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November 10, 2024

भगवान श्रीकृष्ण जन्माष्टमी आज, जानिए पूजन और व्रत की विधि, महत्व, राशियों के मुताबिक करें लड्डूगोपाल का श्रृंगार

आज 26 अगस्त 2024 को जन्माष्टमी पर्व है। पूरे भारत में आज के दिन इस त्योहार को मनाया जा रहा है। अब विदेशों में भी भारतीय समुदाय के लोग इस त्योहार को मनाते हैं। इस त्योहार के लिए मंदिरों में कई दिन पहले से सजावट शुरू हो गई थी। जन्माष्टमी के पर्व को बहुत शुभ माना जाता है। यह त्योहार भगवान कृष्ण को समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन सच्चे भाव के साथ कान्हा जी की पूजा-अर्चना करने से सुख और शांति की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में शुभता का आगमन होता है। श्रीकृष्ण पूर्ण अवतार हैं। वे योगेश्वर हैं, रास के नायक हैं, मुरली के सम्राट हैं तो गीता के जनक भी हैं। इसीलिए उनकी भक्ति मन का उत्सव बन जाती है। भक्त जब उनके समक्ष समर्पण करता है तो ‘गोपी’ बन जाता है। जन्माष्टमी हमें श्रीकृष्ण की भक्ति और समर्पण की शक्ति प्राप्त करने का अवसर देती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी शुभ मुहूर्त
वैदिक पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 25 अगस्त, 2024 दिन रविवार को रात 3 बजकर 39 मिनट पर हो गई। वहीं, इसका समापन 26 अगस्त, 2024 दिन सोमवार को रात 2 बजकर 19 मिनट पर होगा। ऐसे में जन्माष्टमी 26 अगस्त को मनाई जा रही है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

जन्माष्टमी पूजा मुहूर्त, इस बार है दुर्लभ संयोग
श्रीकृष्ण की पूजा का शुभ मुहूर्त मध्यरात्रि 12 बजे से 12 बजकर 44 मिनट तक रहेगा। इस बार 26 अगस्त सोमवार को भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि दिन में 8 बजकर 20 मिनट तक रहेगी। उसके बाद अष्टमी तिथि प्रारंभ होगी, जो कि अगले दिन प्रातः 6 बजकर 34 मिनट तक है। प्रमाणित पंचांगों के अनुसार, 26 अगस्त सोमवार को रात्रि 9 बजकर 10 मिनट से रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ होगा। 26 अगस्त को चंद्रमा वृष राशि में विद्यमान है, जिसके कारण महापुण्यदायक जन्मोत्सव योग के छह तत्वों का समावेश इस बार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर होगा। साथ ही ग्रह नक्षत्रों की अद्भुत जुगलबंदी भी होगी। उच्च वृष राशि के चंद्रमा के साथ देवगुरु बृहस्पति, शनि अपनी स्वयं की कुंभ राशि में स्वराशि, सूर्य स्वयं की सिंह राशि में स्वराशि, कर्क राशि में बुध, कन्या राशि में शुक्र एवं छाया ग्रह केतु तथा मीन राशि में छाया ग्रह राहु विद्यमान हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
नोटः इस खबर में दी गई जानकारी, राशि, धार्मिक मान्यताओं और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों के मुताबिक है। किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है। बताई गई किसी भी बात का लोकसाक्ष्य व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है।

जन्माष्टमी पूजन का महत्व
कृष्ण जन्माष्टमी के दिन व्रत रखने से संपूर्ण इच्छाओं की पूर्ति होती है। इसके साथ ही इस दिन विधिपूर्वक यशोदा नदंन की पूजा करने से सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। वहीं जिन दंपतियों की संतान की चाह है, वे जन्माष्टमी की दिन लड्डू गोपाल की उपासना जरूर करें। साथ ही उन्हें माखन, दही, दूध, खीर, मिश्री और पंजीरी का भोग भी लगाएं। जन्माष्टमी का व्रत रखने से भक्तों के जीवन से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और धन-संपन्नता में भी बढ़ोतरी होती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

जन्माष्टमी में पूजा विधि
ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करें और भक्तिपूर्वक कठोर व्रत रखने का संकल्प लें। पूजा की शुरुआत से पहले घर और मंदिर को साफ करें। लड्डू गोपाल जी का पंचामृत व गंगाजल से अभिषेक करें। फिर उन्हें नए सुंदर वस्त्र, मुकुट, मोर पंख और बांसुरी आदि से सजाएं। पीले चंदन का तिलक लगाएं। माखम-मिश्री, पंजीरी, पंचामृत, ऋतु फल और मिठाई आदि चीजों का भोग लगाएं (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

