नगर निगम देहरादून के चुनाव हुए, बीजेपी जीती, बंद हुआ शहर में कूड़ा उठान बंद, पूर्व विधायक राजकुमार ने दी चेतावनी
हाल ही में समूचे उत्तराखंड में स्थानीय निकाय के चुनाव संपन्न हुए। चुनाव संपन्न हुए। देहरादून नगर निगम में बीजेपी जीती। इसके साथ ही देहरादून में शहरभर में कूड़ा उठान का काम ठप हो गया है। ऐसे में लोगों के लिए सबसे बड़ी समस्या ये है कि वे घरों का कूड़ा कहां डाले। कारण ये है कि देहरादून में कूड़ादान हटा दिए गए हैं। कांग्रेस नेता एवं राजपुर विधानसभा के पूर्व विधायक राजकुमार ने इस मुद्दे को लेकर आज नगर निगम के वरिष्ठ स्वास्थ्य नगर अधिकारी से मुलाकात की। साथ ही शहर में कूड़ा उठान की प्रक्रिया को सुचारु करने का अनुरोध किया। साथ ही उन्होंने समस्या का जल्द समाधान नहीं होने पर आंदोलन की चेतावनी भी दी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
नगर निगम चुनाव संपन्न होने के बाद ही तीन दिन तक शहर भर में कूड़ा उठान नहीं किया गया। बताया गया कि कूड़ा उठान के कार्य में लगी कंपनी के कर्मचारियों को वेतन नहीं मिलने पर वे हड़ताल पर चले गए। इसके बाद एक दो दिन स्थिति सामान्य हुई, लेकिन एक बार फिर से शहर भर में कूड़ा उठान बंद कर दिया गया। बताया जा रहा है कि कूड़ा उठान के लिए दूसरी कंपनी से अनुबंध किया गया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अब दिक्कत ये है कि लोग घर पर ही कूड़ा एकत्र तो कर रहे हैं, लेकिन कूड़े को कहां डालें, ये समझ नहीं आ रहा है। स्मार्ट सिटी के नाम पर शहर भर से कूड़ादान तो हटा दिए गए, लेकिन कूड़ा उठान ना होने की स्थिति में लोगों के लिए क्या वैकल्पिक व्यवस्था है, इस दिशा में किसी ने नहीं सोचा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कांग्रेस नेता एवं पूर्व विधायक राजकुमार ने आज वरिष्ठ नगर स्वास्थ्य अधिकारी से मुलाकात की और उनसे सवाल किया कि ये बताओ कि लोग घरों में एकत्र हो रहा कूड़ा कहां डालें। उन्होंने कहा कि नगर निगम को कूड़ा निस्तारण की वैकल्पिक व्यवस्था करनी चाहिए थी, लेकिन इसमें भी नगर निगम देहरादून सजग नजर नहीं आ रहा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि सर्दी जाने वाली है और गर्मी का आगमन होने वाला है। ऐसे में घरों में कचरे के रूप में जमा हो रही गंदगी से शहर में महामारी फैलने का अंदेशा है। उन्होंने कहा कि नगर निगम को इस मामले में वैकल्पिक व्यवस्था करनी चाहिए। यदि जल्द समस्या का समाधान नहीं किया तो कांग्रेस कार्यकर्ता सड़कों पर उतरकर आंदोलन के लिए मजबूर होंगे।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।