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September 28, 2024

गंगोत्री विधान सभा: आप के कर्नल और कांग्रेस के विजयपाल का धुआंधार प्रचार, भाजपा में एक अनार सौ बीमार

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उत्तराखंड विधानसभा की नंबर तीन गंगोत्री विधानसभा के बारे में एक मिथक है कि इस विधानसभा को जीतने वाले प्रत्याशी के दल की ही सरकार राज्य में बनती है। यह मिथक उत्तर प्रदेश के पहले विधानसभा चुनाव से चला आ रहा है।

उत्तराखंड विधानसभा की नंबर तीन गंगोत्री विधानसभा के बारे में एक मिथक है कि इस विधानसभा को जीतने वाले प्रत्याशी के दल की ही सरकार राज्य में बनती है। यह मिथक उत्तर प्रदेश के पहले विधानसभा चुनाव से चला आ रहा है। लिहाजा इस सीट को जीतना भाजपा व कांग्रेस समेत अन्य राजनीतिक दलों के लिए प्राथमिकता में होता है। राज्य गठन के बाद अब तक हुए विधानसभा चुनाव में राज्य की सरकार की तरह ही यह सीट भी बारी बारी से कांग्रेस भाजपा के हिस्से गई है। इस बार भी राज्य में सरकार को बरकरार रखने के लिए जहां भाजपा इस सीट को जीतना चाहती है तो वहीं कांग्रेस भी पांच साल बाद सत्ता वापसी की राह भी इस सीट को जीतकर सुनिश्चित करना चाहती है। इस बार इस सीट में कुछ रोचक मुकाबला होने जा रहा है। कारण ये है कि अभी तक गंगोत्री विधानसभा में कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी टक्कर होती आई है। इस बार कड़ी टक्कर की बजाय मुकाबला त्रिकोणीय होने जा रहा है। कारण ये है कि आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री पद के दावेदार कर्नल (से.नि.) ने इस सीट से चुनाव लड़ने की घोषणा की है।
कांग्रेस और आप जुटे प्रचार में
उत्तराखंड में वर्ष 2022 के चुनाव की अधिसूचना अभी तक जारी नहीं हुई, लेकिन इससे पहले ही आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के दावेदारों ने चुनाव प्रचार अभियान तेज कर दिया है। आप नेता कर्नल कोठियाल की कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं रही है। उन्होंने सेना के जरिये और यूथ फाउंडेशन के माध्यम से लोगों की सेवा की। कुछ ही माह पूर्व उन्होंने आम आदमी पार्टी ज्वाइन की और राजनीति में कदम रखा। तब से वह लगातार पहाड़ों के साथ ही प्रदेश भर में भ्रमण कर रहे हैं। साथ ही इस सीट पर भी उन्होंने चुनाव प्रचार अभियान तेज किाय हुआ है। वहीं, पिछला चुनाव हारने वाले कांग्रेस नेता एवं पूर्व विधायक विजयपाल सजवाण भी चुनाव हारने के बाद से लगातार इस क्षेत्र में सक्रिय हैं। या यूं कहें कि वे हारने के बाद से ही दोबारा जीत का स्वाद चखने के लिए लगातार प्रयासरत हैं।
कई गैंग में बटी भाजपा
वहीं, गंगोत्री विधानसभा सीट से ये स्पष्ट नहीं है कि भाजपा से कौन उम्मीदवार होगा। गंगोत्री विधानसभा 2017 में भाजपा के गोपाल सिंह रातव ने रेकार्ड मतों से फतह की थी। उन्होंने कांग्रेस के विधायक रहे विजयपाल सजवाण को हराकर यहां जीत दर्ज की। 2021 अप्रैल महीने में कैंसर से जूझते हुए गोपाल रावत का निधन हो गया। उनके निधन के बाद यहां भाजपा के सामने प्रत्याशी तय करने की चुनौती खड़ी हो गई। उपचुनाव न होने के कारण यह सीट पिछले आठ महीनों से खाली है। इन आठ महीनों में इस सीट पर भाजपा के टिकट के लिए डेढ़ दर्जन दावेदारों की पंक्ति खड़ी हो गई है। यानी कई छोटे छोटे गुटों में बटी भाजपा के नेता अपने अपने समर्थन के लिए लॉबिंग करने में जुटे हैं।
