जानिए निर्जला एकादशी के व्रत का महत्व, शुभ मुहूर्त और व्रत की कथाः डॉ. आचार्य सुशांत राज
हर माह दो बार पड़ती हैं एकादशी
डॉक्टर आचार्य सुशांत राज के मुताबिक निर्जला एकादशी व्रत ज्येष्ठ शुक्ल की एकादशी तिथि के दिन रखा जाता है। इस साल निर्जला एकादशी 21 जून को पड़ रही है। इस एकादशी को भीमसेन एकादशी, पांडव एकादशी और भीम एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। प्रत्येक महीने में दो एकादशियां होती हैं, एक कृष्ण पक्ष और दूसरी शुक्ल पक्ष में आती है। उत्तम संतान की इच्छा रखने वालों को शुक्ल पक्ष की एकादशी का उपवास एक वर्ष तक करना चाहिए। एकादशी का व्रत रखने से श्री हरि अपने भक्तों से प्रसन्न होकर उन पर अपनी कृपा बनाए रखते हैं। सभी एकादशियों में ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की इस निर्जला एकादशी का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है।
बगैर पानी पीकर है व्रत का विधान
निर्जला एकादशी में निर्जल यानी बिना पानी पिए व्रत करने का विधान है। इस एकादशी का पुण्य फल प्राप्त होता है। कहते हैं जो व्यक्ति साल की सभी एकादशियों पर व्रत नहीं कर सकता, वो इस एकादशी के दिन व्रत करके बाकी एकादशियों का लाभ भी उठा सकता है। इस दिन व्रती एक बूंद पानी की ग्रहण नहीं करता है।
महाभारत काल में भीम ने किया था इसका पालन
शास्त्रों के अनुसार, अपने जीवन में मनुष्य को निर्जला एकादशी का व्रत अवश्य रखना चाहिए। इस व्रत को निर्जला के आलावा पांडव एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि इस व्रत का पालन महाभारत काल में भीमसेन ने किया था और उनको स्वर्गलोक की प्राप्ति हुई थी। ऐसी मान्यता है कि एकादशी व्रत को करने से मोक्ष की प्राप्ति तो होती है। इसके साथ ही लोगों की सभी मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं। एकादशी के व्रत में भगवान विष्णु की पूजा पूरे विधि-विधान के साथ की जाती है।
निर्जला एकादशी का शुभ मुहूर्त
निर्जला एकादशी तिथि- 21 जून 2021
एकादशी तिथि प्रारंभ: 20 जून को शाम 4 बजकर 21 मिनट से शुरू
एकादशी तिथि समाप्त: 21 जून दोपहर 1 बजकर 31 मिनट तक
पारण का समय- 22 जून सुबह 5 बजकर 13 मिनट से 8 बजकर 1 मिनट तक
हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत रखता है महत्वपूर्ण स्थान
डॉक्टर आचार्य सुशांत राज के मुताबिक प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहते है। इस व्रत मे पानी का पीना वर्जित है। इसलिये इस निर्जला एकादशी कहते है।
ये है व्रत कथा
जब सर्वज्ञ वेदव्यास ने पांडवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया तो महाबली भीम ने निवेदन किया- पितामह! आपने तो प्रति पक्ष एक दिन के उपवास की बात कही है। मैं तो एक दिन क्या एक समय भी भोजन के बगैर नहीं रह सकता- मेरे पेट में ‘वृक’ नाम की जो अग्नि है, उसे शांत रखने के लिए मुझे कई लोगों के बराबर और कई बार भोजन करना पड़ता है। तो क्या अपनी उस भूख के कारण मैं एकादशी जैसे पुण्यव्रत से वंचित रह जाऊँगा?
