मेरी काठ की है नाव, तेरे जादू भरे पांव, बेटे के व्योग में तड़प तड़पकर दशरथ ने त्याग दिए प्राण
वन में राम, लक्षमण और सीता के साथ राजा दशरथ ये कहकर अपने मंत्री सुमंत को भेजते हैं कि तीनों को कुछ दिनों तक वनों में घूमाकर वापस ले आना। वन में पहुंचने पर राजा राम सुमंत को रथ सहित वापस जाने को कहते हैं। इस पर वह मुर्छित हो जाते हैं। इसी दौरान राम पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ आगे निकल जाते हैं। तीनों वनवासी आगे बढ़ते हैं तो वहां नदी को पार करने के लिए वह भील राज केवट से नाव से नदी पार कराने को कहते हैं।
केवट तो राम भक्त था। वह राम को नदी पार कराने से मना कर देता है। वह कहता है कि-मेरी काठ की है नाव, तेरे जादू भरे पांव। यानी मेरी लकड़ी की नाव है और आपके पैर जादू भरे हैं। इन पैर की धूल को छूते ही पत्थर बनी अहिल्या नारी बन जाती है तो मेरी नाव भी गायब हो जाएगी। फिर मैं कहां से अपना जीवन यापन करूंगा। केवट-आगे कहते हैं कि-पहले पांव पखारूं, फिर नैया पार उतारूं। यानी वे राम के चरण धोने की वंदना करते हैं। इस पर राम उन्हें ऐसा करने देते हैं। तब जाकर केवट नाव को नदी के पार कराते हैं। इस पर सीता उन्हें नदी पार कराने के लिए अपनी अंगूठी देती हैं।
उधर, होश में आने के बाद केवट अयोध्यापुरी लौट जाते हैं। वहां राजा दशरथ को वह बताते हैं कि प्रभु राम, पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वन को चले गए हैं। इस समाचार को सुनकर राजा दशरथ बेटे के मोह में व्याकुल होकर तड़प तड़प कर प्राण दे देते हैं। वहीं, कैकई मंत्रियों को भरत और शत्रुघ्न को नौनीहाल से वापस बुलाने का आदेश देती है।
मंगलवार रात नौ बजे से आरंभ हुई रामलीला रात बारह बजे तक मंचित की गई। इस दौरान रामलीला मंचन में संरक्षक जय भगवान साहू, प्रधान योगेश अग्रवाल, कोषाध्यक्ष नरेंद्र अग्रवाल, मंत्री अजय गोयल, स्टोर कीपर वेद साहू, ऑडिटर प्रकाश विद्वान, मंत्री अमर अग्रवाल, विभु वेदवाल विद्वान आदि ने भरपूर सहयोग दिया।
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।