कान्हा के वैदिक मंत्रों का जाप पूरे दिन मन ही मन करें। आरती से पूजा का समापन करें। अंत में शंखनाद करें। इसके बाद प्रसाद का वितरण करें। अगले दिन प्रसाद से अपने व्रत का पारण करें। पूजा में हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

श्रीकृष्ण पूजन मंत्र
ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नम:
हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे
पूजन की विधि-विधान
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन व्रती को भगवान के आगे संकल्प लेना चाहिए कि व्रतकर्ता श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्ति के लिए, समस्त रोग-शोक निवारण के लिए, संतान आदि कोई भी कामना, जो शेष हो, उसकी पूर्ति के लिए विधि-विधान से व्रत का पालन करेगा। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर मनोकामना पूर्ति एवं स्वास्थ्य सुख के लिए संकल्प लेकर व्रत धारण करना लाभदायक माना गया है। संध्या के समय अपनी-अपनी परंपरा अनुसार भगवान के लिए झूला बनाकर बालकृष्ण को उसमें झुलाया जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

आरती के बाद दही, माखन, पंजीरी और उसमें मिले सूखे मेवे, पंचामृत का भोग लगाकर उनका प्रसाद भक्तों में बांटा जाता है। पंचामृत द्वारा भगवान का स्नान एवं पंचामृत का पान करने से प्रमुख पांच ग्रहों की पीड़ा से मुक्ति मिलती है। दूध, दही, घी, शहद, शक्कर द्वारा निर्मित पंचामृत पूजन के पश्चात अमृततुल्य हो जाता है, जिसके सेवन से शरीर के अंदर मौजूद हानिकारक विषाणुओं का नाश होता है। शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

अष्टमी की अर्द्धरात्रि में पंचामृत द्वारा भगवान का स्नान, लौकिक एवं पारलौकिक प्रभावों में वृद्धि करता है। रात्रि 12 बजे, खीरे में भगवान का जन्म कराकर जन्मोत्सव मनाना चाहिए। जहां तक संभव हो, संयम और नियमपूर्वक ही व्रत करना चाहिए। जन्माष्टमी को व्रत धारण कर गोदान करने से करोड़ों एकादशियों के व्रत के समान पुण्य प्राप्त होता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

व्रत न कर पाएं तो करें ऐसा
किसी खास वजह से अगर जन्माष्टमी व्रत नहीं कर पाएं तो किसी भी ब्राह्मण या जरुरतमंद इंसान को भरपेट भोजन करवाएं। ऐसा न कर सकें तो जरुरतमंद को इतना पैसा दें कि वो 2 समय भरपेट भोजन कर सके। इतना भी न कर पाएं तो गायत्री मंत्र का 1000 बार जाप करें। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

लड्डूगोपाल के श्रृंगार से मिलता है पुण्य लाभ
पुण्य लाभ के लिए पूजा-अर्चना में आराध्य देवता के साथ ग्रहों की प्रसन्नता भी जरूरी है। राशि के स्वामी से संबंधित देवी या देवता जातक के लिए विशेष लाभदायक होते हैं और उनकी उपासना से मनचाहा फल प्राप्त होता है। यदि भक्त अपनी राशि के अनुसार वस्त्रों से भगवान का शृंगार और पूजन करें तो भगवान श्रीकृष्ण के साथ-साथ राशि के स्वामी भी प्रसन्न और ग्रह-नक्षत्र अनुकूल होकर अशुभ फल में कमी करते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