पितामह ने भीम की समस्या का निदान करते और उनका मनोबल बढ़ाते हुए कहा- नहीं कुंतीनंदन, धर्म की यही तो विशेषता है कि वह सबको धारण ही नहीं करता, सबके योग्य साधन व्रत-नियमों की बड़ी सहज और लचीली व्यवस्था भी उपलब्ध करवाता है। अतः आप ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला नाम की एक ही एकादशी का व्रत करो और तुम्हें वर्ष की समस्त एकादशियों का फल प्राप्त होगा। निःसंदेह तुम इस लोक में सुख, यश और प्राप्तव्य प्राप्त कर मोक्ष लाभ प्राप्त करोगे।
इतने आश्वासन पर तो वृकोदर भीमसेन भी इस एकादशी का विधिवत व्रत करने को सहमत हो गए। इसलिए वर्ष भर की एकादशियों का पुण्य लाभ देने वाली इस श्रेष्ठ निर्जला एकादशी को लोक में पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन जो स्वयं निर्जल रहकर ब्राह्मण या जरूरतमंद व्यक्ति को शुद्ध पानी से भरा घड़ा इस मंत्र के साथ दान करता है।
दूसरी कथा
एक बार महर्षि व्यास पांडवो के यहाँ पधारे। भीम ने महर्षि व्यास से कहा, भगवान! युधिष्ठर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, माता कुन्ती और द्रौपदी सभी एकादशी का व्रत करते है और मुझसे भी व्रत रख्ने को कहते है परन्तु मैं बिना खाए रह नही सकता है इसलिए चौबीस एकादशियो पर निरहार रहने का कष्ट साधना से बचाकर मुझे कोई ऐसा व्रत बताईये, जिसे करने में मुझे विशेष असुविधा न हो और सबका फल भी मुझे मिल जाये। महर्षि व्यास जानते थे कि भीम के उदर में बृक नामक अग्नि है इसलिए अधिक मात्रा में भोजन करने पर भ उसकी भूख शान्त नही होती है महर्षि ने भीम से कहा तुम ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी का व्रत रखा करो।
इस व्रत मे स्नान आचमन मे पानी पीने से दोष नही होता है इस व्रत से अन्य तेईस एकादशियो के पुण्य का लाभ भी मिलेगा तुम जीवन पर्यन्त इस व्रत का पालन करो भीम ने बड़े साहस के साथ निर्जला एकादशी व्रत किया। जिसके परिणाम स्वरूप प्रातः होते होते वह सज्ञाहीन हो गया तब पांडवो ने गगाजल, तुलसी चरणामृत प्रसाद, देकर उनकी मुर्छा दूर की। इसलिए इसे भीमसेन एकादशी भी कहते हैं।
विधान
यह व्रत नर नारी दोनो को करना चाहिए। इस दिन निर्जल व्रत करते हुए शेषशायी रूप मे भगवान विष्णु की अराधना का विशेष महत्व है। इस दिन ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का जप करके गोदान, वस्त्र दान, छत्र, फल आदि का दान करना चाहिये।
गंगा स्नान का महत्व, इस बार हरिद्वार में प्रतिबंधित
निर्जला एकादशी को गंगा स्नान का भी महत्व है। इस बार कोविड संक्रमण के चलते हरिद्वार में प्रशासन ने सांकेतिक स्नान की अनुमति दी है। साथ ही बाहरी राज्यों के श्रद्धालुओं की हरिद्वार एंट्री पर रोक लगाई गई। कोरोना महामारी के चलते पुलिस प्रशासन ने दूसरे राज्यों के श्रद्धालुओं से गंगा स्नान के लिए हरिद्वार न आने की अपील की है। 21 जून को निर्जला एकादशी पर भी जिले की सभी सीमाएं सील रहेंगी। पुलिस प्रशासन के अनुसार हरकी पैड़ी समेत अन्य घाटों पर स्नान सांकेतिक होगा।
आचार्य का परिचय
नाम डॉ. आचार्य सुशांत राज
इंद्रेश्वर शिव मंदिर व नवग्रह शनि मंदिर
डांडी गढ़ी कैंट, निकट पोस्ट आफिस, देहरादून, उत्तराखंड।
मो. 9412950046
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
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