उत्तराखंड सरकार ने घोषित किए शैलेश मटियानी पुरस्कार के नाम, देखें सूची, जानिए शैलेश मटियानी के बारे में
प्रारंभिक शिक्षा
जनपद—–अध्यापक का नाम व पद——विद्यालय का नाम
पौड़ी———गबर सिंह बिष्ट, सअ——–राउप्रावि मुस्याखांद
चमोली———अंजना खत्री, प्रअ——— राप्रावि ग्वाड़ कपीरी
उत्तरकाशी———सरिता प्रअ————राप्रावि बड़कोट
देहरादून———–राजीव कुमार पांथरी प्रअ— रापूमावि गलज्वाड़ी
हरिद्वार———-बीना कौशल प्रअ——-राप्रावि भंगेड़ी—2 हरिद्वार
टिहरी गढ़वाल——हृदय राम अंथवाल, सअ—–राप्रावि लैणी हिन्दाव
रुद्रप्रयाग———–हेमंत कुमार चौकियाल, सअ —–राउप्रावि डांगी गुनाऊं
चंपावत———-मंजू बाला, प्रअ————– राप्रावि च्यूरानी
बागेश्वर————-ललित मोहन जोशी, सअ—-राइका रातिरकेटी (उच्चीकृत)
ऊधम सिंह नगर— मोहन सिंह, सअ—— राप्रावि बड़ी, बगुलिया
नैनीताल———–नंद लाल आर्य, प्रअ——- राप्रावि, पंगराड़ी
पिथौरागढ़———हरीश चंद्र पांडेय, प्रअ— – – राकउप्रावि मंडप
अल्मोड़ा——- मनोज कुमार पंत, प्रअ—— – – राप्रावि नौलाकोट, अल्मोड़ा
माध्यमिक शिक्षा
जनपद——–अध्यापक का नाम व पद——————-विद्यालय
उत्तरकाशी——-दिवाकर प्रसाद पैन्यूली, प्रवक्ता——राइका, पंजियाला
हरिद्वार———–पूनम राणा, प्रधानाचार्य ————-राइका, ज्वालापुर
पिथौरागढ़———–दीपा खात, सअ———————-राबाइका, ऐंचोली
अल्मोड़ा————-तनुजा जोशी, प्रधानाचार्य———–राबाइका, द्वाराहाट
प्रशिक्षण संस्थान
जनपद———अध्यापक का नाम व पद———– डायट का नाम
चंपावत——-डा अविनाश कुमार शर्मा, प्रवक्ता— जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान, लोहाघाट चंपावत
शैलेश मटियानी जी के बारे में
यहां इतिहासकार एवं देहरादून निवासी देवकी नंदन पांडे शैलेश मटियानी के जीवन यात्रा पर प्रकाश डाल रहे हैं जो इस प्रकार है। अल्मोड़ा जनपद के बाड़ेछिना में 14 अक्टूबर 1931 को शैलेश मटियानी का जन्म हुआ था। इस महान साहित्यकार ने पचास वर्षो तक साहित्य साधना की। आंचलिक साहित्य का जन्म व विकास इनके साहित्य से हुआ। आंचलिकता में जिस संकुचित वातावरण का बोध होता है, वह मटियानी जी के साहित्य में देखने को नहीं मिलता। इनकी आंचलिकता में विविधता है। अपने जीवन की तरुण अवस्था में इतने सफल उपन्यासकार के रूप में प्रतिष्ठित हो जाने का कारण उपन्यासों के कथा शिल्प के साथ इनका गरिमामय व्यक्तित्व भी था।
मटियानी, भाषा के कुशल जुलाहे थे। शब्दों का ताना-बाना इतनी बारीकी से बुनते थे कि पाठक को उसकी गूढ़ता में कोई अदृश्यभाव दृष्टिगोचर नहीं होता। उनके आंचलिकता एवं वातावरण का चित्रण करने की कला इन्हें गोर्की के समकक्ष ला देती है। गोर्की जैसी भाषा की जादूगरी, भाषा के भंवर मटियानी की साहित्य कला की विशेषता है। कुमाऊँनी परिवेश को समझने और जानने के लिए इनकी कहानियाँ श्रेष्ठ माध्यम हैं। समाचार पत्रों में समय-समय पर प्रकाशित हुए उनके लेख उत्तराखण्ड के विकास स्वप्न को दर्शाते हैं। सन् 1994 में कुमाऊँ विश्वविद्यालय ने मटियानी जी को डी.लिट् की मानद उपाधि से सम्मानित किया। उत्तर प्रदेश का संस्थागत सम्मान, शारदा सम्मान, लोहिया सम्मान तथा साधना सम्मान आदि ने भी समय-समय पर इनकी साहित्य साधना को प्रोत्साहित किया है। हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित कराने हेतु मटियानी जी ने सर्वोच्च न्यायालय की शरण ली।
प्रख्यात साहित्यकार व लेखक शैलेश मटियानी जीवन के अन्तिम वर्षों में मानसिक यंत्रणा, आर्थिक विपन्नता, अकेलेपन की पीड़ा व पुत्र की मृत्यु से टूट चुके थे। इन्हीं निराशाओं के कंटकों ने उन्हें उत्तरांचलवासियों से सदैव के लिए 24 अप्रैल 2001 को छीन लिया।
शैलेश मटियानी जी का पहला उपन्यास ‘बोरीबली से बोरीबंदर’ है। इसमें उन्होंने बम्बई प्रवास में जिस जीवन संघर्ष को अनुभव किया, उसी का चित्रण किया है। ‘कबूतरखाना’ बम्बई जैसी महानगरी में पलने वाले साधनविहीन समाज का सजीव चित्रण है। बम्बई की ही पृष्ठभूमि में लिखा उनका ‘किस्सा नर्मदाबेन गंगूबाई’ उपन्यास अत्याधिक लोकप्रिय है। मटियानी जी को सबसे अधिक प्रसिद्धि होलदार’ उपन्यास से मिली। यह उपन्यास कुमाऊँ के कौटुम्बिक जीवन का यर्थात चित्रण है। उनके लगभग 24 उपन्यास तथा 15 कथा संग्रह हिन्दी साहित्य की अनुपम धरोहर हैं।
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।