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July 16, 2025

जानिए उधमसिंह नगर जिले के प्रमुख नगरों के बारे मेंः देवकी नंदन पांडे

उत्तराखंड के हर जिले का अपना भौगोलिका, प्राकृतिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है। यहां प्रकृति ने मनोरम छटाएं बिखेरी हुई हैं। उधमसिंह नगर भारतीय राज्य उत्तराखंड का एक जिला है।

उत्तराखंड के हर जिले का अपना भौगोलिका, प्राकृतिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है। यहां प्रकृति ने मनोरम छटाएं बिखेरी हुई हैं। उधमसिंह नगर भारतीय राज्य उत्तराखंड का एक जिला है। जिले का मुख्यालय रुद्रपुर है। इस जिले के काशीपुर, खटीमा, सितारगंज, किच्छा, जसपुर, बाजपुर, गदरपुर,रुद्रपुर और नानकमत्ता नाम की नौ तहसीलें हैं। उधमसिंह नगर पहले नैनीताल जिले में था। अक्टूबर 1995 में इसे अलग जिला बना दिया गया। इस जिले का नाम स्वर्गीय उधम सिंह के नाम पर रखा गया है। उधमसिंह स्वतंत्रता सेनानी थे। जलियांवाला बाग हत्याकांड के मुख्य अंग्रेज अफसर जनरल डायर की हत्या इन्होंने ही की थी।
तराई का सबसे पुराना शहर है काशीपुर
तराई क्षेत्र का सबसे प्रसिद्ध व पुराना शहर काशीपुर है। सन 1718 में कुमाऊँ के राजा देवीचंद के तराई के लाट
काशीनाथ अधिकारी ने अपने नाम से इस नगर को बसाया। इसका पुराना किला उज्जैन कहलाता है, इसके निकट
द्रोणसागर है। यह सागर किले से कई वर्ष पूर्व निर्मित किया गया था। यह छ: सौ फीट लम्बा चौकोर आकार में है।
कत्यूरी व चंद राजा यहाँ शीतकाल में धूप का आनन्द लेने आया करते थे। यहां के मंदिरों की समानता कत्यूरी काल के मंदिरों के समकक्ष है। पहले यहाँ बुक्सा जाति के लोग अधिक रहा करते थे। अब तो पर्वतीय व मैदानी सभी यहाँ रहते हैं। यहाँ अनाज बहुतायत में होता है। साल, शीशम, आबसून, पापड़ी, हल्दू व खैर की लकड़ी दूर-दूर तक भेजी जाती है। वनस्पति औषधियाँ हरड़, बहेड़ा, आंवला, पीपल, रोली, चिरौंजी, हंसराज, कपूर, कचरी, चिरायता आदि जंगलों में विद्यमान हैं। जंगली जानवर सभी प्रकार के देखने को मिल जाते हैं।
एक ही स्थान पर हैं तीन गढ़
यहाँ एक ही स्थान पर तीन गढ़ हैं जो राम के नाम से रामपुर, लक्ष्मन के नाम से लक्ष्मपुर और भरत के नाम से
चैतान कहलाते हैं। यह स्थान सिद्धों का माना जाता है। प्राकृतिक स्रोतों से निकले जलस्रोत, जो नदी के रूप में बहते हैं,
कालीगाड़ और चहल कहलाते हैं। इनके पानी से क्यारी, पत्तावाणी, गैबुवा, बैलपड़ाव आदि क्षेत्र सिंचित किये जाते
हैं। कमौला-धमौला में भी कभी सम्पन्न बस्ती हुआ करती थी, इसी कारण खेतों की जुताई पर कभी-कभी सोने की
अशर्फियाँ भी निकली हैं। देचौरी में कभी लोहे की खान व कारखाना था। चूनाखान से गट्टी का चूना बहुत लम्बे
समय तक दूसरे राज्यों में भेजा जाता रहा है।

रुद्रपुर
राजा रूद्रचंद ने 1568 से 1597 तक यहाँ शासन किया। इसी राजा के शासनकाल में तराई-भाबर को मुगलों के शासन से मुक्ति मिली तथा यह क्षेत्र सम्पन्नता का द्योतक बना। परिणामतः सन 1600 में उन्हीं के नाम पर रूद्रपुर नाम रखा गया। अकबर बादशाह के काल में इतिहासकारों ने बार-बार लिखा है कि कुमाऊँ का राजा एक समृद्ध राज्य का स्वामी है। आइने-अकबरी में कुमाऊँ सरकार के बारे में वृतान्त इस प्रकार दिया गया है – “सरकार बदायूँ” के बाद सरकार कुमायूँ है।
यहाँ की कुछ प्राचीन बस्तियाँ इस प्रकार थी
बुकसी या बुकसा – इसका नाम इस समय भी बुकसाड़ है, इसमें रूद्रपुर व किलपुरी के क्षेत्र सम्मिलित हैं।
सेहुजपुर – वर्तमान जसपुर है।
गुरजपुर – अब गदरपुर के नाम से जाता है।
सीताहूर – सीताचौर या कालाचौर जो अब सीतावनी कहलाया जाता है।
वर्तमान ऊधमसिंह नगर, इससे पूर्व सन् 1861 में भी एक स्वतंत्र जिला था, बाद में सन् 1870 में इसे कुमाऊँ प्रान्त में सम्मिलित किया गया।
जसपुर
यह काशीपुर से 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक पूर्ण नगर है। इसे कुमाऊँ के तत्कालनी यशोधरा जोशी ने बसाया था। यहाँ कपड़ा बनाने व छपाई का काम भी होता हैं यह क्षेत्र तराई नहीं कहलाता। यहाँ का वातावरण तराई की अपेक्षाकृत ठंडा है। अकबर के शासनकाल में इसका नाम शहजगीर था।

