गुरुद्वारे में कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष धस्माना का सम्मान, अन्य कार्यक्रम में धस्माना ने दिया कई हस्तियों को सरस्वती साधना सम्मान
इस अवसर पर श्री गुरूद्वारा सिंह सभा के प्रधान सरदार गुरुबख्श सिंह, लक्कीशाह गुरुद्वारा सिंह सभा के प्रधान सरदार लाखन सिंह राठौर व गुरुद्वारा पटेलनगर के प्रधान सरदार हरमोहिंदर सिंह ने प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना को सरोपा पहना कर सम्मानित किया। इस अवसर पर धस्माना ने संगतों को गुरतागद्दी दिवस की बधाई व शुभकामनाएं दी। उन्होंने कहा कि दसवें बादशाह गुरु गोविंद सिंह ने सिख पंथ में देहधारी गुरु की परंपरा को समाप्त कर सभी सिखों के लिए हमेशा जीवित रहने वाले गुरु श्री ग्रंथ साहिब को गुरु रूप घोषित कर सभी सिखों को उनके बाद श्री गुरुग्रंथ साहिब को ही गुरु मानने का हुक्मनामा दिया।
धस्माना ने कहा श्री गुरुग्रंथ साहिब दुनिया का अदभुत ग्रंथ है जिसमें 6 गुरुओं समेत 36 महापुरूषों की पवित्र बाणी है। अगर गुरुओं के बताए मार्ग पर एक प्रतिशत भी कोई चले तो उसका जीवन धन्य हो जाये। इस अवसर पर सरदार लखन सिंह राठौर, सरदार गुलजार सिंह, सरदार हमोहिन्दर सिंह, सरदार सेवा सिंह, जया गुलानी, सरदार ओम प्रकाश राठौर का भी सरोपा भेंट कर सम्मान किया गया।
इन हस्तियों को दिया गया सरस्वती सधाना सम्मान
सरस्वती पद्मविभूषण किशोरी अमोनकर जी की स्मृति में चतुर्थ सरस्वती साधना सम्मान का आयोजन देहरादून स्थित कन्या गुरुकुल में किया। इसका उद्घाटन कोंग्रेस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष श्री सूर्यकांत धसमाना ने दीप प्रज्वलन कर किया। कार्यक्रम में इस वर्ष देश भर से पद्म श्री शोभना नारायण, पद्मश्री उस्ताद वासिफ़ुदिन डागर, शेखर चंद्र जोशी, रघुनन्दन पंशिकर, रविंद्र कटोटि, ड़ा सुधा रानी पांडेय समेत कई कला साहित्य की हस्तियों को यह सम्मान प्रदान किया गया।
प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने अंग वस्त्र पहना कर व प्रशस्तिपत्र दे कर सम्मानित किया। इस अवसर पर उन्होंने कलाश्रय संस्था को इस पुरस्कार समारोह व शास्त्रीय संध्या को पिछले चार वर्षों से निरंतर आयोजित करने के लिए बधाई देते हुए कहा कि आज की नई पीढ़ी को भारतीय कलाओं भारती संस्कृति व संगीत से परिचय करवाने का जो बीड़ा कलाश्रय ने उठाया है वो प्रशंशनीय है। उन्होंने सफल कार्यक्रम के लिए कलाश्रय के अध्यक्ष हिमांशु दरमोड़ा को साधुवाद दिया।
इस अवसर पर श्री हिमांशु दरमोडा ने कहा की यह सम्मान सिर्फ़ सम्मान नहीं बल्कि अपनी भारतीय कला के पुरोधा और परम्परा वाहकों ने अपनी कला साधना से जो विश्व में हिंदुस्तान का नाम रोशन किया है। उनको आने वाली नयी पीढ़ी के कलाकार भी याद रखें और उनसे प्रभावित होकर अपनी कला साधना की गहराई में उतर सके। यही अंतर अनुभूति किशोरी अमोनकर जी के गायन में थी। यह कार्यक्रम हर वर्ष आयोजित होता है।
कार्यक्रम में बड़ी संख्या में संगीत व कला प्रेमी उपस्थित रहे।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।