लॉकडाउन में बेरोजगार हुए युवकों ने गोबर उठाया तो बदलने लगी किस्मत
जी हां, ये मजाक नहीं बल्कि सच है। गोबर में दोनों हाथ भांडकर कोई अपनी और परिवार की आजीविका चला सकता है। इसका उदाहरण इन युवाओं ने दिया, जो लॉकडाउन में बेरोजगार होकर अपने गांव लौट गए थे। चलिए हम आपको उलझाते नहीं हैं और सीधे-सीधे कहानी पर आते हैं।
लॉकडाउन में हुए बेरोजगार
बात हो रही है उत्तराखंड में पौड़ी जिले जिल के द्वारीखाल ब्लॉक के बमोली गांव की। यहां के युवक लॉकडाउन से पहले गांव छोड़कर दूसरे शहरों और राज्यों में नौकरी कर रहे थे। सब कुछ ठीकठाक चल रहा था। लॉकडाउन हुआ और बेरोजगार होकर गांव चले आए। इन युवकों में बिजेंद्र हरिद्वार में ऑटो चलाते थे। संदीप रावत देहरादून में चाऊमिन की ठेली लगाते थे। संतोष दिल्ली में एक इलेक्ट्रोनिक्स कंपनी में थे। मनीष दिल्ली में होटल में काम करते थे। सभी गांव लौट आए।
गोबर को ही बनाया आजीविका का साधन
गांवं में बदरी गाय की संख्या भी काफी है। इन गायों का गोबर खेतों में फेंका रहता है। इस गोबर को एकत्र करके इन युवकों ने इनसे दीपक बनाना शुरू कर दिया। यह काम पिछले छह दिन से कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि गाय के गोबर से बने एक दीपक के इन्हें दो रुपये मिल रहे हैं। वहीं आगे मार्केट में छह रुपये में एक दीपक बेचा जा रहा है। अब तक ये युवक करीब पांच हजार दीपक बना चुके हैं।
इनका रहा सहयोग
इस काम में इन युवकों की मदद ग्राम प्रधान विनिता रावत ने की। साथ ही मुकेश चंद के सहयोग से उन्होंने दीपक बनाने का काम सीखा। इन दीपकों की मांग दीपावली के मद्देनजर अयोध्या, दिल्ली, राजस्थान, देहरादून में है।
इको फ्रेंडली हैं ये दीपक
ये दिए इको फ्रेंडली हैं। जो बदरी गाय के गोबर से तैयार किए जा रहे हैं। दीपक जलाने के बाद इसकी मिट्टी कंपोस्ट खाद व शिव तिलक के रूप में उपयोगी है। काम का रिस्पोंस मिलने पर अब इस काम में गांव के तीन चार परिवार जुट गए हैं। इनमें संतोष, माया देवी, रोहित रावत, वीर सिंह रावत, सिमरन, अराधना, मनीष आदि शामिल हैं।
पौड़ी गढ़वाल से अतुल रावत की रिपोर्ट।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।