शिक्षिका सरिता मैन्दोला की कविता-बेटी-बेटा एक समान
बेटी-बेटा एक समानबेटे हैं कुल के दीपक तो,
दो कुलों को रोशन करती हैं बेटियां।
कठोरता का पर्याय होते हैं बेटे,
वात्सल्य व प्रेम की मूर्ति हैं बेटियां।
शिवाजी,सुभाष,प्रताप जैसे,
वीर हैं बेटे,
पद्मावती, लक्ष्मीबाई जैसी वीरांगनाएं हैं बेटियां।
कालीदास,चाणक्य जैसे विद्वान हैं बेटे,
गार्गी, नायडू,अपाला जैसी,
विदुषी हैं बेटियां।
सेना,चिकित्सा, शिक्षा के क्षेत्र में हैं बेटे,
तो इस क्षेत्र में भी अब्बल हैं बेटियां।
फाइटर जहाज उड़ाते हैं हमारे बेटे तो,
अंतरिक्ष में उड़ान भरती हैं बेटियां।
बेटी बेटों से कमतर नही होती,
अगर उड़ान को हवा दे दें तो,
ऊंचे आसमान को छू लेती हैं बेटियां।
जीवन रूपी गाड़ी के पहिए हैं दोनों,
नये समाज का सृजन करते हैं बेटे,बेटियां।
दया की पात्रा नही हैं ये,
कंधे से कंधा मिलाकर अब,
बेटों के संग-संग चलती हैं बेटियां।
बेटा-बेटी के अन्तर को हमें मिटाना है।
इन दकियानूसी विचारों को हमें हटाना है।
अपने घर से ही हमें शुरूआत करनी होगी।
बेटा-बेटी में समानता लानी होगी।
इनकी खुशियों में ही,
माता,पिता सुख पाते हैं।
ये ही तो हमारे सपने हैं।
जो घर आँगन को महकाते हैं।
एक ही सिक्के के दो पहलू हैं ये,
इनमें अन्तर कैसे कर सकते हैं ।
कवयित्री का परिचय
नाम- सरिता मैन्दोला
सहायक अध्यापक, राजकीय उच्चतर प्राथमिक विद्यालय, गूमखाल, ब्लॉक द्वारीखाल, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड।