कांग्रेस और आप की स्थिति साफ
वहीं, कांग्रेस की ओर से पूर्व विधायक विजयपाल सजवाण का इकलौता नाम सामने है हालांकि इन दिनों कांग्रेस के एक धड़े ने प्रेस वार्ता कर विजयपाल सजवाण को कांग्रेस का चेहरा बनाए जाने का विरोध किया था, लेकिन बड़े समर्थन वर्ग के चलते यह विरोध सजवाण की राह रोकने की गुंजाइश नहीं रखता। वहीं, पहली बार यहां आम आदमी पार्टी भी चुनावी मैदान में ताल ठोक रही है। आम आदमी पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री के चेहरा बनाए गए कर्नल (से.नि.) अजय कोठियाल भी गंगोत्री विधानसभा से ही चुनाव लड़ने का एलान कर चुके हैं। ऐसे में अब तक कांग्रेस व भाजपा की रणभूमि के रूप में प्रसिद्ध गंगोत्री विधानसभा के चुनावी मैदान में आप की एंट्री ने मुकाबला रोमांचक कर दिया है।
भाजपा में एक अनार सौ बीमार
गंगोत्री विधानसभा में सबसे बड़ी मुश्किल भाजपा के सामने है। विधायक गोपाल सिंह रावत के निधन के बाद अब पार्टी के सामने दजर्न भर दावेदारों की लाइन लगी हुई है। इसमें कुछ पहले भी पार्टी से बगावत कर निर्दलीय चुनाव भी लड़ चुके हैं तो कुछ पंचायत चुनावों में तक बुरी तरह असफल होने के बावजूद भी टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। भाजपा के लिए यहां एक अनार सौ बीमार जैसी स्थिति है। हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब भाजपा को यहां दावेदारों की लंबी लाइन से जूझना पड़ा हो। 2002, 2007, 2012 और 2017 में भी भाजपा से टिकट के लिए दावेदारों की लंबी लाइन भाजपा के लिए यहां मुसीबत का सबब बनती रही है। 2007 व 2017 में भाजपा से गोपाल रावत ने पार्टी को गंगोत्री में बड़ी जीत दिलवाई, जबकि दोनों बार ही पार्टी की ओर से टिकट न मिलने से नाराज दावेदारों ने पार्टी के खिलाफ प्रचार प्रसार खूब पसीना बहाया। चुनाव के बाद निष्कासन की मार भी झेली, लेकिन पार्टी संगठन के लोगों के जरिए जल्द ही वापसी के दरवाजे भी खुलवा लिए। वर्तमान में आधे से ज्यादा दावेदार भी पूर्व में पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए पार्टी से निष्कासन भी झेल चुके हैं।


आप नेता कर्नल कोठियाल की राजनीतिक पृष्ठभूमि
कर्नल अजय कोठियाल सेवानिवृत वर्तमान में देहरादून में रहते हैं। राजनीतिक दृष्टिकोण से देखें तो अभी उनकी राजनीति में पहली पारी है। इससे पहले उन्होंने सेना में देश की सेवा की। सीने में आतंकियों से लोहा लेते हुए गोलियां खाई। कर्नल अजय कोठियाल का जन्म 26 फरवरी 1969 का हुआ । 07 दिसम्बर 1992 को
उन्होंने गढ़वाल राइफल्स की चौथी बटालियन में सेकेन्ड लैफ्टिनेंट के पद पर, अपने सैन्य जीवन का आरम्भ किया। वह नेहरू पर्वतारोहण संस्थान के प्रधानाचार्य रहे हैं और पर्वतारोहण के क्षेत्र में उनके नाम कई कीर्तिमान दर्ज हैं। केदारनाथ आपदा के बाद पुनर्निर्माण कार्यों में उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाता है। उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित नेहरू पर्वतारोहण संस्थान में प्रधानाचार्य रहने के दौरान ही कर्नल अजय कोठियाल ने अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा जाहिर कर दी थी। केदारनाथ त्रासदी के बाद केदारनाथ धाम में खोज बचाव कार्य, निर्माण कार्यों में शामिल होने के बाद वह लगातार राजनीतिक रूप से सक्रिय रहने की कोशिश करते रहे।
