आज है उत्तराखंड का लोक पर्व फूलदेई, विधान सभा भवन में जीवंत हुई लोक संस्कृति, जानिए इस पर्व के बारे में
उत्तराखंड में आज से फूलदेई पर्व की धूम है। पर्वतीय अंचलों में ये त्योहार बच्चों की ओर से मनाया जाता है। उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में इन दिनों विधानसभा का बजट सत्र आयोजित किया जा रहा है। ऐसे में विधानसभा में भी पर्व के मौके पर लोकसंस्कृति के रंग नजर आए। फूलदेई के अवसर पर क्षेत्र के बच्चों ने पारम्परिक मांगल गीतों के साथ रंग-बिरंगे प्राकृतिक पुष्प बरसाए। विधान सभा अध्यक्ष रितु भूषण खंडूड़ी के साथ कैबिनेट मंत्रियों एवं विधायकों ने बच्चों से भेंट कर अपनी परम्परा से जुड़ने के लिए उनका उत्साहवर्धन किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
चैत्र मास की संक्रांति को आयोजित होने वाले उत्तराखण्ड के लोक पर्व फूलदेई के अवसर पर भराड़ीसैंण स्थित विधानसभा भवन में बड़ी संख्या में क्षेत्र के बच्चों ने पारम्परिक मांगल गीतों के साथ रंग-बिरंगे प्राकृतिक पुष्पों की वर्षा की। बच्चों के साथ विधानसभा अध्यक्ष श्रीमती ऋतु खण्डूड़ी, कैबिनेट मंत्री श्री सतपाल महाराज, डा. धनसिंह रावत, श्री सौरभ बहुगुणा, डा. प्रेम चन्द अग्रवाल, विधायक अनिल नौटियाल आदि ने बच्चों से भेंट कर अपनी लोक संस्कृति एवं लोक परम्पराओं से जुड़ने के लिए उनका उत्साह वर्धन किया। विधान सभा अध्यक्ष के साथ सभी ने इस पावन पर्व की बधाई देते हुए कहा कि हमारे पर्व हमें प्रकृति से जुड़ने तथा उसके संरक्षण का संदेश देते हैं। अपनी लोक परम्पराओं एवं समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संजोये रखने की भी जरूरत बतायी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
चैत के महीने की संक्रांति को, जब ऊंची पहाड़ियों से बर्फ पिघल जाती है, सर्दियों के मुश्किल दिन बीत जाते हैं, उत्तराखंड के पहाड़ बुरांश के लाल फूलों की चादर ओढ़ने लगते हैं, तब पूरे इलाके की खुशहाली के लिए फूलदेई का त्योहार मनाया जाता है। ये त्योहार आमतौर पर किशोरी लड़कियों और छोटे बच्चों का पर्व है। आज 15 मार्च को इस पर्व को उत्तराखंड में मनाया जा रहा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
फूलदेई त्योहार मुख्यतः छोटे छोटे बच्चो द्वारा मनाया जाता है। यह उत्तराखंड का प्रसिद्ध लोक पर्व है। फूलदेई त्योहार बच्चों द्वारा मनाए जाने के कारण इसे लोक बाल पर्व भी कहते हैं। प्रसिद्ध त्योहार फूलदेई चैत्र मास के प्रथम तिथि को मनाया जाता है। अर्थात प्रत्येक वर्ष मार्च 14 या 15 तारीख को यह त्योहार मनाया जाता है। फूल सग्यान, फूल संग्रात या मीन संक्रांति उत्तराखंड के दोनों मंडलों में मनाई जाती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कुमाऊं गढ़वाल में इसे फूलदेई और जौनसार में गोगा कहा जाता है। उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में सौर कैलेंडर का उपयोग किया जाता है। इसलिए इन क्षेत्रों में हिन्दू नव वर्ष का प्रथम दिन मीन संक्रांति अर्थात फूल देइ से शुरू होता है। चैत्र मास में बसंत ऋतु का आगमन हुआ रहता है। प्रकृति अपने सबसे बेहतरीन रूप में विचरण कर रही होती है। प्रकृति में विभिन्न प्रकार के फूल खिले रहते हैं । (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
नववर्ष के स्वागत की परम्परा विश्व के सभी सभ्य समाजों में पाई जाती है। चाहे अंग्रेजी समाज का न्यू ईयर डे हो, या पडोसी तिब्बत का लोसर उत्सव हो। या पारसियों का नैरोज हो या सनातन समाज की चैत्र प्रतिपदा। फूलदेइ पर्व के रूप में देवतुल्य बच्चों द्वारा प्रकृति के सुन्दर फूलों से नववर्ष का स्वागत किया जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इस दिन धरों के देहरी में सजाते हैं फूल
फूलदेई के दिन लड़कियां और बच्चे सुबह-सुबह उठकर फ्यूंली, बुरांश, बासिंग और कचनार जैसे जंगली फूल इकट्ठा करते हैं। इन फूलों को रिंगाल (बांस जैसी दिखने वाली लकड़ी) की टोकरी में सजाया जाता है। टोकरी में फूलों-पत्तों के साथ गुड़, चावल और नारियल रखकर बच्चे अपने गांव और मुहल्ले की ओर निकल जाते हैं। इन फूलों और चावलों को गांव के घर की देहरी, यानी मुख्यद्वार पर डालकर लड़कियां उस घर की खुशहाली की दुआ मांगती हैं। इस दौरान एक गाना भी गाया जाता है। ये गाना है-फूलदेई छम्मा देई दैणी द्वार भर भकार। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
गढ़वाल मंडल में पूरे माह मनाते हैं ये त्योहार
उत्तराखंड के केदारखंड अर्थात गढ़वाल मंडल में यह त्यौहार पुरे महीने चलता है। यहाँ बच्चे फाल्गुन के अंतिम दिन अपनी फूल कंडियों में युली, बुरांस, सरसों, लया, आड़ू, पैयां, सेमल, खुबानी और भिन्न -भिन्न प्रकार के फूलों को लाकर उनमे पानी के छींटे डालकर खुले स्थान पर रख देते हैं। अगले दिन सुबह उठकर प्योली के पीताम्भ फूलों के लिए अपनी कंडियां लेकर निकल पड़ते हैं। और मार्ग में आते जाते वे ये गीत गाते हैं-ओ फुलारी घौर। झै माता का भौंर। क्यौलिदिदी फुलकंडी गौर। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
घोघा माता की डोली की होती है पूजा
प्योंली और बुरांश के फूल अपने फूलों में मिलकर सभी बच्चे, आस पास के दरवाजों ,देहरियों को सजा देते है। और सुख समृद्धि की मंगल कामनाएं करते हैं। फूल लाने और दरवाजों पर सजाने का यह कार्यक्रम पुरे चैत्र मास में चलता रहता है। अंतिम दिन बच्चे घोघा माता की डोली की पूजा करके विदाई करके यह त्योहार सम्पन्न करते हैं। वहाँ फूलदेई खेलने वाले बच्चों को फुलारी कहा जाता है। गढ़वाल क्षेत्र में बच्चो को जो गुड़ चावल मिलते हैं। उनका अंतिम दिन भोग बना कर घोघा माता को भोग लगाया जाता है। घोघा माता को फूलों की देवी माना जाता है। घोघा माता की पूजा केवल बच्चे ही कर सकते हैं। फुलारी त्योहार के अंतिम दिन बच्चे घोघा माता का डोला सजाकर, उनको भोग लगाकर उनकी पूजा करते हैं।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।