नानकमत्ता
हल्द्वानी से 37 किलोमीटर की दूरी पर नानक सागर झील के तट पर प्रसिद्ध नानक मत्ता गुरूद्वारा स्थित है।
पन्तनगर
एशिया का सबसे बड़ा कृषि एवं प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय है। इसकी स्थापना 17 नवम्बर 1960 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने की थी। वेटनरी, कृषि, इंजीनियरिंग, फिसरिज एवं गृह विज्ञान आदि विश्वविद्यालय की विशेष पहचान हैं। दिल्ली से हवाई यात्रा द्वारा कुमाऊँ व पौड़ी गढ़वाल क्षेत्र में आने वाले पर्यटकों के लिए यहाँ हवाई पट्टी भी है।
गुलभरोज
यहाँ कन्डियाँ, पिटारे, चटाइयाँ, छाज आदि बनाये जाते हैं। यहाँ पर एक बहुत बड़ा बाँध हैं, जो गदरपुर, सितारगंज, खटीमा, लालकुआं आदि स्थानों को सिंचित करता है।
सितारगंज
यह एक व्यापारिक केन्द्र है।
सुल्तानपुर
यह किच्छा से काशीपुर को जाने वाली तराई की सड़क पर स्थित है। यह क्षेत्र का सबसे बड़ा व्यवसायिक केन्द्र है।
जिम कार्बेट पार्क
जिम कार्बेट के नाम पर देश का प्रथम राष्ट्रीय उद्यान है, इस उद्यान का एक भाग उधमसिंह नगर तथा दूसरा
भाग पौड़ी गढ़वाल जनपद में पड़ता है। पार्क का केन्द्र ढिकाला नैनीताल से 144 किलोमीटर तथा रामनगर से 49
किलोमीटर है। वन्य जीव जन्तुओं को संरक्षण देने के उद्देश्य से इस पार्क की स्थापना ब्रिटिश सरकार ने 11 मई
1935 में की थी। पार्क का वास्तविक नाम हैली नेशनल पार्क था। सन् 1954 में इस पार्क का नाम बदलकर जिम
कार्बेट नेशनल पार्क कर दिया गया। इस पार्क के दक्षिण पश्चिम किनारे पर रामगंगा नदी पर कालागढ़ बाँध बना हुआ
है।

यह पार्क जिस घाटी पर स्थित है, वह पहाड़ी 3000 फीट से 5000 फीट तक की ऊँचाई रखती है। लगभग 525.9
वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले इस पार्क में घूमने के लिए सबसे उपयुक्त समय नवम्बर से जून मध्य तक है। ढिकाला से
नेशनल पार्क तक जाने के लिए हाथी, यात्रा के लिए मिल जाते हैं। आवश्यकता पड़ने पर वन विभाग द्वारा हथियार
बन्द गाइड भी पर्यटकों को सुविधानुसार दिए जाते हैं। इस पार्क में हाथी, पेंथर, स्लोथ, बियर, सांभर, बार्क डियर,
नील गाय, जंगली सुअर, वाइल्ड कैट, गीदड़, लोमड़ी आदि हैं। रिजर्व फोरेस्ट ऑफ इंडिया ने प्रोजेक्ट टाइगर के
अन्तर्गत 10 टाइगरों को पार्क में रखा है। पार्क में पर्यटकों को अनेक पक्षियों को देखने का अवसर भी प्राप्त होता है।
पढ़ें: कुमाऊं का आंगन है उधमसिंह नगर, कृषि प्रधान और औद्योगिक केंद्र के रूप में है पहचान, जानिए इस जिले का इतिहास

लेखक का परिचय
लेखक देवकी नंदन पांडे जाने माने इतिहासकार हैं। वह देहरादून में टैगोर कालोनी में रहते हैं। उनकी इतिहास से संबंधित जानकारी की करीब 17 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। मूल रूप से कुमाऊं के निवासी पांडे लंबे समय से देहरादून में रह रहे हैं।

सभी फोटोः साभार सोशल मीडिया

Bhanu Bangwal

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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