फुटबाल के बड़े आयोजन का गवाह है दून का पैवेलियन ग्राउंड
देहरादून में पैवेलियन ग्राउंड के निर्माण से भले ही फुटबाल खेल, खिलाड़ी व दर्शकों के लिए एक सुविधा का रास्ता खुल गया, परन्तु फुटबाल खेल का आरम्भ इसके निर्माण से पूर्व भी इसी स्थान पर होता आ रहा था। 1924 में प्रान्तीय स्तर के फुटबाल मैच गुरु रामराय दरबा के तत्कालीन महन्त श्री लक्ष्मण दास जी के प्रयास व तत्वावधान में यहां आरम्भ हुए थे। 10 वर्षों तक निजी प्रयासों से महन्त लक्ष्मण दास जी प्रान्तीय और राष्ट्रीय स्तर के फुटबाल मैचों का आयोजन करते रहे, परन्तु 1934 में धन व संगठन के अभाव में उन्हें फुटबाल टूर्नामेंट बन्द कर देने पड़े।
फुटबाल प्रेमी श्री एन.के. गौर 1936 में जब अपनी विश्वविद्यालय शिक्षा पूरी कर देहरादून आये तो उन्हें यह जानकर निराशा हुई कि महन्त जी द्वारा संचालित फुटबाल टूर्नामेंट का आयोजन बंद कर दिया गया है। एन. के. गौर ने महन्त जी से परामर्श कर 1937 में समस्त फुटबाल प्रेमियों को एकत्र कर एक संगठन तैयार किया, जिसका नाम देहरादून डिस्ट्रिक्ट स्पोर्ट्स ऐसोसिएशन (डी.डी.एस.ए) रखा। इस में भगवान दास बैंक के लाला नेमिदास, सेठ प्रीतम सेन जैन, महाराज प्रसाद जैन, दून स्कूल के हेड मास्टर ए.ई. फूट, ए.पी. मिशन ब्वायज मायन हाई स्कूल के प्रधानाचार्य आर.एम. इविंग आदि प्रमुख थे। महन्त लक्ष्मण दास जी ने डी.डी.एस.ए. में भले ही अपनी भागीदारी सुनिश्चित नहीं की, परन्तु फुटबाल टूर्नामेंट को अनवरत चलाये जाने के लिये पांच सौ रूपया वार्षिक सहायता देने का वचन दिया।
डीडीएसए का गठन
1937 में फुटबाल व अन्य खेल प्रतियोगिताओं के विधिवत आयोजन हेतु जिस डी.डी.एस.ए. का गठन हुआ। उसने कालान्तर में पुष्पित-पल्लवित होकर अनेक राष्ट्रीय खेलों का आयोजन कर देहरादून का गौरव बढ़ाया। उस समय राष्ट्रीय स्तर के फुटबाल के आयोजन के लिये डॉ. सोम मेमोरियल टूर्नामेंट, महन्त लक्ष्मणदास मेमोरियल, लाला दर्शन लाल, नगरपालिका व नार्दन रेलवे आदि ख्याति प्राप्त संस्थायें थी। लाला दर्शन लाल साइकिल का व्यवसाय चलाते थे, वह एक मात्र आयोजक थे, जिन्होंने स्वयं अपने नाम से फुटबाल टूर्नामेंट कराये। कभी-कभी तो इन्हें गेट पर खड़े होकर टिकट फाड़ते हुए भी देखा जा सकता था।
देश की नामी टीमें भाग लेती थी टूर्नामेंट में
उस समय पैवेलियन ग्राउण्ड में दर्शकों के बैठने की क्षमता तीन हजार के लगभग थी, परन्तु जब कभी यहां कलकत्ता की मोहम्मडन स्पोटिंग क्लब या मोहन बागान जैसे ख्याति प्राप्त फुटबाल टीमें किसी टूनर्मिट के तहत आमन्त्रित की जाती थीं तो दर्शकों की संख्या आठ हजार तक पहुंच जाती थी। उस समय इन रोमांचक फुटबाल मैचों को देखने के लिए दर्शकों से मात्र दो रूपया प्रवेश शुल्क लिया जाता था। सातवें दशक में आयोजित इन फुटबाल मैचों के प्रति दून वासियों का असीम लगाव था। जो फुटबाल मैच प्रेमी दो रूपया प्रवेश शुल्क देने में असमर्थ रहते थे, वे पैवेलियन ग्राउंड के दोनों और खड़े वृक्षों पर चढ़ कर ही पूरे मैच का आनन्द लिया करते थे।
कुश्ती के भी हुए आयोजन
फुटबाल मैचों के अतिरिक्त यहां अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की फ्री स्टाइल कुश्तियों के भी आयोजन किए गए। जिसमें रूस्तम-ए-हिन्द दारासिंह व पाकिस्तान के नामी पहलवान गामा भी भाग लेने आये थे। दारा सिंह के साथ हांगकांग के माइटी मंगोल की कुश्ती भी भी। रात्रि में आयोजित इन कुश्तियों में पैवेलियन मैदान में पैर रखने की भी जगह नहीं बचती थी। टिकट दर अधिक होने के कारण दर्शक पैवेलियन मैदान के दक्षिण भाग में खड़े बड़ और पीपल के वृक्षों पर चढ़ कर कुश्ती का आनन्द लेते थे।
इनका रहा योगदान
फुटबाल मैचों को पैवेलियन ग्राउंड में आयोजित करने के लिये डी.डी.एस.ए. के संगठनात्मक स्वरूप का तो योगदान रहा ही है, परन्तु व्यक्ति विशेष के रूप में डॉ. एस.के. सोम, कर्नल ब्राउन के नरेन्द्र सिंह, वजीर चद कपूर, एन.के. गौर, मिस्टर मार्टिन, सेंट जोजेफ एकेडमी के ब्रदर डूले व ब्रदर डफी, जी.एन. श्रीवास्तव, आर.एम. शर्मा, एम एल. साहनी, जे.डी. बटलर व्हाइट, पी.बी. सक्सैना, मास्टर केशव चंद्र, डॉ. मदन मोहन, डॉ. राममूर्ति शर्मा, डॉ. एस.एन. गोयल, एस.के. पुरी, जी.सी. नागलिया, एन.आर. गुप्ता, सईदुद्दीन, गुरू चरण सिंह व दीनानाथ सलूजा का भी सराहनीय योगदान रहा है।
लेखक का परिचय
लेखक देवकी नंदन पांडे जाने माने इतिहासकार हैं। वह देहरादून में टैगोर कालोनी में रहते हैं। उनकी इतिहास से संबंधित जानकारी की करीब 17 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। मूल रूप से कुमाऊं के निवासी पांडे लंबे समय से देहरादून में रह रहे हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।