युवा कवयित्री अंजली चंद की कविता- लफ्जों की हेर फ़ेर भी गज़ब हैं
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लफ्जों की हेर – फ़ेर भी गज़ब हैं,
कागज़ में आग का समुन्दर छिपा देती है,
स्थिरप्रज्ञ बनना ही तो जीवन
को परीक्षा की राह थामना सिखाता है,
सुख हमसे मुहँ यूँ ही मोड़ लेता है,
दुःख कहाँ हमारा कहा सुनता है,
सपनों को साकार होते कभी नहीं देखा,
हकीकतें नाकाम अक्सर साबित हुई हैं, (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
कभी-कभी ख़ुद से भी डर लगने लगता है,
तो कभी-कभी मौत से भी मन निर्भय-निष्काम रहता है,
हाँ सही कहते हैं जीने में आसानी बहुत है,
ग़र इरादा कर लो खुदकुशी का तो
इन बेज़ुबान पन्नों में लिपटा समुन्दर बहुत है,
बहुत है आँखों में छिपा पानी,
बहुत है जीने में आसानी!
कवयित्री की परिचय
नाम – अंजली चंद
बिरिया, मझौला, खटीमा, जिला उधम सिंह नगर, उत्तराखंड।
पढ़ाई पूरी करने के बाद कवयित्री सरकारी नौकरी की तैयारी कर रही हैं।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।