ये है दुनियां का सबसे खतरनाक रास्ता, भारत और तिब्बत के बीच व्यापार का गवाह, अब बदलने जा रही तस्वीर, जानिए खासियत

उत्तराखंड में नेलांग घाटी स्थित गर्तांगली मार्ग भारत और तिब्बत के बीच व्यापार का गवाह है। करीब 11 हजार फीट की ऊंचाई पर इस मार्ग पर लकड़ी के तख्तों से बने पुलनुमा रास्ते की जर्जर हालत को संवारने का काम फिर से शुरू हो गया है। ऐसे में ये रोमांचकारी स्थल पर्यटकों के लिए भी विशेष आकर्षण होगा। साथ ही इसका पर्यटक भी दीदार कर सकेंगे।
दुनिया का सबसे खतराक रास्ता
उत्तरकाशी जिले में गंगोत्री से लगभग आठ किलोमीटर पहले भैरवघाटी से यहां के लिए रास्ता जाता है। नेलांग घाटी में हिमालय की खड़ी पहाड़ी को काटकर दुनिया का सबसे खतरनाक रास्ता तैयार किया था। पांच सौ मीटर लंबा लकड़ी से तैयार यह सीढ़ीनुमा मार्ग (गर्तांगली) भारत-तिब्बत व्यापार का साक्षी रहा है।
भारत और तिब्बत व्यापार का मुख्य रास्ता
पत्थर की चट्टानों को काटकर लकड़ी के तख्तों से बनाया गया ये रास्ता भारत को तिब्बत को जोड़ता था। ये रास्ता बेहद की संकरा है। भारत चीन युद्ध सन 1962 से पूर्व भारत-तिब्बत के व्यापारी इसी रास्ते से याक, घोड़ा-खच्चर व भेड़-बकरियों पर सामान लादकर आवागमन करते थे। व्यापारी इसी रास्ते से ऊन, चमड़े से बने वस्त्र व नमक लेकर तिब्बत से बाड़ाहाट (उत्तरकाशी का पुराना नाम) पहुंचते थे।
पेशावर से आए पठानों ने किया था निर्माण
भारत-चीन युद्ध के बाद दस वर्षों तक सेना ने भी इस मार्ग का उपयोग किया। युद्ध के बाद इसे बंद कर दिया गया। इस मार्ग पर करीब 300 मीटर लंबा पुल गहरी खाई पर बनाया गया है। इसका निर्माण 150 साल पहले पेशावर से आए पठानों ने किया था। नीचे नदी बहती है। 11 हजार फीट ऊंचाई पर ये पुल रोमांचित करता है। भारत चीन युद्ध के दौरान भारतीय सेना को बार्डर तक पहुंचने में भी इसी रास्ते से मदद से मदद मिलती रही। 1975 में सेना ने यहां आवाजाही बंद कर दी। तब से यहां सन्नाटा पसरा है। पुल के तख्तों को भी दीमक चाट गई।
अब पुल के सुधारीकरण का कार्य आरंभ
मार्ग का रखरखाव न होने के कारण वर्तमान में इसकी सीढ़ियां और उनके किनारे लगी लकड़ियों की सुरक्षा बाड़ भी खराब हो चुकी है। अब लोक निर्माण विभाग की ओर से 64 लाख लागत से 126 मीटर गर्तांगली पुल का निर्माण किया जा रहा है। इसमें लगे लकड़ी के फट्टों को बदला जा रहा है। इससे यहां पर्यटकों को आकर्षित करने में मदद मिलेगी। साथ ही यहां की यात्रा साहसिक पर्यटन की दृष्टि से बेहद रोमांचकारी होगी।
वर्ष 2017 से स्वीकृत योजना अब चढ़ रही परवान
इससे पहले इस स्थान के सुधार के लिए वर्ष 2017 में अप्रैल में प्रदेश के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज के निर्देश पर जिलाधिकारी, पर्यटन अधिकारी व गंगोत्री नेशनल पार्क के अधिकारियों ने भैरवघाटी के निकट लंका से करीब ढाई किलोमीटर पैदल चलकर गर्तांगली का निरीक्षण किया था। तब जुलाई में गर्तांगली तक पहुंचने वाले मार्ग की मरम्मत के लिए शासन 19 लाख रुपये भी स्वीकृत कर दिए थे। समय से कार्य शुरू नहीं होने पर इसकी लागत बढ़ते हुए 64 लाख रुपये पहुंच गई।
यहां पहुंचने की लोगों को नहीं है अनुमति
गंगोत्री नेशनल पार्क क्षेत्र में आने के कारण अभी वाइल्ड लाइफ बोर्ड ने विधिवत रूप से गर्तांगली जाने अनुमति तो नहीं दी है। वहीं, विश्व पर्यटन दिवस के मौके पर यहां विशेष परिस्थिति में पर्यटकों को एक दिन के लिए अनुमति पहले भी दी जा चुकी है। रास्ते का पुनर्निर्माण करने के बाद सरकार इस स्थान को पर्यटकों के लिए खोलने की दिशा में भी प्रयास कर सकती है।
उत्तरकाशी से सत्येंद्र सेमवाल की रिपोर्ट।
Bhanu Bangwal
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।