राहुल,
…..
महल के शिखर तक दौड़ी यशोधरा
राहुल!
रुक जाओ, रुक जाओ राहुल!
ये तुम्हारा दाय नहीं है,
ये पिता द्वारा सौंपा दाय नहीं है।
न बुद्ध ने सुना, न राहुल ने।
कैसे सुनेंगे बुद्ध दुनियावी इच्छाएं ?
बताओ,
अब, कैसे रो पाओगी यशोधरा !
कवि का परिचय
डॉ. सुशील उपाध्याय
प्रोफेसर एवं पत्रकार
हरिद्वार, उत्तराखंड।
9997998050

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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।