युवा लेखिका ने दिया अलकनंदा नदी की चिट्ठी का जवाब, पढ़िए और मनन करिए (नदी को चिट्ठी-3)
नौ दिसंबर 2020 को लोकसाक्ष्य के माध्यम से युवा लेखिका एवं कवयित्री किरन पुरोहित ने अलकनंदा नदी को पत्र लिखा था। किरन पुहोरित के पत्र का जवाब 14 फरवरी 2021 को अलकनंदा नदी ने दिया है। इन पत्र के लिंक इस स्टोरी के अंत में दिए गए हैं। इसे आप पढ़ सकते हैं। पत्र के जवाब में अब लेखिका ने फिर नदी को चिट्टी लिखी है। एक बार ये चिंतन जरूर करें कि आखिरकार हम विकास के नाम पर कहां खड़े हैं। खैर हमारी लेखिका के अलकनंदा नदी को लिखे गए पत्र को हम यहां पाठकों को पढ़ाने जा रहे हैं।
नदी को चिट्ठी
भाग — 3
प्रिय सखी अलकनंदा,
सस्नेह प्रणाम
सखी! तुम्हारी उस चिट्ठी का जवाब इतनी देर से दिया है मुझे क्षमा कर देना परंतु मैं तुमसे क्या कहती ? मेरे पास कोई शब्द नहीं हैं। तुम्हारी इस वेदना को मैं कैसे बाटूं ? और ऐसा क्या कहूं जो तुम्हारे शोक को कुछ शांत करे ? सखी अलकनंदा तुम्हारी वह चिट्ठी जिसने भी पढ़ी उसके पास कोई शब्द शेष नहीं रहा। किसी के आंसू आंखों से बहे और किसी के आत्मा से । कोई तुम्हारे सवालों का क्या जवाब देता मैंने तो जितने भी लोगों को देखा तो पाया कि जिसने तुम्हारी वेदना पढ़ी वो सिर झुकाए रह गया ।
उनमें से अलग मैं भी नहीं हूं। मैं भी तेरी दोषी हूं किंतु मैं तुझे दूषित करने और दूषित होता देखने का अपराध करके बैठूंगी नहीं, बल्कि रामसेतु पर अपनी धूल चढ़ाकर सेवा करने वाली गिलहरी की तरह एक छोटा सा योगदान जरूर करूंगी। तेरी पीड़ा को पढ़कर तेरे तट पर बैठकर तुझे वचन देती हूं कि मैं अंतिम सांस तक तुझे मलिनता के इस शोक से मुक्त करने का प्रयास करती रहूंगी।
सखी ! इतने दिनों बाद तुझे देखा तो मैंने पाया की धौली गंगा की धार तुझ में रैणीगांव की घाटी से लाया जो दुख बहा रही है, तू उस दुख से अब भी दुखी है। तभी तो तेरा वो सुंदर नीला आंचल मैला सा दिख रहा है। तुझे फिर उस रूप में कब देखूंगी जो मेरी आंखों को आकर्षित करता है । तू फिर कब हंसेगी सखी मुझे बता दे मैं तेरी वह हंसी देखने के लिए बेचैन हूं।
तुमने कहा था ना कि मानव सीमा से आगे बढ़ेगा तो मैं भी अपनी रक्षा के लिए सीमा तोड़ कर बहूंगी। सखी ! मैं तुम्हें इतना ही कहूंगी कि तुम्हें पर्वतों के प्रेम के अलावा और कौन बांध सका है। लालच के बांध तुम्हें कुछ समय के लिए जरूर बांध रहे हैं, परंतु तुम अधिक दिनों तक उन से बंधी नहीं रह सकोगी। शायद कभी तो तुम इन बंधनों से आजाद जरूर होंगी पर अपना आशीर्वाद ,भारत की संतानों पर हमेशा बनाए रखना। इन पर अधिक मत रुठो क्योंकि इनके पूर्वज तुम्हें पूजते आए हैं और तुम उनकी मां हो जीवन देती हो इसीलिए तुम जीवन ले नहीं सकती। पर गलती बढे तो दंड देने के लिए भी स्वतंत्र हो।
मेरी सहेली ! तुम बढ़ती रहो तुम्हारा आंचल अमृत से हमेशा भरपूर रहे । तुम्हारी चिंता मुझे चिंतित करती है और तुम्हारी चंचलता मेरे मन को भी चंचल कर देती है । इस समय तुम्हारे इस तट पर कहीं दूर से कोई बांसुरी की आवाज आ रही है । इस सुरीली बांसुरी की धुन को दिल में बिठा कर कुछ पल खुद में ठहर कर आराम करो । यह हम दोनों की थकान मिटा देगा । तुम मुझे मेरी इन बातों का जवाब अपनी पाती में लिखकर जल्दी भेजना । मैं इंतजार करूंगी ।।
तुम्हारी चिट्ठी के इंतजार में
तुम्हारी सहेली
हिमपुत्री किरन
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लेखिका का परिचय
नाम – किरन पुरोहित “हिमपुत्री”
पिता -दीपेंद्र पुरोहित
माता -दीपा पुरोहित
जन्म – 21 अप्रैल 2003
अध्ययनरत – हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय श्रीनगर मे बीए प्रथम वर्ष की छात्रा।
निवास-कर्णप्रयाग चमोली उत्तराखंड।
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अलकनंदा नदी को चिट्ठी किरण पुरोहित इतनी कम उम्र में भी इतना अच्छा लिखती है मेरा सौभाग्य है कि मैं पढ़ सका उन्हें बहुत-बहुत बधाई देता हूं और शुभकामनाएं प्रकट करता हूं इसी प्रकार मां अलकनंदा के साथ अपना पत्राचार जारी रखें और इस देश के लोगों को अपनी भावनाओं से अवगत कराएं
सादर नमन,
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय। । आप समान विद्वान पाठकों का आशीर्वाद साथ रहे तो यह पत्राचार लंबे समय तक चलेगा और अपने उद्देश्य में सफल हो जाएगा ।। ??
भौत सुंदर?? पत्र व जवाब