शराब पी नहीं, चेकिंग में निकला नशे में है, पता चला ये है बीमारी, शरीर में खुद बन रहा अल्कोहल
अक्सर पुलिस शराब पीकर वाहन चलाने वालों का पता लगाने के लिए चेकिंग करती है। इसके तहत व्यक्ति को ब्रीथेलाइज़र मशीन में फूकना होता है, जो व्यक्ति के खून में एलकोहल के स्तर का पता लगाता है। अगर ब्रीथ ऐनालाइज़र में 100 एमएल खून में इसकी मात्रा 30 एमजी से ज्यादा पाई जाती है, तो व्यक्ति को गाड़ी चलाने के लिए सही नहीं माना जाता। फिर उसे शराब पीकर गाड़ी चलाने का आरोपी माना जाता है। अब यदि किसी व्यक्ति ने शराब नहीं पी और उसके शरीर में भी एल्कोहल की मात्रा निकल जाए तो इसे आप क्या कहेंगे। जी हां, ये बात भी सच है। कारण ये है कि ऐसी घटना बेल्जियम में हो चुकी है। पता चला कि ये एक बीमारी है। इसमें व्यक्ति में दुर्लभ ऑटो ब्रूअरी सिंड्रोम (एबीएस) का निदान किया है। इस विकार के कारण शरीर शुगर और स्टार्चयुक्त खाद्य पदार्थों को अल्कोहल में बदलने लगता है। इससे ऐसे लक्षण पैदा हो सकते हैं जैसे कि आप नशे में हों, भले ही आपने शराब न पी हो। आसान भाषा में आज हम आपको बताएंगे कि अल्कोहल का सेवन किये बिना आपके शरीर में अल्कोहल कैसे पहुंचता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ये है मामला
दरअसल बेल्जियन में एक शख्स को शराब पीकर गाड़ी चलाने के शक में गिरफ्तार किया गया था। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक मेडिकल जांच में पाया गया कि उस शख्स को ऑटो ब्रिवरी सिंड्रोम नाम की दुर्लभ बीमारी है। इस बीमारी से पीड़ित इंसान के शरीर में अपने आप अल्कोहल बनने लगता है। रॉयटर्स के मुताबिक आरोपी के वकील एंसे गेशक्वीयर ने बताया कि यह संयोग है कि उनका क्लाइंट शराब की फैक्ट्री में काम करता है, लेकिन कम से कम 3 मेडिकल एग्जामिनेशन में पता लगा कि उसे एबीएस नाम की बीमारी है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
जानिए इस बीमारी के बारे में
डॉक्टरों के मुताबिक ऑटो ब्रिवरी सिंड्रोम (एबीएस) को गट फर्मेंटेशन सिंड्रोम भी कहते हैं। ये बहुत दुर्लभ है। इस बीमारी से पीड़ित मरीज की जठराग्नियों में मौजूद एक खास फुंगी, कार्बोहाइड्रेट्स को माइक्रोबैक्टीरिया फर्मेंटेशन के जरिये अल्कोहल में बदल देती हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया के स्कूल ऑफ मेडिसिन के मुताबिक, एबीएस एक दुर्लभ बीमारी है। वहीं बीते 50 साल से ज्यादा वक्त से मेडिकल साइंस को इसकी जानकारी है, लेकिन अभी तक इसके बारे में बहुत सीमित जानकारी उपलब्ध है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ये मानी गई है बीमारी की वजह
डॉक्टरों के मुताबिक, जब छोटी आंत में कुछ फर्मेंटेशन वाले सूक्ष्मजीवों, विशेष रूप से सैक्रोमाइसेस सेरेविसिया जैसे यीस्ट का असंतुलन हो जाता है। इसके अलावा किसी कारण से ये बहुत ज्यादा बढ़ जाता है तो एबीएस सिंड्रोम की वजह बनते हैं। यह असंतुलन, कार्बोहाइड्रेट को फर्मेंट कर इथेनॉल में बदल देता है। इससे नशा जैसे प्रभाव पैदा होता है। डॉक्टरों के मुताबिक अमूमन एबीएस का पता वयस्क होने पर ही लगता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
किसी भी लिंग या उम्र का व्यक्ति आ सकता है चपेट में
बता दें कि ऑटो ब्रिवरी सिंड्रोम (एबीएस) को गट फर्मेंटेशन सिंड्रोम (जीएसएस) किसी भी लिंग या उम्र के व्यक्तियों को चपेट में ले सकता है। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक डायबिटीज, मोटापा, पहले से आंत की बीमारी से जूझ रहे इंसान और कमजोर इम्युनिटी वालों को इस बीमारी का ज्यादा खतरा है। ऐसे व्यक्ति, जिन्हें अनुवांशिक तौर पर एडीएच (अल्कोहल डिहाइड्रोजनेज) और एएलडीएच (एल्डिहाइड डिहाइड्रोजनेज) है, उन्हें इथेनॉल पचाने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। ये दो ऐसे फैक्टर हैं, जो ऑटो ब्रिवरी सिंड्रोम को बढ़ावा देने में मदद करते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सिंड्रोम के लक्षण
ऑटो ब्रिवरी सिंड्रोम का लक्षण बिल्कुल शराब के नशे जैसा ही है। खून में अल्कोहल का स्तर बढ़ जाता है। इसके अलावा बोलने में कठिनाई, भ्रम की स्थिति और जुबान लड़खड़ाने लगती है। वहीं त्वचा लाल हो जाती है। वहीं कुछ मरीजों में सूजन, पेट फूलना और दस्त जैसे गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल लक्षण भी दिखते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कराने होते हैं कई टेस्ट
अमेरिका की नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के मुताबिक अगर किसी व्यक्ति को अल्कोहल सेवन के बगैर नशे जैसा अनुभव होता है, यह ऑटो ब्रिवरी सिंड्रोम का लक्षण हो सकता है। डॉक्टर कुछ बेसलाइन टेस्ट करवा सकते हैं। जैसे- मेटाबॉलिक प्रोफाइल, ब्लड अल्कोहल लेवल आदि। इसके अलावा यीस्ट ग्रोथ का पता लगाने के लिए मल परीक्षण भी करवा सकते हैं।
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