हार्क सिखा रहा लाखों की कमाई का साधन, आप भी सबक ले लो सरकार: भूपत सिंह बिष्ट
उत्तराखंड में ग्रामीण परिवारों की समृद्धि परवान नहीं चढ़ पा रही है। सो पलायन का सिलसिला राज्य बनने के दो दशक बाद भी थम नहीं रहा है। कोरोना आपदा काल में परदेश से लौटे हजारों परिवार कुछ माह ही अपने गांव गुलजार कर पाए और हार थककर फिर नगरों और महानगरों का शापित जीवन जीने के लिए लौट गए। यह अजीब विसंगति है कि प्रदेश के मुखिया जो पहले कृषि मंत्री रहे हैं और पहाड़ की आर्थिक, सामाजिक और विषम परिस्थितियों के जानकार हैं। वह भी कुर्सी बचाने की जद्दोजहद में आशातीत परिणाम नहीं दे पाये हैं। वे मुख्यमंत्री के साथ ही वित्त, स्वास्थ्य और गृह जैसे तमाम मंत्रालय भी देख रहे हैं।
पंत विवि भी हुआ बेनूर, अपेक्षा के अनुरूप नहीं किया काम
उत्तर प्रदेश के जमाने में राष्ट्रीय संस्थान का दर्जा हासिल गोविंद वल्लभ पंत कृषि विश्व विद्यालय पंतनगर राज्य बनने के बाद घटिया राजनीति के चलते काफी बेनूर हो गया है। इस विवि से बड़ी उम्मीद रही हैं कि नए राज्य उत्तराखंड में कृषि, बागवानी व पशुपालन में हमारा मुकाम हिमाचल प्रदेश के समकक्ष लाने में कामयाबी मिलेगी।
सरकारी अधिकारी अस्थायी राजधानी देहरादून में खूँटा गाड़कर बैठ गए तो विकास पहाड़ नहीं चढ़ सका। गढ़वाली कवि नरेंद्र सिंह नेगी का लोकगीत ” सभी धाणी देहरादून ” इस सोच पर सटीक मिसाल है।
निराशा के बीच हार्क ने जगाई आस
हिमालयन एक्शन रिसर्च सेंटर ( हार्क) तमाम निराशाओं के बीच उत्तराखंड के पहाड़ी परिवेश में आर्थिक सम्पन्नता जुटाने के लिए पिछले तीन दशक से सक्रिय है। खेती – किसानी के विश्व स्तरीय नए और उन्नत तौर तरीकों की जानकारी को पहाड़ी जनपदों में केंद्र खोलकर तेजी से फैलाया जा रहा है।
पहाड़ की समृद्धि के लिए जन विकास, जागरूकता और जानकारी का कौशल विकास ही मूलमंत्र हो सकता है। कृषि व बागवानी के विशेषज्ञ हार्क में बाजार की मांग और सप्लाई के अनुरुप कम खर्च पर अधिक मुनाफे की योजना दूर दराज पहाड़ों तक पहुँचा रहे हैं।
सेब की बागवानी में विकसित की नई प्रजाति
हार्क का नौगांव, उत्तरकाशी केंद्र आजकल एक हजार परिवारों को समृद्ध बनाने के लिए आसपास के गांवों में निरंतर प्रशिक्षण और प्रदर्शनी का आयोजन कर रहा है। इन गांवों में सेब की उपज को प्रमुख व्यवसाय में बदलने में सफलता भी मिली है। उल्लेखनीय है कि सेब की पुरानी किस्म में लागत ज्यादा और उपज कम हो रही थी।
हार्क नौगांव ने सफल टिश्यू कल्चर से सेब की नई प्रजातियां विकसित कर के किसानों को उपलब्ध कराया है। आज सुपर चीफ, स्कार्लेट स्पर, औरेगन स्पर व गेलगाला सेब की तमाम प्रजातियां अलग अलग ऊँचाई पर सरलता से उगाई जा रही हैं।
तीन साल में उत्पादन संभव
सेब की सफल खेती के लिए पौध को उच्च तकनीक से सुसज्जित पोली हाउस में एक साल तक विकसित किया जाता है। पैंसिल आकार की मोटाई लेने के बाद ऐसी पौध पर वांछित सेब प्रजाति की कलम रौपी जाती हैं और नई तकनीक से विकसित यह प्रजाति मात्र तीन साल में सेब का उत्पादन करने लगी हैं। नौगांव व पुरोला विकासखँड में इस तकनीक से पुराने सेब के बगीचों का तेजी से जीर्णोद्धार हुआ है।
