Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

November 22, 2024

कवि एवं साहित्यकार दीनदयाल बन्दूणी की गढ़वाली गजल-दग्णु

कवि एवं साहित्यकार दीनदयाल बन्दूणी की गढ़वाली गजल-दग्णु।

दग्णु

एक भलु दग्णु, मन्खि थैं कख-पौंछै दींद.
एक बुरु दग्णु, मन्खि थैं कख- गिरै दींद..

जमीन से जुड़िक-खूब पढिक,अग्नै बढा,
असमान नज़र, मन्खि थैं अलग-बिरै दींद..

दरविरा खांणु – गांणू – बजाणू , भलु हूंद,
भिंडि घ्यू – दूध खैकि बि, पेट- छिरै दींद..

अकेलम त स्यू-बाघ बि, दुम दबै- भगद,
दगुणु हो त- स्याऴ बि, मन्खि- घिरै दींद..

द्यवतौं दोष, न कबि कै लागु- न कै लगदु,
दुखि मन्खि अफी, खाडु-बोक्ट्या सिरै दींद..

कठिन बग्त कब नि आंदु, जब-तब आंद,
पर अपणौं कु दग्णु, मन्खि थैं- जितै दींद..

‘दीन’ मन्खी आस, अपणौं से बढद-घटद,
अपणौं बगैर त, जितीं बाजि बि- हरै दींद..

कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *