उत्तराखंड के डीजीपी की पहल, बैंक अधिकारियों की सजग भूमिका, तभी रुकेगा साइबर क्राइमः भूपत सिंह
साइबर क्राइम में पैसे की निकासी के लिए बैंक एकाउंट का ही प्रयोग किया जाता है। ऐसे में बैंक यदि ग्राहकों की लेन देन पर अपनी जिम्मेदारी मजबूती से निभाये तो पुलिस के लिए इन साइबर अपराधियों को पकड़ना आसान हो जाएगा।

विश्व भर में कोरोना वायरस की तरह पनप रहे साइबर ठगी अपराध को थामने के लिए उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार ने अब खाका तैयार किया है। बैंकों में दनादन बढ़ते साइबर अपराधों से सामान्य नागरिकों के खून पसीने की कमाई की लूट को रोकने और अपराधियों की धर पकड़ के लिए अब बैंक ही सहायक बनेंगे।
बैंक भी खाता खोलने में कर रहे लापरवाही
बैंक ठगी के अधिकांश मामलों में साइबर अपराधी आमने – सामने आकर अपराध नहीं करते हैं। एक बैंक खाते की राशि उड़ाकर दूसरे खाते में डाल देते हैं और फिर आसानी से पैसा निकालकर गायब हो जाते हैं। यानि इस अपराध में अपराधी बैंक प्लेटफार्म का इस्तेमाल कर रहे हैं। दूसरी ओर बैंक व्यापार बढ़ाने के लिए खाता खोलने में लापरवाही बरत रहे हैं। इसका खामियाजा आम ग्राहकों को भुगतना पड़ता है। बैंक इस नुक्सान से अपना पल्ला झाड़कर ग्राहकों की लापरवाही को ढाल बना रहे हैं, लेकिन पुलिस को बाद में इन अपराधों से निपटना होता है।
लोन लेकर भी सामने आती हैं फरार होने की घटना
रिजर्व बैंक आफ इंडिया ने बैंकों को बिना अनिवार्य प्रपत्रों और जानकारी के खाता खोलने में रोक लगा रखी है। इस अधिनियम को केवाईसी ( नो योर कस्टमर यानि अपने ग्राहक को जानिए) एक कानूनी बाघ्यता है। साइबर क्राइम में ही नहीं, यदि बैंक अपने ग्राहक को जानिए का अनुपालन नहीं करते हैं तो आर्थिक अपराध के विशेषज्ञ ठग बैंक से लोन लेकर भी गायब हो रहे हैं। ऐसी घटनायें कार लोन, क्रेडिट कार्ड या बेनामी खाता खोलकर राशि हड़पने में किया जाता है।
ये हैं साइबर अपराध के तरीके
बैंकों में साइबर क्राइम के मामलों में देखा जाता है कि अपराधी भोले भाले नागरिकों को मोबाइल काल, व्टास ऐप मैसेज या ई मेल के जरिये संपर्क साधते हैं और उन्हें तरह तरह के प्रलोभन देते हैं। मसलन आप ने विदेश में करोड़ों की लाटरी जीत ली है, आप को विदेश से महंगा गिफट कोरियर में भेजा गया है। उसको छुड़ाने के लिए आप को सरकारी टेक्स की भरपाई करनी है। गिरोह के लोग अपने शिकार को अभिभूत करके दूसरे खाते में पैसा जमा कराने के लिए तैयार कर लेते हैं।
कई बार बैंक अधिकारी बनकर आप के खाते की डिटेल मांगी जाती है। जैसे डैबिट कार्ड की जानकारी या ओटीपी ( वन टाईम पास वर्ड) बातचीत में उलझाकर जान लिया जाता है और फलस्वरूप ग्राहकों को लाखों रूपये की हानि उठानी पड़ती है। इस तरह की साइबर ठगी पूरे विश्व भर में की जा रही है।
