दो महीने के लिए धरती को मिला दूसरा चंद्रमा, पृथ्वी बनाती है कैदी, एक बार मचाई थी तबाही, पढ़िए रोचक जानकारी
पृथ्वी के एक चंद्रमा के बारे में सभी जानते हैं। अब खबर ये है कि पृथ्वी को दूसरा चंद्रमा मिनी मून के रूप में मिलने वाला है। इसे मिनी चंद्रमा इसके आकार के कारण कहा जा रहा है। पृथ्वी को ये नया चांद आज 29 सितंबर से मिल गया है। इसके बाद ये अपना नया रास्ता तलाश लेगा। ऐसे में ये दो माह तक पृथ्वी की परिक्रमा करेगा। मिनी मून मिलने की ये पहली घटना नहीं है। एक बार तो ऐसे ही चंद्रमा से हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम की तुलना में 20 से 30 गुना अधिक ऊर्जा निकली। इससे सूरज से भी अधिक चमक पैदा हुई और मलबे ने 7,000 से अधिक इमारतों को नुकसान पहुंचाया। साथ ही 1,000 से अधिक लोग घायल हुए थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पृथ्वी की तरफ खींचा चला आ रहा है मिनी मून
इस नए चंद्रमा को कुछ लोग मिनी मून कह रहे हैं। हालांकि खगोल वैज्ञानिकों ने इसका नाम 2024 PT5 रखा है। दरअसल ये अब तक पृथ्वी की कक्षा में नहीं था, लेकिन पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण ने इसे अपनी ओर खींचने में तकरीबन सफलता हासिल कर ली है। इस समय ये पृथ्वी की ओर खींचा चला आ रहा है। 29 सितंबर से इसने दुनिया की परिक्रमा करनी शुरू करेगा और फिर करीब दो महीने तक पृथ्वी के साथ रहेगा। 25 नवंबर को फिर ये पृथ्वी से दूर चला जाएगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
धरती से नजर आएंगे दो चांद
ऐसे में दो माह तक धरती से अंतरिक्ष में दो चांद नजर आएंगे। हालांकि इस मिनी-मून को नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता है। इसे देखने के लिए हाई पावर वाले टेलीस्कोप की जरूरत होगी। यह मिनी-मून यानी 2024 PT5 सिर्फ 10 मीटर (33 फीट) व्यास का है। इस एस्टेरॉयड, 2024 PT5 को इसी साल अगस्त में खोजा गया था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पृथ्वी की कक्षा में रहने की अवधि गति पर निर्धारित
सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक, मिनी-मून वे एस्टेरॉयड हैं, जिन्हें पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण की वजह से ग्रह के चारों ओर की कक्षा में आ जाते हैं और वे तब तक इनमें रहते हैं जब तक कि वे अलग होकर फिर से दूर नहीं चले जाते। इन मिनी-मून के कक्षा में रहने की अवधि इस बात पर निर्भर करती है कि वे किस गति से पृथ्वी के पास पहुंचते हैं। पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश करने वाले ज्यादातर मिनी-मून को देखना मुश्किल होता है। इसकी वजह उनका बहुत छोटे होना और अंतरिक्ष के अंधेरे की पृष्ठभूमि में दिखने के लिए पर्याप्त चमक नहीं होना है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
मिनी-मून के बारे में
मिनी-मून बेहद दुर्लभ होते हैं। ये एस्टेरॉयड आमतौर पर पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण की वजह से ग्रह की कक्षा में 10 से 20 वर्षों में एक बार ही आते हैं। हालांकि हाल के वर्षों में सामने आया है कि ये एक्सोस्फीयर में रह सकते हैं, जो पृथ्वी की सतह से लगभग 10,000 किमी (6,200 मील) ऊपर है। औसतन मिनी-मून कुछ महीनों से लेकर दो साल तक पृथ्वी की कक्षा में रहते हैं। इसके बाद ये पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण खिंचाव से अलग हो जाते हैं। फिर ग्रह से दूर एक ट्रेजेक्ट्री को फिर से शुरू करने के लिए अंतरिक्ष में वापस चले जाते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
2013 मिले चंद्रमा से मची थी तबाही
क्षुद्रग्रह को अंतरिक्ष चट्टान भी कहा जाता है। इसी तरह पृथ्वी को ऐसा ही एक चंद्रमा वर्ष 2013 मिला था। ये करीब 55 से 65 फीट (17 से 20 मीटर) आकार का था। ये क्षुद्रग्रह हवा में ही फट गया। इससे जापान के हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम की तुलना में 20 से 30 गुना अधिक ऊर्जा निकली। सूरज से भी अधिक चमक पैदा हुई। इसके मलबे ने 7,000 से अधिक इमारतों को नुकसान पहुंचाया और 1,000 से अधिक लोग घायल हुए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इस बार ऐसा इससे नहीं होगा खतरा
