युवा कवयित्री अंजली चन्द की कविता-वो हंसते मुस्कुराते सुलझी हुई सी चेहरे की चमक कहां चली गई
चेहरा उदास लिये उलझनों से अपनी उलझे से क्यूँ हो,
बच्चों सी हंसी बेफिक्र सी हलचल अब कहा चली गई,
हँसी ये बनावटी की लिये अब इतने ज्यादा परेशान से क्यूँ हो,
छल कपट झूठ फ़रेब से कोसों दूर
अब इन्हीं के जंजाल मे खुद को केंद किए क्यूँ हो,
भीड़ मे भी अलग सी पहचान लेकर
अब अकेले से भटके से दर किनारा लिए खड़े क्यूँ हो,
ठोकरों से मजबूत. बनकर
अब ठोकरों से सहमे सहमे क्यूँ हो,
छोटे से चोट मे ज्यादा जख्मी बनकर
अब दिल और विश्वास टूट जाने मे भी खामोश क्यूँ हो,
बेजुबान सी बोली भी समझ जाने वाले,
अब शब्दों के मेल जोल से अंजान क्यूँ हो,
मंजिले तो मुसाफिरों का आखिरी पड़ाव होता है सबक रास्तों का लेकर
अब इतने टूटे बिखरे अंदाज मे क्यूँ हो,
कवयित्री का परिचय
नाम – अंजली चन्द
निवासी – बिरिया मझौला, खटीमा, जिला उधम सिंह नगर, उत्तराखंड।
लेखिका uksssc /ukpsc की तैयारी कर रही हैं।
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।