Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

December 12, 2024

करवाचौथ व्रत का दिन, मैने की गलती और भुगता भी, कड़वा अनुभव और सुखद अहसास

करवाचौथ के व्रत का महिलाओं को बेसब्री से इंतजार रहता है। इस दिन के लिए खास कपड़े व आभूषण पहनने का प्रचलन है। पूरा श्रृंगार कर महिलाएं देवी का रूप धारण करती हैं। यही नहीं उस दिन पति की भी पूछ होती है। मेरा तो मानना है कि यह त्योहार साल में एक बार न आए, बल्कि हर दिन मनाया जाए। भले ही त्योहार मनाने का तरीका ब्रत रखना न हो, लेकिन इस दिन की तरह हर सुबह अच्छी हो, दोपहर ठीक रहे और शाम भी अच्छी। एक दूसरे को चिढ़ाने वाले काम न हों। एक दूसरे की भावनाओं को तव्वजो दी जाए। एक दूसरे के काम में हाथ बंटाया जाए। यदि ऐसा हर दिन हो तो शायद इन ब्रत या त्योहारों की जरूरत ही न पड़े। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

खैर शादी के बाद से ही मेरी पत्नी भी करवाचौथ का ब्रत रखती है। मुझे इस दिन कुछ खास नजर नहीं आता। क्योंकि मेरी दिनचर्या इस दिन भी उसी तरह रहती है, जैसी हर दिन की होती। हां सिर्फ एक अंतर जरूर रहता है कि मेरी पत्नी इस दिन जब ब्रत खोलती है तो मेरे साथ में खाना खाती है। अन्य दिनों में मैं जब घर पहुंचा करता था तो अक्सर वह सो चुकी होती थी। पत्रकारिता का काम ही ऐसा था कि रात साढ़े दस या 11 बजे के बाद ही काम निपटता थी। घर पहुंचते-पहुंचते कई बार तो तारीख भी बदल जाती थी। कई बार यह करवाचौथ के दिन भी हो चुका है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

जब शादी हुई तो पत्नी इंतजार करती और भूखी रहती थी। फिर मैने समझाया कि वह खाना खा लिया करे। फिर भी नहीं मानी। जब मेरी माताजी ने भी उसे टोका कि कब तक इंतजार में भूखी रहेगी, तब उसने मुझसे पहले खाना खाना शुरू किया। धीरे-धीरे यह उसकी आदत में शुमार हो गया। रात को घर देर से पहुंचने पर, जब वह सोई होती है तो मैं खुद ही अपना खाना गरम करके खा लेता था। यदि जागी रहती है तो वही परोसती है। फिर छुट्टी के दिन या फिर त्योहार के दिन हम एकसाथ बैठकर ही खाना खाया करते थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

तब मेरी शादी के करीब चार साल हो चुके थे। तब मेरा एक ही बेटा था। जो करीब तीन साल का था। यानि 21 साल पहले की बात का जिक्र कर रहा हूं। उस दिन करवाचौथ के त्योहार के दिन मुझे बाजार में जाने का ऐसा अनुभव हुआ कि मैने दोबारा कभी इस त्योहार के दिन देहरादून के पल्टन बाजार में ना जाने की कसम ले ली। हालांकि इसका दावा नहीं किया जा सकता है कि कभी नहीं जाऊंगा, क्योंकि कब कहां बहुत ही जरूरी काम पड़ जाए तो जाना पड़ता है। फिर भी मैं इस गलती को करने से बचूंगा जरूर। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उस दिन इत्तेफाक से करवाचौथ के दिन मेरी छुट्टी थी। ऐसे में पत्नी काफी उत्साहित थी। उसने दोपहर को आस-पडो़स की महिलाओं को एकत्र कर घर में ही कहानी सुनने व पूजा आदि के लिए बुलाया। आदतन मैं छुट्टी के दिन घर के पैंडिंग कामकाज निपटाता था। घर की सफाई, बाजार से सामान लाना, बिजली, पानी की फिटिंग में यदि कोई खराबी है तो उसे दूर करना, छोटे-छोटे ऐसे कामों को मैं खुद ही निपटाता। खैर अब ये जिम्मेदारी बच्चों के हवाले सरका दी गई है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

