एक देश एक चुनाव, व्यवहारिक और समझदारी नहींः गरिमा मेहरा दसौनी
उत्तराखंड कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी ने कहा कि केंद्र की भाजपा सरकार की ओर से एक देश एक चुनाव की पैरोकारी ना तो व्यवहारिक है और ना ही समझदारी वाला फैलला है। पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कि केंद्र और राज्य के मुद्दे अलग-अलग होते हैं। ऐसे में यदि केंद्र और राज्यों के चुनाव एक साथ होंगे, तो राज्यों के मुद्दे गौंण हो जाएंगे और केंद्र के मुद्दे चुनाव के दौरान हावी रहेंगे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि बार-बार चुनाव होने से कोई भी राजनीतिक दल या नेता चुनाव के बाद निष्क्रिय नहीं हो पाएगा। क्योंकि कभी विधानसभा चुनाव के लिए तो कभी लोकसभा और कभी निकाय चुनाव के लिए उसको बार बार जनता के दरवाजे पर वोट मांगने के लिए जाना ही होगा। इसलिए चुनाव रिजल्ट ओरिएंटेड और विकास ओरिएंटेड रहेंगे। निरंतर राजनीतिक दल और उसके नेता और कार्यकर्ता जनता के बीच में बने रहेंगे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कांग्रस की प्रदेश प्रवक्ता गरिमा दसौनी ने कहा कि यदि चुनाव एक साथ हो जाते हैं, तो 5 साल तक जनता की कोई सुध तक नहीं लेगा। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की रिपोर्ट में यह कहा गया है कि बार-बार चुनाव होने की वजह से देश की जीडीपी प्रभावित होती है, जो की बिल्कुल गलत तथ्य है। जीडीपी की वृद्धि बहुत सारे मानकों पर निर्भर करती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है की संविधान में संशोधन के लिए राज्यों की अनुमति की जरूरत नहीं होगी, जो कि देश की संघीय व्यवस्था के लिए बहुत खतरनाक है। साथ ही यह भी कहा गया है कि राज्यों के मतदाता सूची से राज्य चुनाव आयोग का कोई लेना-देना नहीं होगा। मतदाता सूची पर अंतिम निर्णय भारतीय निर्वाचन आयोग का होगा, जो कहीं ना कहीं एक घातक निर्णय है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
दसौनी ने कहा कि प्रधानमंत्री हर प्रदेश में जाकर चुनावी सभाओं के दौरान जिस तरह से डबल इंजन की सरकार बनाने की बात जनता से करते हैं, अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। जो भाजपा सरकार उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के चुनाव एक चरण में नहीं करवा पा रही है। उसके लिए उसे सात चरणों की जरूरत पड़ रही है, वह पूरे देश में एक चुनाव क्या करवाएगी? (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
दसौनी ने यह भी कहा कि हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा कार्यकाल के बीच में मात्र 23 दिन का अंतर था, परंतु हरियाणा और जम्मू कश्मीर के चुनाव तो घोषित हो गए, परंतु बाकी दो राज्यों में जो विधानसभा चुनाव होने हैं उनकी तिथि अभी तक घोषित नहीं हो पाई है। उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि देश में पहले एक साथ चुनाव नहीं हुआ करते थे, परंतु समय के साथ-साथ इसमें बहुत सारी जटिलताएं आई हैं। ऐसे में इस व्यवस्था को छोड़ दिया गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि एक साथ चुनाव करवाए जाने के लिए बड़ी संख्या में वीवीपैट और ईवीएम मशीन की जरूरत होगी। इनकी लागत प्रतिवर्ष बढ़ रही है और एक साथ चुनाव करवाने में देश के ऊपर एक बड़ा खर्च जबरन लादा जाएगा। इसीलिए उपरोक्त बिंदुओं के मध्यनजर एक देश एक चुनाव कहीं से कहीं तक व्यावहारिक और समझदारी का फैसला नहीं दिखाई पड़ता।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।