डॉ. पुष्पा खंडूरी की कविता- कैसे तेरा आभार जताऊँ
प्रभु कैसे तेरा आभार जताऊँ।
बस संग तुम्हारो नीको लागे,
जगत ये तुम बिन फीको लागे।
तुमसे दूरी पर कैसे सह पाऊँ।
नित तेरी छवि पर बलि-बलि जाऊँ॥
तुम से अच्छा ना कोई दूजा लागे।
फिर किसी और को कैसे अपनाऊँ॥
सोच रही तुमको छंद में बाँधू।
पर अन्तर्मन को शब्दों में कैसे साधूं॥
रूप तुम्हारा मोहे अनुपम लागे।
ध्यान मात्र से ही सब दुःख भागे॥
बिना याचना सब कुछ पा जाऊँ।
महिमा तेरी का मैं पार ना पाऊँ॥
कैसे तेरा आभार जताऊँ॥ (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
सोचूं सब छोड़ तेरी शरण में आऊँ।
जाऊँ कहाँ ये भी समझ न पाऊँ॥
कैसे मैं तेरा आभार जताऊँ॥
रूप तेरे पर बलि – बलि जाऊँ।
पल -पल तेरी छवि निहारूँ,
‘तेरा ही है सब कुछ दाता,
छोड़ के ‘मैं’ को क्या तुम्हें चढ़ाऊँ॥
कैसे तेरा आभार जताऊँ॥
डॉ. पुष्पा खंडूरी
प्रोफेसर, डीएवी (पीजी ) कॉलेज
देहरादून, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।