नहीं रहे विख्यात पर्यावरण गांधी सुंदरलाल बहुगुणा, जानिए उनके बारे में, पीएम मोदी ने जताया दुख
जानेमाने पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा का 94 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। कोरोना पीड़ित होने के कारण उनका एम्स ऋषिकेश में इलाज चल रहा था। पिछले काफी समय से वे बीमार भी थे। बिस्तर पर ही उनका घर पर इलाज चल रहा था। आज उन्होंने अंतिम सांस ली।
पर्यावरणविद् सुन्दरलाल बहुगुणा का अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, एम्स ऋषिकेश में उपचार चल रहा था। वह डायबिटीज के पेशेंट हैं और उन्हें कोविड के साथ ही निमोनिया था। विभिन्न रोगों से ग्रसित होने के कारण वह पिछले कई वर्षों से नियमिततौर पर दवाइयों का सेवन कर रहे थे। 94 वर्षीय बहुगुणा को कोरोना संक्रमित होने के बाद बीती 8 मई को एम्स में भर्ती किया गया था। बिस्तर पर रहने के कारण उन्हें बेड सोर भी हो गया था। बहुगुणा वह सिपेप पर थे और उनका ऑक्सीजन लेवल 86 प्रतिशत पर था। चिकित्सक भरसक प्रयास करते रहे, लेकिन उन्हें बचा नहीं सके। 21 मई की दोपहर 12 बजकर पांच मिनट पर उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
पीएम मोदी ने जताया दुख
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रसिद्ध पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा के निधन पर दुख जताया। ट्वीट कर उन्होंने कहा कि सुंदरलाल बहुगुणा का निधन हमारे देश के लिए एक बड़ी क्षति है। उन्होंने प्रकृति के साथ सद्भाव में रहने के हमारे सदियों पुराने लोकाचार को प्रकट किया। उनकी सादगी और करुणा की भावना को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। मेरे विचार उनके परिवार और कई प्रशंसकों के साथ हैं। वहीं, मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत, विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल, हेस्को के संस्थापक पद्म भूषण डॉ. अनिल प्रकाश जोशी, पूर्व सीएम विजय बहुगुणा, पूर्व राज्यसभा सदस्य तरुण विजय, उत्तराखंड कांग्रेस उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना, इतिहासकार देवकी नंदन पांडे, जनकवि अतुल शर्मा समेत कई लोगों ने सुंदरलाल बहुगुणा के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है।
चिपको आंदोलन के हैं प्रणेता
चिपको आंदोलन के प्रणेता सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म नौ जनवरी सन 1927 को देवभूमि उत्तराखंड के मरोडा नामक स्थान पर हुआ। प्राथमिक शिक्षा के बाद वे लाहौर चले गए और वहीं से बीए किया। सन 1949 में मीराबेन व ठक्कर बाप्पा के सम्पर्क में आने के बाद ये दलित वर्ग के विद्यार्थियों के उत्थान के लिए प्रयासरत हो गए। उनके लिए टिहरी में ठक्कर बाप्पा होस्टल की स्थापना भी की। दलितों को मंदिर प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने आन्दोलन छेड़ दिया।
अपनी पत्नी श्रीमती विमला नौटियाल के सहयोग से इन्होंने सिलयारा में ही ‘पर्वतीय नवजीवन मण्डल’ की स्थापना भी की। सन 1971 में शराब की दुकानों को खोलने से रोकने के लिए सुंदरलाल बहुगुणा ने सोलह दिन तक अनशन किया। चिपको आन्दोलन के कारण वे विश्वभर में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध हो गए। उत्तराखंड में बड़े बांधों के विरोध में उन्होंने काफी समय तक आंदोलन भी किया। सुन्दरलाल बहुगुणा के अनुसार पेड़ों को काटने की अपेक्षा उन्हें लगाना अति महत्वपूर्ण है। बहुगुणा के कार्यों से प्रभावित होकर अमेरिका की फ्रेंड ऑफ नेचर नामक संस्था ने 1980 में उन्हें पुरस्कृत भी किया। इसके अलावा उन्हें कई सारे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। पर्यावरण को स्थाई सम्पति माननेवाला यह महापुरुष आज ‘पर्यावरण गाँधी’ बन गया है।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
बहुत दुखद समाचार, ओम् शान्ति??