अपने छोटे आकार के कारण, इस मिनी-मून के बारे में भविष्यवाणी की गई है कि यह कोई भी देखने योग्य प्रभाव नहीं पैदा करेगा या हमारे लिए कोई खतरा नहीं माना जाएगा। इसके अलावा, इसके आकार के कारण, यह ज्वार को प्रभावित नहीं करेगा। खगोलविदों ने पहली बार 7 अगस्त को दक्षिण अफ्रीका स्थित वेधशाला में इसे पृथ्वी की ओर आते देखा था। ये घोड़े की नाल सरीखा होगा। हालांकि इसके मुकम्मल साइज का पता तभी लगेगा जब ये पृथ्वी के परिवार में शामिल होकर घूमने लगेगा। इसके बाद ये फिर सूर्य की उस कक्षा में लौट जाएगा, जिसे हेलियोसेंट्रिक ऑर्बिट कहा जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ऐसे बने होते हैं मिनी मून
अंतरिक्ष में अन्य चट्टानी पिंडों की तरह मिनी-मून भी धातु पदार्थों, कार्बन, मिट्टी और सिलिकेट सामग्री के मिश्रण से बने हो सकते हैं। स्विस जर्नल फ्रंटियर्स इन एस्ट्रोनॉमी एंड स्पेस साइंसेज में प्रकाशित 2018 के मिनी-मून अध्ययन के अनुसार, अधिकांश मिनी-मून मंगल और बृहस्पति के बीच क्षुद्रग्रह बेल्ट से पृथ्वी की ओर आते हैं। पृथ्वी के स्थायी चंद्रमा के विपरीत, मिनी-मून की स्थिर कक्षाएं नहीं होती हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इतनी दूर से करेगा पृथ्वी की परिक्रमा
हालांकि इस एक छोटे चंद्रमा से टकराने का कोई खतरा नहीं है। ये 2.6 मिलियन मील (4.2 मिलियन किलोमीटर) दूर पृथ्वी की परिक्रमा करेगा। आमतौर पर दो तरह के क्षुद्रग्रह पृथ्वी की कक्षा में आते हैं। एक वो जो ग्रह के चारों ओर कई चक्कर लगाते हैं और कई सालों तक रहते हैं। दूसरे ऐसे होते हैं जो पृथ्वी के चारों ओर एक पूर्ण चक्कर भी पूरा नहीं करता। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
2006 में एक साल तक पृथ्वी की कक्षा में कैद रहा मिनी मून
मिनी-मून आमतौर पर दुर्लभ होते हैं लेकिन हालिया वर्षों पृथ्वी की कक्षा के भीतर ऐसे कई एस्टेरॉयड की पहचान की गई है। 2006 RH120 नाम का मिनी-मून एक वर्ष तक पृथ्वी की कक्षा में कैद रहा था। यह एकमात्र मिनी-मून था जिसकी तस्वीर खींची गई थी। इसकी तस्वीर लेने के लिए दक्षिणी अफ्रीकी बड़े टेलीस्कोप का उपयोग किया गया था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
तीसरी बार पृथ्वी की कक्षा में वापस आएगा ये दूसरा मिनी मून
रिपोर्ट के मुताबिक, 5 से 15 मीटर के बीच के व्यास वाले 2022 NX1 मिनी-मून को पहली बार 1981 में देखा गया था, इसे 2002 में फिर से देखा गया। ऐसी उम्मीद की जा रही है कि 2051 में फिर से घोड़े की नाल के आकार का कक्षीय पथ अपनाने के लिए यह पृथ्वी की कक्षा में वापस आएगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अस्थायी तौर पर पकड़ी गई मक्खी
पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण अक्सर छोटे क्षुद्रग्रहों को उसकी कक्षा में खींच लेता है। इससे वे अस्थायी रूप से “छोटे-चंद्रमा” बन जाते हैं। शोधकर्ताओं ने इस मिनी-मून को अस्थायी रूप से पकड़ी गई मक्खी (flyby) कहा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इसे नहीं देख सकते हैं नंगी आंखों से
हम इस मिनी-मून को देख नहीं सकते। क्योंकि इसकी चमक मैग्निट्यूड 22 है, जो इसे नंगी आंखों से या यहां तक कि बाजार में उपलब्ध शक्तिशाली टेलीस्कोप से देखना भी असंभव बनाती है। इसे केवल बड़े 30-इंच वाले पेशेवर टेलीस्कोप से ही देखा जा सकता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
दो बार और पृथ्वी की कक्षा में आएगा ये मिनी मून
मिनी-मून वे क्षुद्रग्रह भी हो सकते हैं, जो मंगल और बृहस्पति के बीच स्थित मुख्य क्षुद्रग्रह बेल्ट से आते हैं। मिनी मून यानि 2024 PT5 अभी तो कुछ समय बाद पृथ्वी की कक्षा से निकल जाएगा, लेकिन खगोलविदों को उम्मीद है कि यह नवंबर 2055 में कुछ दिनों के लिए और फिर 2084 के आरंभ में कुछ सप्ताहों के लिए पृथ्वी का छोटा चंद्रमा बन जाएगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पृथ्वी बना देती है कैदी
यूनिवर्सिडैड कॉम्प्लूटेंस डी मैड्रिड के रिसर्चर डॉ. कार्लोस डे ला फूएंते मार्कोस और डॉ. राउल डे ला फूएंते मार्कोस ने अपने पेपर में लिखा कि पृथ्वी नियमित रूप से निकट-पृथ्वी वस्तु (NEO) की आबादी से क्षुद्रग्रहों को पकड़ सकती है। उन्हें कक्षा में खींच सकती है, जिससे वे छोटे चंद्रमा बन जाते हैं। यानि ये पृथ्वी की कैद में आ जाते हैं।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।