उसके बाद राजनीति में आने की चाहत में सेना से सेवानिवृति ले ली। उम्मीद थी कि वह 2017 में सक्रिय राजनीति में आएंगे, लेकिन वह नहीं आए। 2019 में लोक सभा चुनाव के दौरान उन्होंने गढ़वाल संसदीय सीट के कई गांवों में जनसंपर्क किया। आरएसएस के कई शीर्ष लोगों से मुलाकात की। लोगों से लगातार मिलते जुलते रहे तो लगने लगा था कि 2019 में वह भाजपा के गढ़वाल संसदीय सीट से उम्मीदवार हो सकते हैं। ऐन मौके पर टिकट तीरथ सिंह रावत को मिला और कर्नल कोठियाल का राजनीति में आने का फैसला नेपथ्य में चला गया।
कर्नल अजय कोठियाल की ओर से गठित यूथ फाउंडेशन के जरिये राज्य के उन युवाओं को सेना में शामिल होने का प्रशिक्षण दिया जाता रहा है। दावा किया जाता है कि फाउंडेशन के जरिए दस हजार से अधिक युवाओं को सेना के लिए प्रशिक्षित किया गया। अब फाउंडेशन के युवा ही उनके चुनाव प्रचार की बागडोर संभाल रहे हैं। कुछ ही माह पूर्व उन्होंने आम आदमी पार्टी ज्वाइन की थी। उसके बाद से ही वह राजनीति के क्षेत्र में लगातार सक्रिय हैं। उनकी सक्रियता को देखते हुए दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने उन्हें उत्तराखंड में सीएम का चेहरा घोषित किया। युवाओं और महिलाओं के बीच वे लोकप्रिय हैं। सेना में रहकर विपरीत परिस्थितियों में भी काम करने का उन्हें तजुर्बा है। ऐसे में वे दावा करते हैं कि हम आप की ओर से दी गई गारंटी को सरकार बनाने के बाद पूरा करेंगे।


स्वर्गीय गोपाल रावत की पत्नी शांति रावत भी हैं भाजपा से दावेदार
निर्वतमान विधायक स्व. गोपाल सिंह रावत की धर्मपत्नी शांति रावत भी भाजपा से टिकट की दावेदारी कर रही हैं। सेवानिवृत्त शिक्षिका, पति के निधन के बाद से ही समर्थकों के आह्वान पर चुनावी तैयारियों में जुटी हैं। वह भी क्षेत्र में निरंतर सक्रिय रहती हैं। लोगों से मिलती हैं। गोपाल सिंह रावत के विकास कार्यों, उनके समर्थकों व पति के निधन से पैदा हुई सहानुभूति के दम पर उनकी जीत का दावा किया जा रहा है। वर्तमान में वह भाजपा की ओर से सबसे सशक्त दावेदार हैं। कारण ये भी है कि अधिकांश मामलों में जब किसी विधायक का निधन हुआ तो राजनीतिक दलों ने उनके परिजनों से ही किसी को चुनाव लड़ाया है। चाहे भाजपा हो या कांग्रेस।
अपने पति विधायक स्व. गोपाल सिंह रावत की राजनीतिक विरासत को शांति रावत आगे बढ़ा रही हैं। खुद शिक्षिका पद से सेवानिवृत होने के साथ ही विधायक गोपाल सिंह रावत के निधन के बाद से ही जनता के बीच वह सक्रिय हैं। पति के निधन के बाद से ही उनका प्रयास रहा है कि पति की ओर से प्रस्तावित विकास योजनाओं को स्वीकृति दिलवाई जाए। उन्होंने खुद के प्रयासों से शासन स्तर पर लंबित पड़ी दर्जनों योजनाओं को स्वीकृति दिलवाई। स्व. गोपाल सिंह रावत के समर्थकों, पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच मजबूत पकड़ होने के साथ ही पति के निधन के बाद पैदा हुई सहानुभूति भी इनके पक्ष में जाती है। गंगोत्री विधानसभा में पार्टी के पास भी पहली बार किसी महिला को प्रत्याशी बनाने का अवसर भी है। जो जिताऊ प्रत्याशी होने के साथ ही उच्च शिक्षित भी हैं।


कांग्रेस के प्रत्याशी विजयपाल सजवाण 
कांग्रेस प्रत्याशी विजयपाल सजवाण 2002 और 2012 का विधानसभा चुनाव जीत विधायक रहे। 2007 व 2017 में भाजपा के गोपाल सिंह रावत से हारे। कांग्रेस पार्टी में फिलहाल वही इकलौते दावेदार हैं। वह लगातार क्षेत्र का भ्रमण कर रहे हैं। साथ ही क्षेत्रीय लोगों के आंदोलनों में भागीदारी भी निभा रहे हैं।