राशि के मुताबिक ऐसे करें श्रृंगार
मेष : इस राशि का स्वामी मंगल है। इसलिए मेष राशि वाले भगवान श्रीकृष्ण को लाल रंग के वस्त्र धारण कराएं और घर की झांकी में अधिक से अधिक लाल रंग का उपयोग करें।
वृष : इस राशि का स्वामी शुक्र है। इसलिए वृष राशि वाले श्रीकृष्ण को चटक सफेद रंग के वस्त्र धारण कराएं और घर की झांकी में अधिक से अधिक सफेद रंग का उपयोग करें।
मिथुन : इस राशि का स्वामी बुध है। इसलिए इस राशि के लोग भगवान श्रीकृष्ण को हरे रंग के वस्त्र धारण कराएं और घर की झांकी में अधिक से अधिक हरे रंग का उपयोग करें।
कर्क: इस राशि का स्वामी चंद्रमा है। इसलिए कर्क राशि वाले भगवान श्रीकृष्ण को श्वेत रंग के वस्त्र धारण कराएं और घर की झांकी में अधिक से अधिक श्वेत रंग का उपयोग करें।
सिंह: इस राशि का स्वामी सूर्य है। इसलिए सिंह राशि वाले भगवान श्रीकृष्ण को लाल, गुलाबी रंग के वस्त्र धारण कराएं और घर की झांकी में लाल एवं गुलाबी रंग का उपयोग करें।
कन्या: इस राशि का स्वामी बुध है। इसलिए कन्या राशि वाले भगवान श्रीकृष्ण को हरे रंग के वस्त्रों से सुशोभित करें और घर की झांकी में अधिक से अधिक हरे रंग का उपयोग करें।
तुला: इस राशि का स्वामी शुक्र है। इसलिए तुला राशि वाले श्रीकृष्ण को चटक सफेद रंग के वस्त्रों से सुशोभित करें और झांकी में अधिक से अधिक सफेद रंग का उपयोग करें।
वृश्चिक: इस राशि का स्वामी मंगल है। इसलिए वृश्चिक राशि के लोग श्रीकृष्ण को लाल रंग के वस्त्रों से सुशोभित करें और घर की झांकी में अधिक से अधिक लाल रंग का उपयोग करें।
धनु: इस राशि का स्वामी बृहस्पति है। इसलिए धनु राशि वाले भगवान श्रीकृष्ण को पीले रंग के वस्त्र धारण कराएं और घर की झांकी में अधिक से अधिक पीले रंग का प्रयोग करें।
मकर: इस राशि का स्वामी शनि है। इसलिए मकर राशि वाले भगवान श्रीकृष्ण को श्याम वर्ण के वस्त्र धारण कराएं और घर की झांकी में श्याम रंग का उपयोग करें।
कुंभ: इस राशि का स्वामी भी शनि है। इसलिए कुंभ राशि वाले श्रीकृष्ण को श्याम वर्ण के वस्त्रों से सुशोभित करें और घर की झांकी में श्याम रंग का उपयोग करें।
मीन: इस राशि का स्वामी बृहस्पति है। इसलिए मीन राशि वाले भगवान श्रीकृष्ण को पीले रंग के वस्त्रों से सुशोभित करें और झांकी में अधिक से अधिक पीले रंग का उपयोग करें। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

जन्माष्टमी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, द्वापर युग में मथुरा में कंस नाम का राजा अधिक अत्याचारी शासन किया करता था। इससे ब्रजवासी परेशान हो गए थे। राजा अपनी बहन को अधिक प्यार किया करता था। उसने बहन की शादी वासुदेव से कराई। जिस समय वो देवकी और वासुदेव को उनके राज्य लेकर जा रहे थे, तो उस दौरान आकाशवाणी हुई ‘हे कंस! तू अपनी बहन को ससुराल छोड़ने के लिए जा रहा है, उसके गर्भ से पैदा होने वाली आठवीं संतान तेरी मौत की वजह बनेगी। यह सुनकर कंस को क्रोध आया और वसुदेव को मारने बढ़ा। ऐसे में देवकी ने अपने पति को बचाने के लिए कंस से कहा कि जो भी संतान जन्म लेगी, मैं उसे आपको सौंप दूंगी। इसके बाद कंस ने दोनों को कारागार में डाल दिया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

कारागार में ही रह कर देवकी ने एक-एक करके सात बच्चों को जन्म दिया, परंतु कंस ने सभी संतान को मार दिया। योगमाया ने सातवीं संतान को संकर्षित कर माता रोहिणी के गर्भ में पहुंचा दिया था। इसके पश्चात माता देवकी ने आठवीं संतान को जन्म दिया। आठवीं संतान के रूप में भगवान विष्णु कृष्णावतार के रूप में अवतरित हुए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उसी दौरान रोहिणी की बहन मां यशोदा ने एक पुत्री को जन्म दिया। इस बीच देवकी के कारागार में प्रकाश हुआ और जगत के पालनहार भगवान विष्णु अवतरित हुए। श्रीहरि ने वासुदेव से कहा कि इस संतान को आप नंद जी के घर ले जाओ और और वहां से उनकी कन्या को यहां लाओ। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

वासुदेव ने प्रभु के आदेश का पालन किया। नंद जी के यहां से उनकी नवजात कन्या को लेकर वापस आ गए। जब देवकी के भाई कंस को आठवीं संतान होने की खबर मिली, तो वह तुरंत कारागार पहुंचा और देवकी से कन्या को छीनकर नीचे पटकना चाहा, परंतु वह कन्या उसके हाथ में से निकलकर आसमान की ओर चली गई। इस दौरान कन्या ने कहा कि ‘हे मूर्ख कंस! तूझे मारने वाला जन्म ले चुका है और वह वृंदावन पहुंच गया है। अब तुझे तेरे को पापों की सजा अवश्य मिलेगी। वह कन्या कोई और नहीं, स्वयं योग माया थीं। बाद में कृष्ण ने कंस का वध कर उसके पापों से लोगों को मुक्ति दिलाई।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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