कौथिग-2022: प्रीतम भरतवाण, डॉ. कमल घनशाला, डॉ. डीआर पुरोहित, डॉ. विजय धस्माना डॉ. जयंती नवानी गढ़ रत्न से सम्मानित
देहरादून के रेसकोर्स स्थित मैदान में गढ़वाल सभा देहरादून की ओर से आयोजित किए जा रहे कौथिग-2022 में उत्तराखंड की विभूतियों को गढ़ रत्न से सम्मानित किया गया। उत्तराखंड महोत्सव (कौथिग) 11 नवंबर से आयोजित किया जा रहा है। ये 20 नवंबर तक चलेगा। गुरुवार 17 नवंबर की शाम को सबसे पहले उतराखंड की विधान सभा अध्यक्ष ऋतु भूषण खंडूड़ी और प्रदेश के शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रॉवत ने उत्तराखंड की विभूतियों को सम्मानित किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इनमें जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण को जागर गायन ढोल सागर के लिए गढ़ रत्न से सम्मानित किया गया। इनके बाद ग्राफ़िक एरा एजूकेशनल ग्रुप के चेयरमैन डॉ. प्रो. कमल घनशाला को शिक्षा के क्षेत्र में, उत्तराखंड की संस्कृति के पुरोधा डॉ. डीआर पुरोहित को संस्कृति के क्षेत्र में हिमालयन इंस्टीट्यूट के कुलपति डॉ. विजय धस्माना को स्वास्थ्य के क्षेत्र में, डॉ. जयंती प्रसाद नवानी को चिकित्सा और सामाजिक कार्यों के लिए गढ़ रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
दिव्यांग कलाकारों ने दी शानदार प्रस्तुति
इसके बाद दिव्यांग कलाकारों ने शानदार सांस्कृतित कार्यक्रमों की प्रस्तुति दी। शुरुआत बीरू जोशी ने गीत- जय हो नंदा देवी तेरी जय बोला, से की। बगोली से आए दृष्टिहीन सुनील कुमार ने- हाये तेरी रुमाल, गुलाबी मुखडी, सुनाया। श्रीनगर से आये रोशन ने हरची गए उत्तराखंड को कोदू कंडाली, सुनाया।। साथ ही उन्होंने अलग अलग जानवरों की आवाज़ निकाल कर बहुत सुंदर मिमिक्री की। गीता राम कंसवाल ने- साली मोरी भरना सुनाया। राज टाइगर ने काजल के साथ नानस्टाप सुनाया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इनके अलावा छत्तीसगढ़ से आये कलाकारों ने अपने क्षेत्र का बेहतरीन लोकनृत्य दिखाया। कार्यक्रम का संचालन प्रवक्ता अजय जोशी ने किया। इससे पहले अध्यक्ष रोशन धस्माना ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि हम प्रयास करेंगे कि कौथिग हर साल हो। महासचिव गजेंद्र भंडारी ने सभी का धन्यवाद किया। इस अवसर पर सांस्कृतिक सचिव उदय शंकर भट्ट, सूर्य प्रकाश भट्ट, संगीता ढोंडियाल, हरि भंडारी, वीरेंद्र असवाल, कुलानंद घनशाला, दामोदर सेमवाल, निर्मला बिष्ट आदि उपस्थित थे।


Bhanu Prakash
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भानु बंगवाल
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।