उत्तरकाशी जिले के बसूँगा गांव में एक किसान परिवार में जन्मे सजवाण जी बचपन से ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी रहे है। मिलनसार व्यवहार और मददगार कार्यशैली के कारण वे छात्र जीवन से ही लोकप्रिय रहे। वर्ष 1980 में कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण करने के पश्चात वे राजकीय महाविद्यालय उत्तरकाशी में छात्र संघ के चुनाव में महासचिव पद पर निर्वाचित हुए। सन 1982 में छात्र संघ चुनाव में अध्यक्ष पद पर भी चुने गए।
वर्ष 1988 से 1991 तक सजवाण जी ने उत्तरकाशी जिले के युवा कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में स्थानीय युवाओं के साथ अनेक जनपक्षीय कार्य कर अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया। जनता के बीच लगातार सक्रियता के कारण वे 1992 से 1997 तक बाड़ाहाट क्षेत्र से पालिका सभासद निर्वाचित हुए। इसी दौरान कांग्रेस जिला उपाध्यक्ष के पद पर रहते हुए उन्होंने कांग्रेस के कई आंदोलनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। उत्तराखंड राज्य आंदोलन में सजवाण जी की सक्रियता किसी से छिपी नहीं है। उत्तराखंड राज्य निर्माण के लिए हुए आंदोलन मे वे 17 दिनों तक नैनी जेल में रहे।
पालिका सभासद रहते अपनी कार्यशैली के बूते वर्ष 1997 में नगर पालिका उत्तरकाशी के चेयरमैन निर्वाचित हुए। राजनीति में सुचिता के कारण वर्ष 2002 में उन्हें उत्तराखंड राज्य के पहले विधानसभा चुनाव में 03 गंगोत्री विधानसभा से पहले विधायक बनने का गौरव हासिल हुआ। इसी क्रम में वर्ष 2012 में उन्होंने एक बार फिर विधानसभा चुनाव जीतकर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।
इसके अलावा सजवाण जी तिवारी सरकार में “अध्यक्ष राज्य आपदा प्रबंधन”, संसदीय सचिव व कई अहम पदों पर भी रहे। जिसका उनकी सरलता पर दूर-दूर तक असर नहीं दिखा। अपने कार्यकाल में उत्तरकाशी जनपद में उनके द्वारा विकास के नए आयाम स्थापित किये गए, सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों के जाल के अलावा, उन्होंने क्षेत्र की सबसे बड़ी मांग OBC का शानदार तोहफा अपनी विधानसभा वासियों को दिया, इंजीनियरिंग कॉलेज, ITI, पॉलिटेक्निक जैसे संस्थान खोलकर उन्होंने युवाओं के सुनहरे भविष्य की नींव रखी।
भाजपा के अन्य दावेदार
सूरतराम नौटियाल
2017 में भाजपा से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ा। चुनाव हारने के साथ ही पार्टी से भी निष्कासित रहे। अक्टूबर 2021 में पार्टी में वापसी। 75 पार की उम्र व पार्टी से बगावत का इतिहास उनकी राह का रोड़ा है।
जगमोहन रावत
2017 में पार्टी से बगावत पर उन्हें पार्टी से निष्कासित किया गया था। दो साल बाद लोक सभा चुनाव के दौरान उनकी पार्टी में वापसी हुई। 2014 में त्रिस्तरीय चुनाव में क्षेत्र पंचायत सदस्य का चुनाव हारे। 1000 से कम वोट वाली सीट पर तीसरे नंबर पर रहे।
सुरेश चौहान
पूर्व में कांग्रेसी विधायक के खासमखास, कांग्रेसी विधायक के समर्थन से ब्लॉक प्रमुख व जिला पंचायत सदस्य रहे। 2012 में कांग्रेस से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ा। छह हजार वोटों पर सिमटे। 2017 में भाजपा के समर्थन में आए।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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