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September 10, 2025

आंगन से लेकर रोजमर्रा की वस्तुओं तक पहुंची कुमाऊं की एपण कला, अब राखी बनाने में जुटीं छात्रा एकता

कुमाऊं में चित्रकारी के रूप में विख्यात एपण कला को नवयुवतियां नया आयाम देने में जुटीं हैं। अभी तक घर की देहरी में सजाई जाने वाली एपण ने तो अब रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं तक पहुंच बना ली है।

कुमाऊं में चित्रकारी के रूप में विख्यात एपण कला को नवयुवतियां नया आयाम देने में जुटीं हैं। अभी तक घर की देहरी में सजाई जाने वाली एपण ने तो अब रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं तक पहुंच बना ली है। यही नहीं, वस्त्र, आभूषण के साथ ही ड्राइन रूम की सुंदरता में एपण चार चांद लगा रहे हैं। वहीं, अब तीज त्योहार में बनाई जाने वाली एपण अब लोगों की रोजी रोटी का जरिया भी बन चुका है। अब देखिए 22 अगस्त को रक्षा बंधन का त्योहार है और अभी से एपण से राखियां सजने लगी हैं। इसे बनाने में युवतियां जुटने लगी हैं।
अल्मोड़ा में एक प्रयास
यूं तो एपण कला से ऐसी महिलाओं की संख्या काफी है, जो एपण कला के जरिये स्वरोजगार को बढ़ावा दे रहगी हैं। सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में बीए तृतीय वर्ष की छात्रा एकता ने पढ़ाई के साथ ही एपण को रोजगार का जरिया बनाया हुआ है। उन्होंने अल्मोड़ा के चौखानपाटा में चाइनाटाउन कालिका मंदिर के निकट एपण स्टूडियो भी खोला हुआ है। इसमें युवतियों को एपण कला का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। ताकि वे पढ़ाई के साथ ही स्वरोजगार को अपना सकें। उन्होंने बताया कि अन्य दूसरे लोगों की तरह किए जा रहे प्रयास के तहत वह भी इस कला को देश विदेश तक पहुंचाने में अपना योगदान देना चाहती हैं। साथ ही महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ने का उनकी तरफ से ये एक प्रयास है। महिलाओं को स्टूडियो में मुफ्त प्रशिक्षण की व्यवस्था है। उन्होंने बताया कि स्टूडियो में एपण कला से तैयार कलाकृति आम लोगों के लिए सस्ती दर पर उपलब्ध भी है।

लगा चुकीं हैं आनलाइन वर्कशाप
उन्होंने बताया कि कोरोनाकाल के दौरान वह और उनकी टीम की सदस्यों ने ऑनलाइन कार्यशाला करके लोगों को एपण कला का प्रशिक्षण भी दिया था। आगे भी इस तरह की कार्यशाला आयोजित करने के साथ ही लोगों को इस कला के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया जाएगा।
इन दिनों कर रहे हैं राखी तैयार
इन दिनों रक्षाबंधन पर्व को ध्यान में रखते हुए राखियां तैयार की जा रही हैं। उन्होंने बताया कि इसके साथ ही नेम प्लेट, कुशन कवर, चौकियां, टिशू होल्डर, पैन होल्डर, दीपक आदि सजावटी सामान भी तैयार किए जा रहे हैं। इन सामग्री को लोग सीधे स्टूडियो से ले सकते हैं। या फिर आनलाइन आर्डर किया जा सकता है।

ये है वेबसाइट
http://Aipanlokkala.blogspot.com
इंस्टाग्राम
https://instagram.com/aipan_art_studio?utm_medium=copy_link
क्या है एपण
अब सवाल उठता है कि वास्तव में एपण क्या है। क्योंकि उत्तराखंड के लोग तो इसे जानते होंगे, लेकिन दूसरे राज्यों के लिए हो सकता है ये नाम नया हो। ऐसे में इस कला के संबंध में हम बता रहे हैं। उत्तराखंड के कुमाऊं की स्थानीय चित्रकला की शैली को एपण के रूप में जाना जाता है। मुख्यतया उत्तराखंड में शुभ अवसरों पर बनायीं जाने वाली रंगोली को ऐपण कहते हैं। ऐपण कई तरह के डिजायनों से पूर्ण होता है। गलियों और हथेलियों का प्रयोग करके अतीत की घटनाओं, शैलियों, अपने भाव विचारों और सौंदर्य मूल्यों पर विचार कर इन्हें संरक्षित किया जाता है।
ऐपण के मुख्य डिजायन
चौखाने, चौपड़, चाँद, सूरज, स्वस्तिक, गणेश, फूल-पत्ती, बसंत्धारे, पो, तथा इस्तेमाल के बर्तन का रूपांकन आदि शामिल हैं। ऐपण के कुछ डिजायन अवसरों के अनुसार भी होते हैं। गाँव घरो में तो आज भी हाथ से एपण तेयार कियें जातें है।

इनका होता है प्रयोग
ऐपण बनने के लिए गेरू तथा चावल के विस्वार (चावल को भीगा के पीस के बनाया जाता है ) का प्रयोग किया जाता है। समारोहों और त्योहारों के दौरान महिलाएं आमतौर पर एपण को फर्श पर, दीवारों को सजाकर, प्रवेश द्वार, रसोई की दीवारों, पूजा कक्ष और विशेष रूप से देवी देवताओं मंदिर के फर्श पर कुछ कर्मकाण्डो के आकड़ो के साथ सजाती है।
स्वयंसेवी संस्थाएं जुटी हैं कला को संवारने में कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं ने एपण कला को जीवित रखने का प्रयास किया है। ग्रामीण अंचलों में यह परंपरा काफी समृद्ध है। संस्थाये ऐंपण कला सिखाने के लिए समय-समय पर प्रशिक्षण शिविर लगाती रहती है। प्रमुख रूप से इसमें महिलाओं को लक्ष्मी चौकी, विवाह चौकी (जिसें दुल्हेर्ग कहा जाता है), दिवाली की चौकी तैयार करने के तरीके सिखाए जाते हैं।

Bhanu Bangwal

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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