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September 22, 2024

अहोई अष्टमी आज, बच्चों के सुख के लिए महिलाओं का व्रत, ये है शुभ मुहूर्त, ऐसे करें पूजन, गलती से भी न करें ऐसा

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आज 28 अक्टूबर को अहोई अष्टमी है। कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी मनाई जाती है। इस दिन महिलाएं अपने बच्चों की सुख-समृद्धि और लंबी उम्र के लिए अहोई अष्टमी का व्रत रखती हैं।

आज 28 अक्टूबर को अहोई अष्टमी है। कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी मनाई जाती है। इस दिन महिलाएं अपने बच्चों की सुख-समृद्धि और लंबी उम्र के लिए अहोई अष्टमी का व्रत रखती हैं। हिंदू धर्म में अहोई अष्टमी के व्रत की बहुत मान्यता है। अहोई अष्टमी को अहोई माता की पूजा की जाती है। अहोई अष्टमी के दिन कई महिलाएं अपने बच्चों के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। वो पूरे दिन बिना पानी पिए और बिना कुछ खाए व्रत रखती हैं। अहोई अष्टमी को माताएं अपने बच्चों के भाग्योदय की कामना करती हैं। यहां हम आपको शुभ मुहूर्त और पूजन की विधि बता रहे हैं। साथ ही ये भी बताया जा रहा है कि आपके लिए ये जानना जरूरी है कि अहोई अष्टमी के दिन क्या गलतियां नहीं करनी चाहिए।
करवाचौथ के चार दिन बाद आता है ये व्रत
करवा चौथ के चार दिन बाद और दिवाली से आठ दिन पहले महिलाएं अहोई अष्टमी का व्रत रखती हैं। मान्यता है अहोई अष्टमी का व्रत करने से संतान की प्राप्ति होती है। इस व्रत को तारों को देखकर खोला जाता है।
शुभ मुहूर्त
अहोई अष्टमी का व्रत 28 अक्टूबर 2021 को बृहस्पतिवार के दिन रखा जाएगा।
पूजा का शुभ मुहूर्त- 05:39 PM से 06:56 PM
अवधि- 01 घण्टा 17 मिनट
गोवर्धन राधा कुण्ड स्नान गुरुवार, अक्टूबर 28, 2021 को
तारों को देखने के लिए सांझ का समय- 06:03 PM
अहोई अष्टमी के दिन चन्द्रोदय समय-11:29 PM
पूजा विधि
अहोई अष्टमी के दिन महिलाओं को सूर्योदय से पहले उठकर स्नानादि से निवृत होकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। शुभ मुहूर्त में पूजा के लिए गेरू पर दीवार से अहोई माता का चित्र बनाएं, साथ ही सेह और उनके सात पुत्रों का चित्र भी बनाएं। आप चाहें तो दीवार पर चित्र बनाने की जगह मार्केट से खरीदे गए कैलेंडर का भी इस्तेमाल कर सकती हैं।
फिर एक कलश जल से भरकर पूजा स्थल पर रख दें। फिर चावल और रोली से अहोई माता की पूजा करें। अब अहोई माता को मीठे पुए या फिर आटे के हलवे का भोग लगाएं। अब हाथ में गेहूं के सात दाने लेकर अहोई माता की कथा सुनें। फिर शाम के समय तारे निकलने के बाद अर्घ्य देकर अपना व्रत खोलें।
सामग्री
अहोई माता मूर्ति, माला, दीपक, करवा, अक्षत, पानी का कलश, पूजा रोली, दूब, कलावा, श्रृंगार का सामान, श्रीफल, सात्विक भोजन, बयाना, चावल की कोटरी, सिंघाड़े, मूली, फल, खीर, दूध व भात, वस्त्र, चौदह पूरी और आठ पुए आदि।
महिलाएं न करें मिट्टी से जुड़ा कोई काम
अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) के व्रत के दिन महिलाओं को मिट्टी से जुड़ा कोई काम नहीं करना चाहिए। इसके अलावा भूलकर भी खुरपी का इस्तेमाल नहीं करें. अहोई अष्टमी के दिन ऐसा करना अशुभ होता है।
इन रंगों के कपड़े नहीं पहनें महिलाएं
वैसे तो हिंदू धर्म की हर पूजा में सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा होती है लेकिन अहोई अष्टमी की पूजा शुरू करने से पहले गणेश जी की पूजा करना का विशेष महत्व है। अहोई अष्टमी पर अर्घ्य के लिए कांसे के लोटे का इस्तेमाल नहीं करें. इसके अलावा महिलाएं गहरे नीले या काले रंग के कपड़े नहीं पहनें।
पूजा में सारी सामग्री होनी चाहिए नई
अहोई अष्टमी की पूजा में पूजा की सारी सामग्री नई होनी चाहिए। पहले इस्तेमाल की गई पूजा सामग्री का इस्तेमाल नहीं करें. इसके अलावा फूल-फल और मिठाई ताजा होनी चाहिए।
खाना बनाने में नहीं इस्तेमाल करें ये चीजें
अहोई अष्टमी के व्रत के दिन खाना बनाने में प्याज, लहसुन और तेल आदि का इस्तेमाल नहीं करें। जो महिलाएं अहोई अष्टमी का व्रत रखें वो दिन में सोने से परहेज करें। गलती से भी घर में किसी बड़े-बुजुर्ग का अनादर न करें।
धारदार चीजों का नहीं करें इस्तेमाल
अहोई अष्टमी के दिन व्रत रखने वाली महिलाएं किसी भी धारदार चीज का इस्तेमाल नहीं करें। कैंची, चाकू, सुई और ब्लेड आदि का इस्तेमाल नहीं करें। धारदार चीजों का इस्तेमाल अशुभ माना जाता है।
अष्टमी व्रत की पूरी कथा
हिंदू धर्म में प्रचलित एक कथा के मुताबिक, एक साहुकार से सात बेटे और एक बेटी थीं। सातों पुत्रों की शादी हो चुकी थी। दीपावाली मनाने के लिए साहुकार की बेटी घर आई हुई थी। दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं के साथ बेटी मिट्टी लाने जंगल निकली। साहूकार की बेटी जिस जगह से मिट्टी निकाल रही थी, वहां खुरपी की धार से स्याहू का एक बेटा मर गया। स्याहू इस बात से रोने लगी और गुस्से आकर बोली-मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी।
इस बात को सुन वह घबरा गई और उसने अपनी सातों भाभियों को एक-एक कर उसके बदले में कोख बंधवाने को कहा। सबसे छोटी बहू को ननद का दर्द देखा ना गया और वो अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो गई। इस घटना के बाद उसके जो बच्चे होते तो सातवें दिन मर जाते। ऐसे करते-करते छोटी बहू के सात बेटों की मृत्यु हुई। अपने साथ बार-बार होती इस घटना को देख उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा। पंडित ने हल बताते हुए सलाह दी कि वह सुरभी गाय की सेवा करे। वहां, स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहू का आशीर्वाद देती है। इसके बाद छोटी बहू के पुत्र की असमय मृत्यु नहीं होती और हमेशा के लिए उसका घर हरा-भरा हो जाता है।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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