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September 20, 2024

एसएफआई के 50 वर्ष पूरे, जानिए छात्र आंदोलनों की संघर्ष की यात्रा

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स्टूडेंट्स फैडरेशन आफ इंडिया (एसएफआइ) 27 दिसंबर 2020 को अपनी स्थापना के 50 वर्ष कर गई है। एसएफआई अपने स्थापना वर्ष को देशभर में अनेक कार्यक्रमों के माध्यम से मनाया।

स्टूडेंट्स फैडरेशन आफ इंडिया (एसएफआइ) 27 दिसंबर 2020 को अपनी स्थापना के 50 वर्ष कर गई है। एसएफआई अपने स्थापना वर्ष को देशभर में अनेक कार्यक्रमों के माध्यम से मनाया। इस अवसर पर संगठन शहीदों को याद करते हुए शहीदे आजम भगत सिंह आदि क्रान्तिकारियों के स्वप्नों को साकार करने का संकल्प लिया गया है। संगठन ने सरकार की शिक्षा के साम्प्रदायीकरण और बाजारीकरण की नीति का जोरदार विरोध किया। साथ ही सरकार की एनआरसी लागू करने की चाल और छात्र, नौजवान, महिलाओं, किसान, मजदूर वर्ग आदि के खिलाफ अपनाई जा रही नीतियों का विरोध किया।
आज संगठन देशभर में चल रहे ऐतिहासिक किसान आन्दोलन के साथ एकजुटता के साथ खड़ा है। एसएफआई जेएनयू, जामिया, एएमयू, हैदराबाद, कलकत्ता, चैन्नई तथा देश के अन्य प्रतिष्ठित शिक्षा केन्द्रों में शिक्षा की बेहतरी के लिए लगातार संघर्षों में लगा है। साथ ही पूरे देश में वैज्ञानिक, निशुल्क शिक्षा की प्रबल पक्षधर है। आज एसएफआई भारत के छात्र संगठनों में सबसे बड़ा तथा प्रतिष्ठित छात्र संगठन है और हमारे देश की साम्राज्यवाद विरोधी परम्परा का सबसे बड़ा वाहक है।


1936 में हुई संगठित छात्र आंदोलन की शुरूआत
उल्लेखनीय है कि हमारे देश में संगठित छात्र आन्दोलन की शुरुआत 12अगस्त 1936 को लखनऊ में हुई। इस सम्मेलन का उद्घाटन पंडित, जवाहरलाल नेहरू ने किया तथा मौहम्मद अली जिन्ना ने अध्यक्षता की। संगठित छात्र आन्दोलन के पूर्व दशकों में छात्रों ने अंग्रेजों द्वारा बंगाल विभाजन से उपजे बंग भंग आन्दोलन, स्वदेशी आन्दोलन में बढ चढकर भाग लिया। गांधी जी के आह्वान पर 1919 -1922 के दौरान छात्र स्कूलों व कालेजों का बहिष्कार किया। वे बड़ी संख्या में आजादी के आन्दोलन में कूद पडे़।
सन् 1927-1928 में साइमन कमीशन के देशव्यापी बहिष्कार के कारण छात्र आन्दोलन में पुनः उभार उल्लेखनीय है। जिसमें छात्रों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। इसके साथ साथ इस पूरे काल में अखिल भारतीय संगठन के निर्माण की कोशिश जारी रही। ताकि छात्र आन्दोलन को आजादी के मुख्यधारा से जोड़ा जा सके। इसी कड़ी में कांग्रेस के 1927के अधिवेशन के समय भी छात्र अलग से मिले। किन्तु 1930 के मध्य तक कोई सफलता नहीं मिली।
अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थिति, विश्व पूंजीवादी संकट और मंदी, समाजवादी सोवियत संघ का विकास व स्थायित्व और दो सिविल नाफरमानी आन्दोलन की विफलता का गहरा असर छात्र आन्दोलन पर पड़ा। समाजवाद एक जबरदस्त आकर्षण का केन्द्र था। भगत सिंह व उसके साथियों को फांसी, मेरठ षडयंत्र केस तथा अन्य घटनाओं ने छात्रों के बीच भारी आक्रोश व बहस छेड़ दी थी। इन घटनाओं से 1935 में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के गठन को बल मिला। विकल्प की तलाश अन्तः 1936 में एआईएसएफ गठन के साथ पूरी हुई।