हिमाचल, जम्मू कश्मीर, लद्दाख, सिक्किम और अरूणाचल जैसे हिमालयी राज्यों की बम्पर कीवी फल पैदावर को हार्क उत्तराखंड में भी सफल बनाना चाहता है। सो परिसर में कीवी उगाने का प्रयोग चल रहा है।
खेती किसानी से पहले मिट्टी का अध्ययन
खेती – किसानी की सफलता के लिए सबसे पहले खेत की मिट्टी का परीक्षण जरूरी है। मिट्टी में पोटेशियम, फासफोरस, नाइट्रोजन आदि तत्वों की कमी होने से कृषि उपज में दाने या फल प्राप्त न होने की शिकायत किसान करते हैं।
मिट्टी की पीएच वैल्यू निकालकर किसान को जानकारी दी जाती है कि कौन सी फसल और किस खाद का प्रयोग करना है। पीएच वैल्यू 6 से कम होने पर एसिड, 6- 8.5 तक सामान्य और 8.5 से अधिक पीएच होने पर मिट्टी या मृदा की प्रकृति एल्कलाइन या क्षारीय होती है।
कंपोस्ट खाद का विकल्प बेहतर
ऐसी भी जानकारी है कि अधिक मात्रा में यूरिया का इस्तेमाल करने से मिट्टी एसिडिक या अम्लीय होती जा रही है और मिट्टी की कठोरता बढ़ती जाती है। यूरिया उपयोग के कुछ सालों बाद निरंतर उपज कम होना और मिट्टी के ठोस होने की शिकायत भी किसान करते रहे हैं। ऐसे में हार्क ने परम कल्चर कम्पोस्ट खाद का विकल्प किसानों को सुझाया है।
ऐसे तैयार की जा रही कंपोस्ट खाद
पहाड़ों में गाय और गोबर की निरंतर कमी के कारण अब पारंपरिक गोबर की खाद मिलना मुश्किल हुआ है। परमकल्चर कम्पोस्ट के निर्माण में हरी घास, सूखी घास और गोबर की अनेक परतें एक कंटेनर में रखकर मिलाया जाता है और आसानी से गोबर से अधिक प्रभावी खाद का उत्पादन संभव हो गया है। इस खाद में गोबर खाद से ज्यादा कृषि उपयोगी जीवाणु पाये गए हैं और इस का व्यवसायिक उत्पादन भी किया जा रहा है।
फूल भी बने आय का जरिया
नगरों और महानगरों में फूलों की मांग निरंतर बढ़ती जा रही है। दु:ख – सुख और वार – त्यौहार की साज सज्जा में प्राकृतिक फूलों का विकल्प नहीं है। हार्क के विशेषज्ञ फूलों की मांग और मूल्य की नवीनतम जानकारी किसानों को उपलब्ध कराते हैं। फूल बाजार में हिस्सेदारी के लिए हार्क ने तकनीक, प्रजाति, पैदावार और विपणन में सहयोग किया है। लिलियम और गुलदाऊदी फूलों के व्यापार में उत्तराखंड के किसान नाम और दाम कमाने लगे हैं।
रेन वाटर हार्वेस्टिंग
हार्क ने वर्षा जल संरक्षण (रेन वाटर हार्वेस्टिंग) के लिए सफल जीओ टैंक बनाया है। 12 हजार लीटर क्षमता वाले टैंक की एकमुश्त लागत चालीस हजार रुपये बैठती है और इस का उपयोग सालों तक संभव है। जीयो टैंक में सीमेंट के उपयोग की जगह जीयो थर्मल सीट का उपयोग किया जाता है। बारिश के पानी का संचय जीयो टैंक में किया जाता है और जीयो थर्मल सीट तापमान का नियमन कर पानी का वाष्पन रोकता है और लम्बे समय तक जल संरक्षण संभव है।
बारिश के पानी का संग्रह और संरक्षण जीयो टैंक को सौर उर्जा की तर्ज पर उत्तराखंड के सुदूर गांवों तक फैलाया जाना जरूरी है। इस के अलावा हार्क केंद्र में आलू, मटर, टमाटर की उन्नत प्रजातियां, मौसम विज्ञान के आंकड़े और सोलर उर्जा से चालित अल्ट्रावायलेट कीटनाशक संयत्र, उच्च तकनीक पोली हाउस का संचालन भी सीखाया जाता है।
लेखक का परिचय
भूपत सिंह बिष्ट,
स्वतंत्र पत्रकार, देहरादून, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।