कई मामलों में आप का परिचित बनकर फोन आते हैं कि मेरा एटीएम कार्ड ब्लाक हो गया है और मेरी कुछ अरजेंट राशि जमा हो रही है – कृपया अपने खाते में जमा करा लें और मैं यह राशि आप से बाद में ले लूंगा। और पैसा जमा कराने का ओटीपी, अक्सर बाद में आप के खाते से निकासी का ओटीपी निकलता है।
कई बार आप किसी अनजान पैंमेंट गेट वे, आन लाइन भुगतान के लिए असुरक्षित ऐप का प्रयोग कर लेते हैं और यह ऐप आप की एक बार की जानकारी का उपयोग आप के खाते से ठगी करने में गिरोह बनाकर कर रहे हैं।
निजी जानकारी शेयर करने से ही साइबर ठगों का काम होता है आसान
चाहे आप के बीमा राशि के क्लेम का भुगतान दिलाने के नाम पर कोई राशि मांगी जा रही हो – अपराधी कभी आप के सामने नहीं आ रहे हैं। हर बार आप के मोबाइल पर अनजान काल या आनलाइन खरीद का भुगतान करने के लिए दी गई डैबिट या क्रेडिट कार्ड की जानकारी भविष्य में साइबर ठगी के लिए प्रोत्साहन बन जाती हैं, क्योंकि यह जानकारी हमेशा के लिए उन के पास रहती है।
बैंक मजबूती से निभाएं जिम्मेदारी तो आसानी के पकड़ में आएंगे अपराधी
साइबर क्राइम में पैसे की निकासी के लिए बैंक एकाउंट का ही प्रयोग किया जाता है। ऐसे में बैंक यदि ग्राहकों की लेन देन पर अपनी जिम्मेदारी मजबूती से निभाये तो पुलिस के लिए इन साइबर अपराधियों को पकड़ना आसान हो जाएगा।
प्रशिक्षण की जरूरत
एटीएम केंद्रों पर परिष्कृत कैमरों का उपयोग, केवाईसी प्रावधानों की समय पर जांच, खाता खोलने और बंद करने के दौरान बैंक अधिकारी की सजग भूमिका और नए ग्राहकों की जानकारी और प्रशिक्षण से इन अपराधों को रोका जा सकता है।
डीजीपी अशोक कुमार ने बैंक अधिकारियों को आगाह कर दिया है कि बैंक ग्राहकों के पैसे की सुरक्षा में लापरवाही बरदाश्त नहीं की जा सकती है। इस लापरवाही के लिए बैंक अधिकारियों को जेल भी जाना पड़ सकता है यदि उनकी लापरवाही से ग्राहकों को ठगी का शिकार होना पड़े या अपराधी का डाटा बैंक रिकार्ड पर फर्जी पाया गया।
डीजीपी ने किए ये प्रयास
उत्तराखंड के नवनियुक्त डायरेक्टर जनरल आफ पुलिस अशोक कुमार ने अपने अनुभव और स्किल को अब यथेष्ठ आकार देना शुरू किया है, जो इस प्रकार हैं –
साइबर क्राइम प्रशिक्षण, हर थाने में महिला सेल, पुलिस कर्मियों को साप्ताहिक अवकाश, जनता के बीच मित्र पुलिस का रिश्ता, अपराध पर लगाम, वर्दी के लिए सम्मान और डिलवरी को प्राथमिकताओं में रखकर अशोक कुमार ने अपनी तीन दशक से अधिक की प्रभावी देश – विदेश सेवा को प्रदेश हित में लागू करना आरंभ किया है। अपनी पुस्तक ‘खाकी में मानव’ ( ह्यूमन इन खाकी ) में समाज से सरोकार जताने वाले अशोक कुमार चाहते हैं कि पुलिस को आम नागरिक को भी वही सम्मान देना होगा, जो रसूख वाले या अमीर लोगों को प्राप्त हैं।

लेखक का परिचय
भूपत सिंह बिष्ट
स्वतंत्र पत्रकार,
देहरादून, उत्तराखंड।
(लेखक बैंक से सेवानिवृत्त कर्मचारी हैं।)