इसके साथ ही छात्र आन्दोलन उस काल के प्रमुख सवालों का उत्तर देने में कामयाब रहा। यह भी तय होने लगा का क्या छात्र आन्दोलन का उद्देश्य केवल आजादी है या उसके आगे तक है। हालांकि आजादी मुख्य उद्देश्य था, किन्तु अब तक छात्र आन्दोलन में प्रेरणा व ऊर्जा समाज के आमूल चूल परिवर्तन के लिए लगाने की समझ विकसित हो चुकी थी कि , ऐसे समाज की स्थापना जहाँ अशिक्षा, बेरोजगारी व निरक्षरता न हो, जिसमें पूंजीवादी व्यवस्था का नामोनिशान न हो।
अपनी स्थापना के समय ही छात्र आन्दोलन ने पुरजोर तरीके से ऐलान किया कि वह समाज के आमूल चूल परिवर्तन के लिए काम करेगा। लेकिन पुर्नसंरचना कैसे की जाए इस सम्बन्ध में बहुत सारे मतभेद अभी भी बाकी थे । यह स्वाभाविक भी था। एआईएसएफ बनने के दो साल बाद ही विभाजन की स्थिति बन गयीं । मुद्दा क्या था ? एक हिस्सा समाजवादी सोवियत संघ के संविधान को प्रचारित करना चाहता था। यानि कि ऐसी व्यवस्था अपने देश में लाना चाहता था तथा दूसरा हिस्सा जो बुनियादी रूप से कम्युनिस्ट विरोधी था, वह इन विचारों का विरोध कर रहा था। वर्ष 1938 में ऐसे लोगों ने इस प्रस्ताव को पारित नहीं होने दिया।
1940 में कम्युनिस्ट तथा सोशलिस्ट कांग्रेस में इस मुद्दे पर स्पष्ट विभाजन हो गया। इसी बीच 1940 में जिना ने साम्प्रदायिक आधार पर मुस्लिम स्टूडेंट्स फैडरेशन की स्थापना कर दी। बावजूद इसके तमाम मतभेदों के बाद भी छात्र आन्दोलन पर 1930 के आन्दोलनों का भारी असर रहा। वह इससे प्रेरणा लेता रहा आगे जाकर भी छात्र आन्दोलन राष्ट्रीय मुक्ति आन्दोलन का हिस्सा बना रहा। दूसरे विश्व युद्ध में समाजवादी खेमे पर हिटलर के नेतृत्व में फासिस्ट हमला भी छात्र समुदाय के मध्य एक महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है। छात्र आन्दोलन का प्रगतिशील हिस्सा जो फासिस्ट हमले के उद्देश्य से भली भांति परिचित था। छात्रों को फासीवादी हमले के खिलाफ एकजुट कर रहा था। वह समझ रहा था कि फासीवादी हार ही उपनिवेशवादी दुनिया की मुक्ति का कारण बनेगा।


छात्र समुदाय का दूसरा हिस्सा जो साम्राज्यवाद विरोधी रूख रखने के कारण अंग्रेजों को हटाना पहला फर्ज समझता थाल वह अंग्रेजों से किसी तरह मुक्ति चाहता था। वह फासीवादी को ज्यादा गम्भीरता से नहीं ले रहा था, किन्तु फासीवादियों की हार ने प्रगतिशील छात्रों की समझ को सही ठहराया। फासिज्म पर समाजवादी गठजोड़ की जीत ने दुनियाभर में उपनिवेशवादी ताकतों को कमजोर कर दिया। तथा समाजवादी खेमा मजबूत बनकर उभरा।
इग्लैंड आदि कमजोर होने से भारत सहित अन्य उपनिवेशवादी देश आजाद हुए, किन्तु छात्र आन्दोलन में वैचारिक मतभेद के चलते आगे चलकर एनएसयूआई का गठन हुआ जो सत्ता से जुडकर कांग्रेस के छात्र संगठन के रूप में जाने जाना लगा। यह कांग्रेस द्वारा अपनी सत्ता को मजबूती से बनाए रखने की शुरूआत थी। इस प्रकार छात्र आन्दोलन में विभाजन के वावजूद भी उसका समाज में आमूल चूल परिवर्तन का सवाल अभी भी बना हुआ था।
एआईएसएफ जो कि संगठित छात्र आन्दोलन का शुरूआत थी। यह संगठन भी आगे चलकर नेहरू को प्रगतिशील मानकर उनकी सरकार से सहयोग की बात करने लगा था। इस प्रकार संगठन दो विचार धाराओं में विभाजित था। एक धारा जो सहयोग की थी, दूसरी समाज के आमूल चूल परिवर्तन के लिए छात्र समुदाय को संगठित करते की बात कर रही थी। इस बीच प्रतिक्रियावादी संघ परिवार ने विधार्थी परिषद की स्थापना की।
संगठित छात्रआन्दोलन का प्रगतिशील हिस्सा वैचारिक मतभेद के चलते 1960तक आते आते 7 राज्यों में अलग अलग छात्र संगठनों में विभाजित हो गया। इससे पहले अति वामपंथियों ने भी छात्र आन्दोलन को भटकाने के लिये उनके मध्य कार्य करना शुरू किया। अब संकीर्णता के चलते छात्र आन्दोलन को कमजोर करने का ही कार्य किया । बावजूद इसके की छात्रों के सामने शिक्षा, रोजगार, समाज के आमूल चूल परिवर्तन के सवाल बने हुऐ थे।
आजादी के बाद सत्ता में बैठे लोग निरन्तर देश की जनता को छलने में लगे हुऐ। इन सभी सवालों को लेकर देश के विभिन्न प्रदेशों के छात्र संगठन जो पहले से ही सम्पर्क में थे, कलकत्ता में मिले। 27दिसंबर 1970 को स्टूडेंट्स फैडरेशन आफ इंडिया (एसएफआइ) की स्थापना की। ताकि आजादी के समय तथा आजादी के बाद इस तय किये उद्देश्यों की प्राप्त हो सके। आज इन उद्देश्यों के साथ ही संगठन निरन्तरता के साथ संघर्षरत है ।
लेखक का परिचय
अनन्त आकाश
देहरादून
लेखक 1991 से 1997 तक उत्तर प्रदेश एसएफआई के अध्यक्ष रहे हैं।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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