महिने की शुरूआत थी। घर का राशन खत्म हो रहा था। ऐसे में जब दोपहर को कथा निपटी तो मैने पत्नी से कहा कि घर का राशन ले आते हैं। फिर एक सप्ताह बाद समय मिलेगा। शायद तब तक राशन समाप्त हो चुका होगा। इस पर हमने दाल, चावल, चीनी, नमक, मसाले आदि की लिस्ट बनाई और देहरादून के मोती बाजार स्थित उस दुकान की तरफ चल दिए, जहां से हम महीने का राशन लेते थे। स्कूटर में सामान काफी आ जाता था। पीछे पत्नी बैठकर कुछ थेलों में रखे सामान को पकड़ लेती थी। बेटा भी साथ चलने की जिद कर रहा था। इस पर उसे भी स्कूटर में आगे खड़ा कर मैं पत्नी को लेकर दुकान तक पहुंच गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उस दिन करवाचौथ होने के कारण दुकान तक जाने में हमें पापड़ बेलने पड़ गए। बाजार में हर सड़क पर भीड़ थी। जगह-जगह जाम लगा था। सड़क पर मेहंदी ही मेहंदी की खुश्बू आ रही थी। जमीन पर बैठे मेंहदी लगाने वालों के इर्दगिर्द महिलाओं की भीड़ थी। चूड़ी की दुकानों के आगे तो ऐसी मारामारी हो रही थी कि जैसे मुफ्त में चूड़ियां बंट रही हों। लोग एक दूसरे को धक्के मारकर चल रहे थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

लालाजी की दुकान पहुंचा और उन्हें सामान की लिस्ट दी। एक घंटे में सामान तुल गया। इसमें काफी सामान स्कूटर की डिग्गी व आगे की टोकरी में रख दिया। एक बड़ा थैला पकड़कर पत्नी पीछे बैठ गई। 25 किलो का चावल का कट्टा मैने स्कूटर में आगे के फर्श पर फंसा दिया। बेटे को पीछे ही बैठाया और स्कूटर को ट्रक के अंदाज में सामान से ठूंसकर हम घर की तरफ को चल दिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

दुकान से करीब सौ कदम आगे चूड़ियों की दुकानें थी। शाम तक वहां बहुत ज्यादा भीड़ मच गई। कोतवाली के सामने वाली सड़क के साथ ही कोतवाली से ऊपर घंटाघर को जाने वाली सड़क खचाखच लोगों से भरी हुई थी। हालांकि मेरे जैसे गलती कर चुके लोग स्कूटर या अन्य दोपहिया के साथ भीड़ को चीरने का प्रयास कर रहे थे। यहां तो सबसे बड़ा जाम लगा हुआ था। यह जाम करीब 100 मीटर के दायरे तक था। इस दूरी को पार करने में हमें पौन घंटा लग गया। तब तक अंधेरा भी होने लगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

भीड़ लगातार बढ़ रही थी। हम पति पत्नी दोनों पछता रहे थे कि आज के दिन क्यों बाजार आए। हमें धक्के लग रहे थे। स्कूटर चलने की बजाय लुड़क रहा था। किसी तरह हम घर पहुंचे। घर में जाकर लिस्ट से सामान का मिलान किया, लेकिन चावल का कट्टा गायब था। वो शायद कहीं भीड़ में गिर गया था। फिर इस उम्मीद में कि कहीं सड़क पर कट्टा पड़ा मिल जाए, मैं उसी रास्ते से वापस लाला की दुकान तक पहुंचा, जिस रास्ते से घर आया था। मेरा प्रयास विफल रहा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

दुकान में लालाजी को मैने चावल का कट्टा गिरने की बात बताई। फिर दोबारा से 25 किलो चावल तोलने को कहा। लालाजी ने चावल तोले, मैने पैसे दिए, लेकिन उन्होंने प्रति किलोग्राम चावल का रेट पहले से एक रुपये कम लगाया। इस रेट पर वह तब तक मुझे चावल देते रहे, जब तक मेरे नुकसान की भरपाई नहीं हो गई। आज लालाजी इस दुनियां में नहीं रहे। उनका बेटा और पौता दुकान चलाते हैं, लेकिन उनकी इस सादगी को मैं कभी नहीं भूला पाऊंगा। साथ ही करवाचौथ के कड़ुवे अनुभव के बाद लालाजी की दरियादिली के सुखद अहसास ने मेरे चावल के कट्टे के खोने के गम को कुछ कम किया।
भानु बंगवाल

+ posts

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page