उत्तराखंड में अपनी लाइन से भटक रही है कांग्रेस, मुस्लिम यूनिवर्सिटी की मांग उठाने वाले को किया पार्टी से निष्कासित

अब सवाल ये उठता है कि आखिर ये निष्कासन क्यों किया गया। मुस्लिम यूनिवर्सिटी की मांग करना क्या गलत था। कांग्रेस अल्पसंख्यकों की हित की बात करती रहती है और उसे अपना पक्का वोट बैंक भी समझती आई है। ऐसे में फिर अल्पसंख्यकों को बेहतर शिक्षा देने के लिए मुस्लिम यूनिवर्सिटी की मांग करना अब कांग्रेस को क्यों गलत लगने लगा है। कांग्रेस तो हमेशा से ही पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यकों को आगे बढ़ाने का दावा करती आई है। अब उसे क्यों भाजपा और सॉफ्ट हिंदुत्व के दबाव में अपनी पारंपरिक तय लाइन से पीछे हटने को मजबूर होना पड़ा है।
सवाल ये भी उठता है कि आकिल अहमद का पार्टी से निष्कासन कर क्या कांग्रेस खुद को अल्पसंख्यकों के बीच में मजबूत करती नजर आएगी और और पीछे चली जाएगी। अल्पसंख्यकों की बात करने वाले नेता को पार्टी से निष्कासित करने वाले नेता के निष्कासन से अल्पसंख्यक समाज कांग्रेस को लेकर क्या सोचेगा, जिसके वोटों के दम पर कांग्रेस को हरिद्वार ग्रामीण, पिरान कलियर, भगवानपुर, बाजपुर, किच्छा, जसपुर जैसी सीटें जीतने में कांग्रेस को सफलता मिली।
इस फैसले से कांग्रेस ने अपने उस वोट बैंक को भी खुद से दूर कर दिया, जो कम से कम उत्तराखंड में तो उसके साथ मजबूती से खड़ा होता था। जिसने केरल के वायनाड में कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी को राजनीतिक जीवनदान दिया। ये फैसला बताता है कि कांग्रेस आखिर किस स्तर तक कंफ्यूज हो गई है।
ये रहा प्रकरण
देहरादून जिले की सहसपुर सीट से टिकट के लिए दावेदारी कर रहे आकिल अहमद ने अपने विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना समेत 10 सूत्रीय मांगपत्र पार्टी नेताओं को सौंपा था। आकिल ने दावा किया था कि उसकी मांग का समर्थन पार्टी ने किया। इसी कारण टिकट की दावेदारी से कदम पीछे खींचे गए। बाद में मुस्लिम यूनिवर्सिटी का मामला तूल पकड़ गया। भाजपा ने विधानसभा चुनाव में मुद्दा बनाकर इस पर कांग्रेस की घेराबंदी की। 10 मार्च को चुनाव परिणाम सामने आने के बाद कांग्रेस के कई प्रत्याशियों ने अपनी और पार्टी की हार को अप्रत्याशित मानते हुए मुस्लिम यूनिवर्सिटी को हार के कारण के तौर पर गिनाया। हार का सारा ठिकरा मुस्लिम यूनिवर्सिटी की मांग पर डाल दिया गया। वहीं, देखा जाए तो कांग्रेस चुनाव प्रचार में बीजेपी के मुकाबले कहीं नहीं टिकती नजर आई। सोशल मीडिया में भी कांग्रेस बुरी तरह पिछड़ी हुई है। कांग्रेस के कई पूर्व विधायक न तो फेसबुक में ही अपडेट रहते हैं और न ही ट्विटर सहित अन्य मीडिया में। जहां कांग्रेस नेता के हर बयान पर बीजेपी के कई नेता पलटवार करते दिखे, वहीं कांग्रेस नेता इस मुगालते में रहे कि हर पांच साल बाद उत्तराखंड में सत्ता परिवर्तन होना निश्चित है।
कांग्रेस नेताओं का ओवर कांफिडेंस इस कदर था कि मतदान निपटने के बाद ही जीत का जश्न मनाना शुरू कर दिया। कांग्रेस भवन में ढोल बजाए गए। आतिशबाजी की गई। कई पूर्व विधायकों ने तो अपने नाम के आगे पूर्व शब्द तक हटा दिया था। उन्हें अपनी जीत का पूरा विश्वास था। भले ही वे किसी व्यक्ति का फोन तक कभी नहीं उठाते। इन सब कारणों को भी मतदाताओं ने भली भांति समझा और नतीजा कांग्रेस को हार के रूप में देखना पड़ा। 70 सीटों में कांग्रेस को 19 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। हालांकि हरिद्वार में मुस्लिम मतदाता भी ज्यादा हैं, ऐसे में हरिद्वार जिले में कांग्रेस को बीजेपी के मुकाबले ज्यादा सीटें मिली। अब कांग्रेस के इस फैसले से मुस्लिम मतदाताओं का भी उससे नाराज होना स्वाभाविक है।
हालांकि, मुस्लिम यूनिवर्सिटी की मांग को न तो कांग्रेस के घोषणापत्र में जगह मिली और न ही किसी नेता ने चुनाव में इस बारे में चर्चा की। बीती 21 व 22 मार्च को हार के कारणों को लेकर हुई समीक्षा बैठक में भी यह मुद्दा उठा। बाद में कांग्रेस के केंद्रीय पर्यवेक्षक अविनाश पांडेय ने भी माना था कि भाजपा के इस मुद्दे को तूल देने से कांग्रेस को चुनाव में नुकसान हुआ। इस मामले में कांग्रेस के बड़े नेता भी एक-दूसरे को निशाने पर लेने से चूक नहीं रहे हैं।
बीते रोज आकिल अहमद ने रुड़की में पत्रकारों से बातचीत में कहा था कि कांग्रेस इस मुद्दे के कारण नहीं, बल्कि अपनी गलतियों से चुनाव हारी। उन्होंने यह भी कहा कि वह आने वाले लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे के साथ हरिद्वार से टिकट मांगेंगे। आकिल की यह बयानबाजी कांग्रेस नेतृत्व को नागवार गुजरी। प्रदेश महामंत्री संगठन मथुरा दत्त जोशी ने बताया कि आकिल को पत्र लिखकर कहा गया कि उनकी बयानबाजी से पार्टी संगठन की छवि धूमिल हुई है। इससे पहले उन्हें अनर्गल बयानबाजी न करने की हिदायत देते हुए आठ फरवरी को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था। उनकी बयानबाजी को केंद्रीय नेतृत्व ने गंभीरता से लिया। उन्हें पार्टी के सभी पदों से मुक्त करते हुए तत्काल प्रभाव से पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से छह वर्ष के लिए निष्कासित कर दिया गया है।
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
मुस्लिम युनिवर्सिटी बनाने की कोई जरूरत नहीं है !
शिक्षा मुख्यधारा की ही होनी चाहिए !
मुख्यधारा की यूनिवर्सिटी में ही ऐक सेन्टर फॉर इस्लामिक एंड मुस्लिम स्टडीज खोला जा सकता है !
मुसलमानो को भी रोजगार परक और आधुनिक विचारों की शिक्षा उपलभ्द कराना राज्य का संवैधानिक दायित्व है !
शिक्षा को मजहब से जोडकर ऐक धर्म निरपेक्ष समाज नहीं बनाया जा सकता !