अब तो शर्म कर लो झूठ फैलाने वालों, दिल्ली हाईकोर्ट ने तबलीगी जमात के 70 भारतीयों पर दर्ज 16 मामलों को किया रद्द

यदि आपको कोरोनाकाल के शुरुआती दौर की याद नहीं है तो हम दिला देते हैं। एक तरफ देश और दुनिया में कोरोना तेजी से फैल रहा था, वहीं धर्म के आधार पर हर बात को जोड़ने वालों ने ऐसा प्रपंच रचा जो अब दिल्ली हाईकोर्ट में टिक नहीं पाया। कोरोना फैलाने के आरोप में तबलीगी जमात के 70 सदस्यों के खिलाफ 16 केस को दिल्ली हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया। साथ ही सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया है। ये मामला वर्ष 2020 में कोराना महामारी की शुरुआत के दौरान का है। तबलीगी जमात के कार्यक्रम में शामिल हुए विदेशियों को शरण देने के आरोप में 70 भारतीयों पर 16 केस दर्ज किए गए थे। तब लोकसाक्ष्य ने कोरोना को लेकर कई खबरें दी थी, लेकिन ऐसी कोई खबर नहीं लिखी, जिसमें धर्म और जाति के नाम पर कोरोना फैलाया जा रहा हो। हां, राजनीतिक दलों में चाहे सत्ताधारी हो या फिर विपक्ष के लोग। ऐसे लोगों पर जरूर खबर लिखी, जो मास्क नहीं पहन रहे थे। ना ही सामाजिक दूरी का ख्याल रख रहे थे। भीड़ वाले कार्यक्रम आयोजित कर रहे थे। नियमों का पालन हमने घर से शुरू किया और ये भी सच है कि हमारे घर में कोई भी व्यक्ति कोरोना से संक्रमित नहीं हुआ था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
तबलीगी जमात पर कोरोना फैलाने के आरोपों को भारत के कई मीडिया समूहों ने भी हवा दी। ऐसा लगा कि पूरे देश में एक विशेष धर्म के लोग कोरोना फैला रहे हैं। वहीं, कोरोना से देश के साथ ही दुनियां के कई देशों में धड़ाधड़ मौते हो रही थीं। मीडिया में ऐसी खबरें हर दिन मिल जाती थी, जब वर्ष 2020 में तबलीगी जमात पर कोरोना फैलाने का आरोप लगता था। इस झूठ का पर्दाफाश दिल्ली हाईकोर्ट ने कर दिया। दिल्ली हाई कोर्ट ने मार्च 2020 में तबलीगी जमात के आयोजन में शामिल होने आए विदेशियों को कोविड-19 मानदंडों का कथित उल्लंघन करते हुए ठहराने के आरोपी 70 भारतीय नागरिकों के खिलाफ आरोप खारिज कर दिए हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ये केस कोविड-19 के प्रसार और लॉकडाउन के उल्लंघन से जुड़े थे, जो अब से पांच साल पहले यानी मार्च 2020 में दर्ज किए गए थे। कोरोना काल के दौरान तबलीगी जमात को लेकर काफी विवाद हुआ था, आरोप लगा था कि विदेशी नागरिकों को एक जगह इकट्ठा किया गया था। उस वजह से कोरोना के मामले तेजी से बढ़े थे। दिल्ली हाईकोर्ट ने जोर देकर कहा गया है कि मौजूदा तथ्यों को देखते हुए इन मामलों को और ज्यादा आगे नहीं बढ़ाया जा सकता। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ये था मामला
जानकारी के लिए बता दें कि 2020 में निज़ामुद्दीन में बने मरकज में आयोजित तबलीगी जमात कार्यक्रम में कई लोग शामिल हुए थे। वहां भी 70 भारतीयों ने करीब 190 विदेशी नागरिकों को अपने यहां ठहराया था। उस समय इस बात को लेकर जबरदस्त आक्रोश था कि सोशल डिस्टेंसिंग के दौर में इतने सारे लोग एक जगह इकट्ठे हुए थे। इसी वजह से दिल्ली पुलिस ने भी तब आईपीसी की धारा, महामारी रोग अधिनियम, आपदा प्रबंधन अधिनियम और विदेशी नागरिक अधिनियम की कई धाराओं के तहत केस दर्ज किया था। यहां तक दावा हुआ था कि लॉकडाउन के नियमों को नहीं माना गया। मुस्लिम मिशनरी समूह तब्लीगी जमात पर हेल्थ इमरजेंसी को बढ़ाने का आरोप लगाया गया था। बीजेपी और आरएसएस के कई नेताओं ने जमात पर कोविड स्थिति को और खराब करने का आरोप लगाया था और सरकार ने 950 से अधिक विदेशी नागरिकों को ब्लैकलिस्ट कर दिया था। इन पर दिल्ली में जमात के मरकज (केंद्र) में आयोजित समागम में भाग लेकर आपातकालीन नियमों का उल्लंघन करने का आरोप था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कोर्ट ने माना कि नहीं हैं ठोस प्रमाण
न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की एकल पीठ ने विस्तार से सभी तथ्यों और आरोपों की जांच करते हुए कहा कि इन व्यक्तियों के खिलाफ ऐसा कोई प्रमाण नहीं हैं, जिससे यह साबित हो कि उन्होंने लॉकडाउन का उल्लंघन किया या किसी भी प्रकार से कोरोना वायरस फैलाने की नीयत या जानकारी के साथ बाहर निकले थे। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में टिप्पणी की कि एफआईआर या चार्जशीट में कहीं यह नहीं कहा गया है कि याचिकाकर्ता कोविड-19 पॉजिटिव पाए गए थे। या उन्होंने लापरवाही से या गैरकानूनी तरीके से वायरस फैलाने के इरादे से बाहर निकलने की कोशिश की थी। इन चार्जशीट्स को जारी रखना न्याय प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा और यह न्याय के हित में नहीं है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
लॉकडाउन की घोषणा से पहले मरकज में थे लोग
कोर्ट ने पाया कि तबलीगी जमात के सदस्य उस समय मरकज में पहले से मौजूद थे, जब तक देश में पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा नहीं हुई थी। इस पर कोर्ट ने कहा कि यह जमावड़ा मार्च 2020 की शुरुआत में हुआ था, जो कोविड-19 महामारी की आधिकारिक घोषणा से पहले का समय था। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इन याचिकाकर्ताओं ने धारा 144 CrPC के तहत लागू किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं किया था। न ही वे किसी प्रदर्शन, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक या धार्मिक सभा, साप्ताहिक बाजार या समूह यात्रा में शामिल हुए थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
नहीं ठहराया जा सकता अपराधी
हाईकोर्ट ने कहा कि ये लोग लॉकडाउन के कारण मजबूरन मरकज में ही रह गए थे। उनके पास बाहर निकलने का कोई साधन नहीं था। बाहर निकलना खुद लॉकडाउन का उल्लंघन होता। ऐसा कोई आरोप नहीं है कि इन याचिकाकर्ताओं में से कोई कोविड पॉजिटिव था या उन्होंने निगरानी कर्मचारियों के साथ साथ कोई सहयोग नहीं किया हो। न्यायालय ने अंत में कहा कि सिर्फ इसलिए कि वे मरकज में रह रहे थे, उन्हें अपराधी नहीं ठहराया जा सकता। वे तो महामारी के कारण मजबूरी में वहां रह गए थे। उनके खिलाफ कोई भी आपराधिक कृत्य सिद्ध नहीं होता।
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Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।